जय वर्मा
जन्म: जिवाना, मेरठ, भारत
निवास: 1971 से ब्रिटेन में शिक्षा : प्रारंभिक शिक्षा रुद्रपुर, (नैनीताल), वी.ए. रघुनाथ गर्ल्स कॉलेज मेरठ
विश्वविद्यालय, ब्रोस्टो कॉलेज नॉटिंघम से बी.टेक (विजनेस एवं फाईनेंस), नॉटिंघम ट्रेन्ट विश्वविद्यालय से एडवांस डिप्लोमा एवं पोस्ट ग्रेजुएट सर्टिफिकेट इन मैनेजमेंट। सक्रिय : काव्य रंग साहित्यिक संस्था की संस्थापक सदस्य एर्व अध्यक्ष, नॉटिंघम एशियन
आर्ट्स कॉउंसिल की डायरेक्टर, फेस्टिवल ऑफ वर्ड्स की बोर्ड मेम्बर।
विशेष : हेल्थ सर्विस में प्रैक्टिस-प्रबंधक से सेवानिवृत्त, 15 वर्षों तक कला निकेतन हिन्दी स्कूल नॉटिंघम में हिन्दी शिक्षिका, लैंग्वेज सेंटर नॉटिंघम में 1988-89 तक हिन्दी भाषा समन्वयक, वी.वी.सी. स्थानीय रेडियो पर हिंदी कार्यक्रम प्रस्तुति, सन् 1980 से 10 वर्ष तक बैंडमिंटन शिक्षिका। नॉटिंघम रोविन हुड किले में कविता एवं नाम अंकित 2021, नॉटिंघम के नागरिकों की चित्र प्रदर्शनी में छायाचित्र प्रदर्शित 2012,
साहित्यिक : 2003-11 तक गीतांजलि बहुभाषीय साहित्यिक समुदाय ट्रेन्ट की संस्थापक सदस्य एवं अध्यक्ष, • नॉटिंघम हिन्दी रीडिंग ग्रुप की संस्थापक, 2015 में नॉटिंघम को यूनेस्को का साहित्यिक शहर बनवाने में सक्रियता, विश्व हिन्दी सम्मेलन लंदन यूके 1999, न्यूयॉर्क यू.एस.ए. 2007, जोहन्सवर्ग साउथ अफ्रीका 2012 एवं भोपाल, भारत 2015 में सहभागिता, मास्को स्टेट यूनिवर्सिटी 2006 और अलीगढ़ यूनिवर्सिटी भारत 2007 में कॉफ्रेंस ऑफ साउथ एशियन लेंग्वेज एण्ड लिटरेचर (ICOSAL), में हिन्दी की सहभागिता।
उपलब्धि: श्री वी.एल. गौड़ द्वारा संपादित कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर आधरित पुस्तक 'कर्मयोगीः लेखिका जय वर्मा', यू.जी.सी. (यूनिवर्सिटी)
लॉर्ड बायरन और डी. एच. लॉरेंस की जन्मभूमि नॉटिंघम, ब्रिटेन से जय वर्मा प्रवासी हिंदी साहित्य की एक प्रख्यात साहित्यकार हैं। उनकी पुस्तक 'सीमा पार से' उनके द्वारा लिखे ऐसे निबंध हैं, जो समय-समय पर उनकी लेखनी से निरूसृत हुए। संकलित पच्चीस निबंध-लेख विभिन्न विषयों, तत्वों और महान व्यक्तियों एवं ज्वलंत मुद्दों से संदर्भित है। इनमें साहित्य और हिंदी पर सर्वाधिक चिंतन किया गया है।
सामाजिक परिवर्तन में प्रवास की सदैव महत्वपूर्ण भूमिका रही है। साथ ही दुनिया की संस्कृति-सभ्यता एवं ज्ञान-विज्ञान के आदान-प्रदान का सवल माध्यम भी प्रवास रहा है। प्रवासी होने के बाद व्यक्ति को अपनी मूल संस्कृति की अहमियत का गहराई से भान होता है और वह दिन-प्रतिदिन उसके सन्निकट होता चला जाता है। नयी जगह पर वह अनेक चुनौतियों के साथ स्वयं का सामंजस्य स्थापित करके अपने और दूसरे देश की संस्कृति एवं भाषा के बीच एक मज़बूत सेतु का कार्य करता है। वर्षों बीत जाने के बाद भी अपनी मूल पहचान को जीवित रखता है और वह भारतीय कहलाने पर गर्व करता है।
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