पुस्तक परिचय
श्रवण कुमार का नाम लेते ही एक ऐसे पुत्र की छवि उभरकर आँखों के सामने आती है, जिसने अपने माता-पिता की सेवा को ही अपने जीवन की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि मान लिया था ! उसके लिए माता-पिता ही भगवान थे ! अपने माता पिता को तीर्थयात्रा करने ली जाते समय सूर्यवंशी राजा दशरथ के सब्दभेदी बाण से श्रवण ने अपने प्राण त्यागे थे ! मृत्यु के समय भी उसके मन में अपने माता-पिता का ध्यान था- उनकी प्यास बुझाने के लिए व सरयू से जल लेने आया था !
श्रवण की मातृ-पितृ भक्ति ने कई महापुरुषों का जीवन प्रभावित किया है ! राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने आत्मकथा में इसका उल्लेख करते हुए कहा है-'एक पौराणिक कथा होने के बावजूद यहाँ जीवन में माता-पिता का महत्व प्रकट करती है! इससे एक सच्चे पुत्र का रूप उभरकर सामने आता है!'
प्रस्तुत गाथा में यह सन्देश भी छिपा है की कर्मों का फल प्रत्येक को भोगना पड़ता है, वह भले ही श्रीराम के पिता दशरत ही क्यों न हों !
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