आत्मनिवेदन
महावतार शिवस्वरूप बाबा हैड़ाखान की कृपादृष्टि का निक्षेप मुझ जैसे अकिंचन पर कैसे हुआ, यह तो बाबा ही जानते हैं, किन्तु इतना कहने का अधिकारी अवश्य हूँ कि मेरे पूर्वजन्म के सुसंस्कार ने मुझे बाबा का सात्रिध्य और आशीर्वाद प्राप्त करने का सुयोग दिया है । भौतिक जगत का प्राणी आध्यात्मिक परिवेश में कैसे परिनिष्ठित हो जाता है, यह प्रभु कृपा तथा संचित सत्कर्मों का ही सुफल है । हमारा कार्यक्षेत्र ऐसा रहा है जो हमें प्रारम्भ में अध्यात्म की चेतना जागरित करने में प्रत्यशत: निष्क्रिय रहा है, लेकिन संस्कारजन्य पुण्यकार्य और माता पिता के आशीर्वाद ही हम में आध्यात्मिक नवचेतना प्रस्फुटित करने में सहायक रहे हैं । बाबा हेंड़ाखान के आकस्मिक दर्शन ने मेरे जीवन प्रवाह को ऐसा मोड़ा कि मेरे लिए वे अनुपम ऊर्जा के स्रोत हो गए ।
शिवस्वरूप बाबा के विषय में मुझ जैसे अल्पप्राण व्यक्ति क्या कह सकता हें, किन्तु उनके निकट पहुँचने पर मुझ में आशातीत परिवर्तन और अन्तर्जगत की संवेदनशीलता का जो स्पर्श हुआ, वह बाबा की लीला ही है । उनकी सिद्धि, याग क्रिया और त्रिनेत्रविषयक महिमा का वर्णन करना यहाँ संगत नहीं । हमने उनके सान्निध्य में रह कर जो देखा, सुना और ग्रहण किया, ये सारी बातें उनके करुणामय स्वरूप और कृपा से ही सुलभ हो सकी हैं । मेरा सौभाग्य है कि उनके कृपा कटाक्ष से मुझे विदेश यात्रा का अयाचित अवसर मिला । उनकी साधना और सिद्धि का मूल्यांकन करने की क्षमता मुझ में नहीं है, किन्तु उनके चरणों की सेवा करने की संकल्पपूर्ण श्रद्धा अवश्य है । प्रस्तुत पुस्तक में बाबा की साधना और सिद्धि की हमने जो न्यूनाधिक झलक प्रस्तुत की है, वह भक्तजनों को प्रेरित करने में अपर्याप्त नहीं है ।
श्री प्रभु बाबा हैड़ाखान ने मुझे गणों की श्रेणी में स्थान दिया है । इसलिए सर्वप्रथम मैं अपने नायक, गणनायक परमदेव श्री गणेशजी महाराज को प्रणाम करता हूँ जिनकी मंगलमय प्रेरणा ने मुझ जैसे साधारण और अकिंचन व्यक्ति को इतनी योग्यता दी कि हिन्दी न जानते हुए भी दूसरों की सहायता से मैं श्री प्रभु की कुछ झलकियाँ पाठकों को इस पुस्तक के द्वारा दिखा सकूँ । इस विषय में देवर्षि भृगु को भी मैं प्रणाम करता हूँ । उन्होंने मुझे पहले प्रेरणा देकर श्री प्रभु के चरणों का ध्यान करने में सहायता की । मैं रानुपाली (अयोध्या) के उन गुरु को प्रणाम करता हूँ जिन्होंने भगवान का आदेश मानकर मेरे जन्म का आशीर्वाद और अपना तपोबल मुझको प्रदान किया । इससे मुझे स्पन्दन शक्ति के आविर्भाव और उसके प्रयोग का कुछ अधिकार प्राप्त हुआ । मैं अपने ममतापूर्ण माता पिता के प्रति असीम श्रद्धा भक्ति प्रकट करता हूँ जिन्होंने अपने त्याग और तपस्या से मुझे धर्म पथ पर रखा और एक प्रकार से अच्छे संस्कार प्रदान किए । पूज्य माताजी ने सूर्य की विशेष आराधना कर और पिताजी ने माता गंगा की सेवा कर मुझे उनका आशीर्वाद दिलाया । मेरे जीवन निर्माण में मेरी बुआजी ( श्री अम्बिकाप्रसाद की माताजी) एवं श्रीमती कुमुदनी देवी, उनके परिवार के श्री कामताप्रसाद और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सुखदा ने मुझे योग्य बनाने में सहायता की ।
