राजस्थान के रत्नाकर पंडित नामक एक प्रतिभावान कवि ने छत्रपति महाराज के बारे में सिर्फ एक ही शब्द लिखा है- 'दिल्लिन्द्रपदिलप्सव' अर्थात् दिल्ली में स्वराज्य स्थापना की महत्त्वाकांक्षा रखनेवाले मानवेंद्र। कहते हैं कि ऋषि अगस्त्य ने एक ही आचमन में सारा समुद्र पी लिया था। उसी तरह इन प्रतिभावान रत्नाकर पंडित ने एक ही शब्द 'दिल्लिन्द्रपदिलप्सव' में छत्रपति शिवाजी महाराज के स्वप्न का वर्णन कर दिया। सचमुच, शिव छत्रपति का जीवन-चरित्र और कार्य कर्तव्य असाधारण ही थे। उनके जीवन-चरित्र में महाकाव्य, महागाथा और अलौकिक महाभारत समाया हुआ है। गुलामी के घनघोर अंधकार में से छत्रपति शिवाजी महाराज ने तेजोमय, सार्वभौम स्वराज्य निर्मित किया। यह एक ऐसे राष्ट्र-निर्माता का जीवन- चरित्र है, जिसको व्यक्त करने में साहित्य की सभी उपमाएँ और अलंकार अपर्याप्त सिद्ध होते हैं। आठ बलशाली देशी व विदेशी सत्ताओं से जूझकर शिवाजी राजा ने एक असाधारण स्वराज्य का निर्माण किया। उनका यह स्वराज्य एक उत्कृष्ट दर्जे का सुराज्य था, यह बात कुछ लोगों के ध्यान में ही नहीं आती। राजकाज के हर आयाम को स्वावलंबी, आदर्श, अद्यतन और अजेय बनाने के लिए अनेक प्रयास ऋषि विश्वामित्र द्वारा नई सृष्टि के निर्माण की ही तरह असामान्य कर्तव्य दरशाने वाले थे। एक सार्वभौम राज्य सँभालना किसी विशाल कुटुंब की प्रचंड गृहस्थी सँभालने जैसा ही है। छत्रपति शिवाजी महाराज ने वह काम करके दिखाया। इस असाधारण, सुंदर स्वराज्य को उन्होंने सुराज्य कैसे बनाया, इसका वर्णन श्री अनिल माधव दवे ने इस पुस्तक में बड़े शोधपूर्वक व विस्तार से किया है।
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