ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।
प्रणतः क्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नमः ॥
इस मंत्र को कलियुग के प्रसिद्ध सन्त देवरहवा बाबा जपते थे। यह बहुत ही शक्तिशाली मंत्र है। ईश्वर की कृपा एवं सन्तों का आशीर्वाद रहा कि कोरोना काल खण्ड में मैं दिल्ली में स्वस्थ रहा। चारो ओर बीमारी का ताण्डव व्याप्त था। टी.वी. पर रोज मौत की खबरें, चारो ओर सन्नाटा बीच में एम्बुलेंस की आवाजें। फेसबुक एवं वॉडसऐप पर 'विनम्र श्रद्धाञ्जलि' एवं 'ॐ शान्तिः' भरा रहता था। व्यक्ति अपने परिवार में कैद; घोर निराशा तथा मन को शान्ति नहीं मिलती थी। मैंने अपना केबिल कनेक्सन बन्द करवा दिया। रिश्तेदारों, मित्रों एवं शुभचिन्तकों की आए दिन मौत की सूचना। कोई रास्ता नहीं बचा था। मैं ने अपने पूजा के समय को थोड़ा अधिक कर दिया। ध्यान-योग भी करता था। रात में मुझे स्वप्न में भगवान श्री कृष्ण में चरित्र दिखाई देते थे। पूरी रात तो बीत जाती दिन में फिर वही परेशानी, चारों ओर का शोकाकुल वातावरण। मैं क्या करता। अन्त में मुझे द्रौपदी की वह स्थिति याद आती है जब वह हर प्रकार से निराश्रित होकर अपनी रक्षा के लिए भगवान को पुकारा "हे कृष्ण राखहुँ लाज हमारी" तब भगवान ने तत्काल वस्त्रावतार लिया और द्रौपदी की लज्जा की रक्षा किए। कहा गया है -
दस हजार गजबल घट्यो, घट्यो न दस गज चीर।
कोटिन बैरी क्या करें, जब सहाय यदुवीर ।।
मैं भी अपने तथा अपने परिवार को भगवान श्री कृष्ण के शरण में डाल दिया। मैं अपने को किंकर तथा भगवान कृष्ण को अपना स्वामी मान लिया। श्री कृष्ण ने मुझे क्या माना यह तो मैं नहीं जानता लेकिन मेरे व्यवहार में एक परिवर्तन हुआ। बच्चों को आनलाइन पढ़ाने के पश्चात मुझे अनुभूति हुई कि मेरे घर में कोई शक्ति निवास कर रही है और वह शक्ति मेरे परिवार की रक्षा कर रही है। जो बिल्ली मेरे बालकनी में आकर के रोती थी उसका रोना बन्द हो गया। जो उल्लू मेरे घर के सामने आकर बैठता था वह फिर नहीं दिखाई दिया। मेरे मन को कुछ शान्ति मिलने लगी। मैं दोहा छन्द ठीक लिखता हूँ ऐसा लोग कहते हैं।
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