उप्रोक्त के अतिरिक्त दिवंगत पूर्वजों की आत्मसंतुष्टि के लिए भी श्राद्ध अति आवश्यक है। ऐसा करने से जीवन में आने वाली विपदाओं तथा शादी-विवाह, मांगलिक कार्य रोग, व्यापार व अन्य विपदाओं का निवारण होता है। नित्य गाय, कौआ, कुत्तों आदि का भोजन (रोटी) देना भी श्राद्ध का प्रतिरूप है। ऐसा करने से भी पितर तृप्त रहते हैं और सुखी जीवन का आशीर्वाद देते हैं।
पूर्व विशेष अर्थात श्राद्धदि काल में हरिद्वार, गया (बिहार) ब्रजघाट (गढ़मुक्तेश्वर) उज्जैन, वाराणसी, नासिक, कुरूक्षेत्र, पहवा, प्रयाग (इलाहाबाद) में पितरों के निमित किया श्राद्ध अनंत फलदायी होता है।
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