प्रस्तावना
समग्र तन्त्रशास्त्र के आदिप्रणेता आशुतोष भगवान शंकर ही माने जाते है । यह शाबरतन्त्र भी उन्ही के मुखारविन्द से निर्गत हुआ है । यह मन्त्र समूहो का एक रमा जाल है जिनके अक्षर संयोजन से न तो कोई सार्थक वाक्य बनता है और न हा उसके किसी प्रकार के अर्थ निकलते है । परन्तु इन अनमोल वर्ण समूहो । जैसे अ, क ड, उ, म आटि अक्षरो का कुछ गूढ़ अर्थ अवश्य ही होता है एवं इनमे दैवी देवताओ का वास माना जाता है ।
इस सम्बन्ध मे कवि सम्राट्र तुलसीदासजी ने लिखा है
कलि विलोकि जग हित हर गिरिजा । शाबर मल जाल जिन्ह सिरजा ।।
अनमिल आखर अरथ न जापू । प्रगट प्रभाउ महेश प्रतापू । ।
(रामचरित मानस, बालकाण्ड) अर्थात् कलिकाल के प्राणियो के हितार्थ ही शिवजी ने इन मन्त्री की रचना की है । मन्त्रो की सरलता एवं सुगमता होने के साथ ही इनमे परम चमत्कारी गुण भी निहित है । इसकी साधना हेतु साधक को अल्पावधि मे थोड़े परिश्रम से ही सिद्धि उपलब्ध हो जाती है । अत जीवन को उन्नति के पथ पर अग्रसारित करने के त्निए इस तंत्र का आश्रयण करना चाहिए । इसमे विभित्र प्रान्तो के क्षेत्रीय भाषाओ मे षट्कर्मों शांतिकरण, वशीकरण, विद्वेषण, आकर्षण उच्चाटन एवं मारण कर्म के विधान समाविष्ट किये गये है जो पाठको के लिए अतीव उपयोगी सिद्ध होगे । मै ऐसे दुर्लभ एवं प्राचीन तन्त्र प्रकाशन मे रुचि रखने वाले चौखम्बा कृष्णदास अकादमी चौखम्बा वाराणसी के अधिष्ठाता श्री टोडरदासजी एवं कमेशजी गुप्त को साधुवाद देता हूँ और आशा करता हूँ कि वे भविष्य मे जिशासु पाठकों के समक्ष तन्त्रग्रन्थों का एक समृद्ध भण्डार प्रस्तुत करने मे सफल होगे।
अनुक्रमणी
प्रथम अध्याय
1 से 5
षट्कर्मों का परिचय
द्वितीय अध्याय
6 से 13
अथ शान्तिकरणम्
6से9
अथ स्तम्भनम्
9 से 10
अथ विदेूषणम्
10 से 11
अथोच्चाटनम्
11 से 12
अथ मारणम्
12 से 13
तृतीयअध्याय
13 से 19
अथ सम्मोहनम्
चतुर्थ अध्याय
20 से 25
अथवशीकरणम्
पञ्चम अध्याय
26 से31
विभित्र प्रान्तीय शाबरमन्त्र प्रयोग
26 से 31
षष्ठ अध्याय
32 से 37
अथ रोगोपशमनम्
सप्तम अध्याय
38 से 44
अष्टम अध्याय
45 से 50
नवम अध्याय
51 से 56
दशम अध्याय
57 से 61
एकादश अध्याय
62 से 68
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