पुस्तक के विषय में
सोमनाथ हिन्दी साहित्य के कालजयी उपन्यासों में से है । बहुत कम ऐतिहासिक उपन्यास इतने
रोचक और लोकप्रिय हुए हैं । इसके पीछे आचार्य चतुरसेन की वर्षो की साधना, गहन अध्ययन और सबसे बढ़कर उनकी लाजवाब लेखन-शैली है ।
बारह ज्योतिर्लिंगों में सोमनाथ का अग्रणी स्थान है । अन्य विदेशी आक्रमणकारियों के अलावा महमूद गजनवी ने इस आदि-मंदिर के वैभव को 16 बार लूटा । पर सूर्यवंशी राजाओं के पराक्रम से वह भय भी खाता था । फिर भी लूट का यह सिलसिला सदियों तक चला । यह सब इस उपन्यास की पृष्ठभूमि है ।
'सोमनाथ' का एक दूसरा पक्ष भी है जो उपन्यास में जीवंत हुआ है । मंदिर के विशाल प्रांगण में गूंजती घुंघरुओं की झनकार इस जीवन की लय को ताल देती है । जीवन का यह संगीत भारत के जनमानस का संगीत है । आततायियों के नगाड़ों का शोर इसे दबा नहीं पाता । एक अजब सी शक्ति से वह फिर-फिर उठता है और करता है-एक और पुनर्निर्माण । निर्माण और विध्वंस की यही श्रृंखला इस कथा का आधार है ।
लेखक के विषय में
सोमनाथ की ऐतिहासिक लूट और पुनर्निर्माण की कहानी को आचार्य चतुरसेन ने इस उपन्यास में बड़े ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है । सोमनाथ का मंदिर सैंकड़ों देवदासियों के नृत्यों से, उनके घुंघरुओं की जनि से सदा गुंजित. रहता था । देश-देशान्तर के राजा और रंक इसके वैभव के समक्ष नतमस्तक होते थे । फिर भी एक विदेशी द्वारा इसे ध्वस्त करने का दुस्साहस किया गया । इतिहास की इस विडंबना को आचार्य चतुरसेन ने औपन्यासिक शैली में बांधा है ।
प्रभासपट्टन स्थित सोमनाथ मंदिर भारतीयों की धर्मपरायणता का जीवंत प्रमाण है । विदेशी आक्रमणकारियों ने इसके वैभव से प्रभावित होकर अनेक बार इस मंदिर को लूटा और ध्वस्त किया । महमूद गजनवी सोलह बार यहां की धन-सम्पत्ति को ऊंटों पर लादकर ले गया, परन्तु फिर भी इसल अस्तित्व समाप्त नहीं हुआ ।
गहन अध्ययन और उस क्षेत्र के विस्तृत सर्वेक्षण के आधार पर लिखा गया यह उपन्यास, इतिहास क्त जीवंत दस्तावेज है । हिन्दी कथा-साहित्य के गौरव, आचार्य चतुरसेन बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे । गुण और मात्रा, दोनों दृष्टियों से हिन्दी-साहित्य की समृद्धि में उनका योगदान अमूल्य है । उनकी प्रकाशित रचनाओं की संख्या 186 है ।
आचार्य चतुरसेन के ऐतिहासिक उपन्यासों का हिन्दी साहित्य में विशिष्ट स्थान है । 'सोमनाथ' के अलावा 'वयं रक्षाम : 'और' वैशाली की नगरवधू' उनके बहुचर्चित उपन्यास हैं । उन्होंने बत्तीस अन्य उपन्यास, अनेक नाटक तथा 450 कहानियाँ लिखी हैं । (जन्म 26 अगस्त, 1891, निधन 2 फरवरी, 1960) ।
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