जीवन में थोड़ी जागृति आने पर पूज्य हनुमानजी ने मेरी बहुत मदद की । मैं उनका कृपा पात्र हूँ और प्रार्थना करता हूँ कि उनका सदैव कृपा पात्र बना रहूँ । हनुमानजी की ही अनुकम्पा से सन् 1969 में मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम और जगतजननी माता सीता के दर्शन एवं आशीर्वाद प्राप्त हुए और उन्होंने मेरे त्रिनेत्र खोल दिए । उसका प्रयोग मैंने देशहित में किया । फलस्वरूप त्र्यंबक साम्ब सदाशिव महावतार बाबा हैड़ाखान का आशीर्वाद सन् 1971 में प्राप्त हुआ । उस आशीर्वाद का प्रयोग मैंने पुन देश के ही हित में किया । श्री प्रभु ने बहुत कुछ चमत्कारी घटनाएँ दर्शायीं । उन्होंने अपने चरण चिहृ मुझे दिया और सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि मेरे शरीर में प्रवेश कर वह सम्पूर्ण विश्व में गए और विशेष लीलाएँ कीं । विदेश के बाबा के उन सभी भक्तों के प्रति मैं कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ जिन्होंने मेरी अस्सी दिनों की विदेश यात्रा में हार्दिक सहायता की । वैसे अनेक लोगों ने प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से मेरी मदद की, परन्तु जिन लोगों का मैं विशेष रूप से आभारी हूँ उनके नाम हैं
सर्वश्री सुन्दर सिंह, जमन सिंह तथा जानकी, सुशीला और बलबीर, भूरी (यूरोप में), कारा (लंदन में), विकी और पॉल नैंग्रोनी, चार्ल्सगीर, बाबा लिनार्डओ, टोबी क्लार्क, रामलोटी, जैकब और श्रीमती जैकब ( श्री खण्डी), सारानोवी और ओऽम् शान्ति ( अमेरिका में), ऑफलैण्डर्स, श्रीमती एवं जिम क्रेग, स्टेफनीईट और उनके मित्र (कनाडा) में ।
विश्व में जो कुछ घटनाएँ हुईं, उन सबकी रूप रेखा देना कठिन कार्य है । श्री प्रभु के आशीर्वादानुसार ' साम्ब सदाशिव मन्दिर ' बनते बनते इस पुस्तक का कार्य भी पूर्ण हो गया । इस कार्य में विशेषत श्री हर्षनारायण और सीमा श्रीवास्तव का महत्वपूर्ण सहयोग मिला । मैं हिन्दी भाषा के लेखन में कमजोर रहा हूँ इसलिए सीमा श्रीवास्तव ने (जिन्होंने संस्कृत में एम० ए० किया है और वेद पर शोधकार्य कर रही हैं) सभी प्रकार से मेरी सहायता की । उनको सहायक क्:: स्थान देना अनुचित नहीं होगा और उनके प्रति आभार न प्रकट कर पूज्य बाबाजी महाराज का आशीर्वाद दे रहा हूँ । मैंने उनको क्रिया योग दिया है ।
यह कहना आवश्यक है कि सभी स्तरों पर भारतीय वायु सेना में देश सेवा करते हुए श्री प्रभु की सेवा करते हुए मन्दिर निर्माण एवं पुस्तक लिखते समय और हर प्रकार से मेरी धर्मपत्नी श्रीमती ऊषा श्रीवास्तव का विशेष योगदान रहा है । मन्दिर निर्माण के क्षेत्र में मेरे दो पुत्र सिद्धार्थ श्रीवास्तव और राम श्रीवास्तव ने भी सहयोग किया है । मैं इन सबको पूज्य बाबाजी महाराज का विशेष आशीर्वाद देता हूँ ।
