शबर जाति को भील या किरात कहा जाता है। रामचरित मानस की शबरी भी इसी जाति की थी। भाषा की दृष्टि से शाबर मंत्र भले ही अटपटे हों, लेकिन इनका प्रभाव बड़ा विलक्षण होता है। ये शीघ्र प्रभावी हैं। इन मंत्रों में जो शब्द जैसा है उसका उच्चारा भी वैसा ही करना चाहिए। उसे शुद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती। चूंकि ये मंत्र स्वतः सिद्ध हैं, अतः इन्हें सिद्ध करने की भी आवश्यकता नहीं होती और न ही दीक्षा लेने की आवश्यकता होती है।
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