प्रस्तुत पुस्तक एक नवीन संस्करण है। इस पुस्तक को प्रस्तुत करते हुए हमे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है। सर्वप्रथम इस पुस्तक के वर्तमान स्वरूप को मूर्त रूप देने में सहयोग प्रदान करने वाले महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी के विद्वान आचार्यों, समाजकार्य विभाग के शोधार्थीगण एवं विद्यार्थियों के प्रति अपना आभार प्रदर्शित करना हम अपना पुनीत कर्तव्य मानते हैं, जिन्होंने पुस्तक की सारगर्भिता को बढ़ाने में अपना अमूल्य सहयोग एवं सुझाव दिया।
महान यूनानी दार्शनिक अरस्तू ने सर्वप्रथम यह व्यक्त किया कि "मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। इससे रपष्ट होता है कि व्यक्ति और समाज हमारे मानवीय परिवेश के दो ऐसे बिन्दु है, जिनके आपसी सहयोग के बिना हमारा वर्तमान विश्व समाज मानवीय दृष्टिकोण के अनुसार आज के जैसा न होता। स्पष्ट है कि व्यक्ति की पहचान समाज में ही विकसित और पोषित होती है, इससे इतर उसका कोई अस्तित्व नहीं है। ध्यातव्य रहे कि एक तरफ तो समाज ने व्यक्ति को मानवीय अस्तित्व प्रदान किया है तो दूसरी तरफ समाज ने व्यक्ति को अनेक सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक समस्याओं से ग्रसित भी किया है। इन्हीं समस्याओं के निदान एवं उपचार की एक विधा के रूप में समाज कार्य का जन्म हुआ है। समाज कार्य की अवधारणा का आधारभूत चिंतन मुख्यतः करूणा पर आधारित है। दूसरों के अभाव, पीड़ा और अक्षमताओं को दूर करने की भावना का प्रेरक स्रोत करूणा ही है और यही करूणा समाज कार्य सेवा का मूल आधार है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में समग्र और बहु विषयक शिक्षा पर विशेष बल दिया गया है। फलस्वरूप समाज कार्य विषय को स्नातक स्तर पर मेजर विषय के रूप में अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों के अतिरिक्त समाज कार्य विषय को अन्य संकायों के विद्यार्थी भी माइनर विषय के रूप में इसका चुनाव कर रहे है। इन्ही आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर पुस्तक को निर्मित करने का प्रयास किया गया है। प्रस्तुत पुस्तक में स्नातक स्तर के पाठ्यक्रम को सम्मिलित करते हुए इसे इस तरह तैयार किया गया है कि यह स्नातक, परास्नातक, तथा यू०जी०सी० नेट की परीक्षाओं में समाज कार्य की आधारभूत अवधारणाओं एवं रामकालीन समस्या से सम्बन्धित प्रश्नों को हल करने में उपयोगी सिद्ध हो सके। चूँकि समाज कार्य की आधारभूत अवधारणाएँ और समसामयिक समस्याएँ समाजशास्त्र विषय से भी संबन्धित है, अतः प्रस्तुत पुस्तक समाजशास्त्र के विद्यार्थियों एवं प्रतियोगियों के लिए भी समानरूप से उपयोगी सिद्ध होगी।
पुस्तक में वस्तुनिष्ठ प्रश्नों का चयन करते समय इस बात का ध्यान रखा गया है कि वे एक दूसरे से इस तरह सम्बद्ध रहे कि अध्ययन करते समय उन्हें सैद्धान्तिक ज्ञान की भी प्राप्ति हो सके। पुस्तक में उन सभी पहलुओं को छूने का प्रयास किया गया है जो समाज कार्य के शिक्षार्थियों को बुनियादी, सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक ज्ञान की प्राप्ति के लिए आवश्यक है। पुस्तक में यथा स्थान प्रतियोगी परीक्षाओं में पूँछे जाने वाले प्रश्नों को भी सम्मिलित किया गया है, जिससे शिक्षार्थियों में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी हो सके। मुझे आशा है कि यह पुस्तक समाज कार्य के विद्यार्थियों, प्रतियोगियों एवं अभ्यासकर्ताओं के लिए अवश्य ही उपयोगी सिद्ध होगी।
पुस्तक की रचना में अनेक विद्वान लेखकों की अमूल्य कृतियों एवं उनके विचारो को स्वतंत्र रूप से आवश्यकतानुसार प्रयोग किया गया है, हम उन सभी विद्वानों के आभारी हैं। पुस्तक प्रकाशन के लिए कला प्रकाशन के निदेशक डॉ० प्रेमशंकर द्विवेदी एवं उनके सहयोगियों को धन्यवाद देना हम अपना परम कर्तव्य समझते हैं, जिनके अथक प्रयास से यह पुस्तक अत्यल्प समय में प्रकाशित हो सकी।
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