"क्योंकि जैसा वह अपने अंतर् में सोचता है, वैसा ही वह होता है" (प्रोवर्स 23:7; बाइबिल)। इस विवेकोक्ति पर उस प्रत्येक व्यक्ति को ध्यान देना चाहिये जो स्वयं को सुधारना चाहेगा और जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य - ईश्वर साक्षात्कार - को प्राप्त करने के लिये प्रयास करना चाहेगा। जिसके बारे में हम निरंतर सोचते रहते हैं, उसका प्रभाव हमारे स्वभाव पर पड़ता है। हमारे जीवन की परिस्थितियाँ, हमारी मनोवृत्तियाँ और आदतें, हमारी सफलतायें तथा असफलतायें, ये मुख्य रूप से हमारे विचारों से ही उत्पन्न होते हैं। वस्तुतः, मन की शक्ति ही सभी सृजन की मूल तथा संचालन करने वाली शक्ति है।
सकारात्मक, प्रेरणादायक विचारों पर मन को लगाये रखने का अभ्यास करने से, वह एक निश्चित तथा चिरकालिक उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए अपनी शक्तियों को केन्द्रीकृत करने में मनुष्य की सहायता करती है। मैंने अपने महान् गुरु श्री श्री परमहंस योगानन्दजी के मार्गदर्शन में वर्षों पहले इस आध्यात्मिक विज्ञान का प्रयोग करना सीखा। प्रतिदिन मनुष्य, सत्य के यदि एक पहलू को भी लेकर, उस पर ध्यान देने और उसके अनुसार जीने का प्रयास करे, तो उसके आंतरिक एवं बाह्य जीवन पर चमत्कारिक रूपान्तरक प्रभाव पड़ता है। सत्य के किसी एक मार्गदर्शक सूत्र पर मन को पहले स्थिर किये बिना दिन का आंरभ कभी न करें।
हम अपने भौतिक कर्त्तव्यों में आसानी से फँस जाते हैं, और आध्यात्मिक कर्त्तव्यों को भुला देते हैं। हम शरीर के लिये अत्यधिक परिश्रम करते हैं, परन्तु अपनी आत्मा के प्रति कर्त्तव्य को हम कहाँ तक निभाते हैं? हमारे भीतर जो ईश्वर का प्रतिरूप है वह परमात्मा के गुणों- अर्थात् शाश्वत जीवन, अनन्त दिव्य प्रेम और विवेक, अपार आनन्द - को प्रकट करने के लिये क्रन्दन करता है। जो कुछ ईश्वर है, जो कुछ भी ईश्वर का है, वह जन्मसिद्ध दिव्य अधिकार से हमारा होता है। इसे जानना ही आत्म साक्षात्कार है।
इस आध्यात्मिक दैनंदिनी में वर्ष के प्रत्येक दिन के लिए आपके मार्गदर्शन हेतु प्रेरणादायक विचार हैं। आपके सभी प्रयासों में, भौतिक हो या आध्यात्मिक, यदि आप इन विचारों को प्रयोग में लायें, तो आपका हर कार्य दिव्य शक्ति से पूर्ण हो जाएगा। सत्य के बारे में सोचें, अच्छाई के बारे में सोचें, ईश्वर के बारे में सोचें। यदि आपका मन ईश्वर प्रकाश से आलोकित हो, तो आपके सामने कोई अन्धकार नहीं हो सकता।
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