इस पुस्तक के मुद्रण में वाराणसी के विश्वविद्यालय प्रकाशन के स्वामी श्री पुरुषोत्तमदास मोदी और उनके सुयोग्य पुत्र श्री अनुराग तथा श्री पराग मोदी का भरपूर सहयोग मिला । उन्होंने अभिरुचि के साथ सभी प्रकार से इसकी रूपरेखा उच्चकोटि की रखने का प्रयास किया है । मैं इन लोगों को धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने बड़ी मेहनत सं इस पुस्तक को सज्जित किया । मेरे पौत्र सुरनायक श्रीवास्तव ने त्रिनेत्र एवं कुछ अन्य डिज़ाइनों को रूप दिया है, उसे मैं बाबाजी का आशीर्वाद देता हूँ । पुस्तक की हस्तलिपि के भाषा संशोधन में पत्रकारवरेण्य श्री पारसनाथ सिह का निःस्वार्थ सहयोग मिला है । उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापन करना कैसे भूल सकता हूँ । शिवस्वरूप बाबा हैड़ाखान की जय ।
प्रकाशकीय अभिमत
भारतीय भाव भूमि में संत महात्माओं की विमल सुदीर्घ परम्परा रही है और आज भी है । हमारे संस्कार, आचार विचार और व्यवहार जब कभी निर्दिष्ट मार्ग से खण्डित होते हैं तब कोई अज्ञात प्रकाश सन्मार्ग दिखा देता है । कहा भी जाता है कि भारत संत महात्माओं की तप और कर्मभूमि है । हमारी सभ्यता संस्कृति के पोषक तत्वों में उन गुरुओं की अविस्मणीय देन है । स्वामी विवेकानन्द, स्वामी रामतीर्थ जैसे महात्माओं ने भारत से सुदूर देशों में भारतीय तत्व चिन्तन की महिमा का सन्देश देकर जन मानस को परिमार्जित किया था । आज भी प्रबुद्ध विदेशी विद्वान भारतीय आदर्शों से अत्यधिक प्रभावित हैं । शिवस्वरूप बाबा हैड़ाखान उसी परम्परा की एक ऐसी कड़ी हैं जिनसे शिक्षा दीक्षा प्राप्त करने के लिए लोग लालायित रहते हैं । इस पुस्तक के लेखक पूर्व विंग कमाण्डर सदगुरु प्रसाद श्रीवास्तव ने उन महात्मा के दर्शन से अपना जीवन सफल बनाने का प्रयास किया है । अब तक बाबा हेड़ाखान के सम्बन्ध में कोई विशेष जानकारी आस्तिक जनों कौ नहीं रही है । साधना के क्षेत्र में उनकी उपलब्धि से उनके दीक्षित भक्त ही सुपरिचित हैं । श्रीवास्तवजी ने उनके विषय में इतनी अधिक जानकारियाँ इस पुस्तक में भर दी हैं, जिनसे भारतीय भावधारा और चिन्तन प्रक्रियाओं को जानने समझने से बोध विकसित होगा । बाबा हैड़ाखान के विषय में ' कल्याण ' के ' संत विशेषांक ' में संक्षिप्त परिचय छपा था । जिज्ञासुओं के लिए वह परिचय तुष्टिकर नहीं था । इस पुस्तक के लेखक ने भक्तजनों की जिज्ञासा को तुष्ट करने का विश्वसनीय प्रयास किया है । हम ऐसी सर्वोपयोगी पुस्तक के प्रकाशन द्वारा भारतीय संस्कार के संवर्धन का प्रयास करते रहे हैं और कर रहे हैं । आशा है, प्रेमी पाठक इससे लाभान्वित होंगे ।
विषयानुक्रम
1
कूर्मांचल कैलाश, जटाशंकरी, गौतमी गंगा, पवित्र गुफा, हैड़ाखान विश्वमहाधाम और हैड़ाखान
2
क्रिया योग
13
3
चक्र और उनके वर्णन मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, वसुधा और आज्ञाचक्र
24
4
त्रिनेत्र
27
5
संस्कार
36
6
सद्गुरु
40
7
दीक्षा
43
8
आरती
46
9
चरणामृत
48
10
मोक्ष
50
11
योग और मृत्यु महावतार बाबाजी के दर्शन
53
12
शक्ति का आशीर्वाद, बाबाजी से भेंट और एयर फोर्स से मुक्ति मधुबन
56
पृथ्वी पर चन्द्रमा और महाशक्ति के दर्शन अमरनाथ यात्रा
70
14
ग्रहों से सम्बन्ध
82
15
श्री प्रभु के चरण चिह्न चरण चिह्नों के ध्यान का महत्त्व और १९८२ का कुम्भ पर्व
96
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