ब्रज के प्राचीन अंचल ग्राम खाम्बी में दिनांक 10 जुलाई, 1970 को जन्मे स्वामी जी परम्परागत वैष्णव परिवार के मुकुटमणि हैं। शुद्ध सात्विक रहन-सहन और मनन-चिन्तन के परिवेश में बेटी चित्रलेखा देवी जी को भी उन्होंने भगवदीय संस्कारों से विभूषित किया। सर्वश्रेष्ठ पुराणशिरोमणि श्रीमद्भागवत उनका हार्द है। 'पिबत भागवतं रसमालयं' के अनुरूप सर्वदा श्रीमद्भागवत का रस पान करना और नाम जप में मगन रहना उनकी अनूठी विशेषता है। उनकी यह प्रस्तुति श्रीमद्भागवत प्रेमियों के लिए अद्भुत कृति सिद्ध होगी।
'श्रीमद्भागवताख्योयं प्रत्यक्षः कृष्ण एव हि।'
श्रीमद्भागवत महापुराण भगवान् श्रीकृष्ण का प्रत्यक्ष स्वरूप है। इस कलिकाल में श्रीमद्भागवत ही जीव का अवलम्बन है। अतः इसका आस्वादन, मनन-चिन्तन यहाँ तक कि इसका दर्शन मानवमात्र के कल्याण में सहायक है।
आजकल साप्ताहिक कथा के माध्यम से सब लोग इस ग्रन्थ का श्रवण करते हैं। यह सर्वश्रेष्ठ सत्संग है। इस कथा का श्रवण यदि विद्वान् वक्ता से किया जाये जो ब्राह्मण हो, निस्पृह हो, सरस हो और कुशल व्याख्याता हो-तब तो इसके प्रसंग और उपदेश हृदयंगम होने लगते हैं।
आयोजनों के अतिरिक्त इस ग्रन्थ का घर में बैठकर भी स्वाध्याय हो-इस हेतु सीधी-सरल भाषा में यह ग्रन्थ प्रकाशित कराया जा रहा है। सात दिवस के अनुसार इसका वर्गीकरण किया गया है जिससे पाठक नियमानुसार भी इसे पढ़ सकें।
यह ग्रन्थ विदुषी चित्रलेखा देवीजी के द्वारा प्रस्तुत की जा रही श्रीमद्भागवत सप्ताह कथा का ग्रन्थ रूप है। इसको पढ़ने से पाठकों को यह अनुभूति होगी कि स्वयं देवीजी इसका प्रवचन कर रही हैं। इसलिए विशेष आनन्द की अनुभूति पाठक कर सकेंगे।
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