शरत् बाबू मस्तिष्क से अधिक हृदय को छूते हैं। ममतामयी नारी की वेदना का तो उन्होंने ऐसा हृदयद्रावक चित्र अपनी कृतियों में प्रस्तुत किया है कि पाठक को बरबस रुलाई आ आती है। न जाने पीड़ा से उन्हें क्यों इतना प्यार है। वे पात्रों के दुख-दर्द को पाठक के हृदय में उतार देते हैं।
आत्मकथात्मक शैली में रचित श्रीकांत शरत्चन्द्र का ऐसा ही मार्मिक, रोचक एवं पठनीय उपन्यास है, जो पुरुष प्रधान होते हुए भी नारी संवेदना का वाहक है।
शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय बांग्ला के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार थे। उनका जन्म हुगली जिले के देवानंदपुर में हुआ। वे अपने माता-पिता की नौ संतानों में से एक थे। अठारह साल की अवस्था में उन्होंने इंट्रेंस पास किया। इन्हीं दिनों उन्होंने बासा (घर) नाम से एक उपन्यास लिख डाला, पर यह रचना प्रकाशित नहीं हुई। कुछ दिनों बाद उन्होंने अपना प्रसिद्ध उपन्यास श्रीकांत लिखना शुरू किया। बर्मा में उनका संपर्क बंगचंद्र नामक एक व्यक्ति से हुआ, जो था तो बड़ा विद्वान पर शराबी और उच्छृंखल था। यहीं से चरित्रहीन का बीज पड़ा, जिसमें मेस जीवन के वर्णन के साथ मेस की नौकरानी से प्रेम की कहानी है। चरित्रहीन उपन्यास को शुरू में भारतवर्ष के संपादक कविवर द्विजेंद्रलाल राय ने यह कहकर छापने से मना कर दिया था कि यह सदाचार के विरुद्ध है। लेकिन जब यह छपा तो विश्वप्रसिद्ध हो गया। विष्णु प्रभाकर द्वारा आवारा मसीहा शीर्षक से रचित उनका प्रामाणिक जीवन परिचय बहुत प्रसिद्ध है।
Hindu (हिंदू धर्म) (12733)
Tantra (तन्त्र) (1024)
Vedas (वेद) (707)
Ayurveda (आयुर्वेद) (1913)
Chaukhamba | चौखंबा (3360)
Jyotish (ज्योतिष) (1474)
Yoga (योग) (1094)
Ramayana (रामायण) (1387)
Gita Press (गीता प्रेस) (729)
Sahitya (साहित्य) (23219)
History (इतिहास) (8313)
Philosophy (दर्शन) (3408)
Santvani (सन्त वाणी) (2583)
Vedanta (वेदांत) (121)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist