पुस्तक परिचय
भाषा हम सब के बीच सेतु है, कड़ी है भाषा बनती है शब्दों से हमारे पास शब्द नहीं हैं तो हम गूँगे हैं जीवन की सफलता के मार्ग में हमारा पुल कमजोर है शब्दों के सही ज्ञान का मतलब है सही समय पर सही शब्द का उपयोग यह तभी होगा जब हमें अनेक शब्द मालूम हों शब्दों की संपत्ति धन संपत्ति के बराबर (या उससे भी ज्यादा) काम की है, जैसे संस्कृत भाषा के पुराने निघंटु या अमर कोश या अँगरेज़ी में रोजट के कोश, या उस जैसे और बहुत सारे कोश
शब्दों का ज्ञान जन्मजात नहीं होता यह पाया जाता है, कमाया जाता रोजट ने कहा है कि उसने शब्द नोट करने की डायरी बना रखी थी बार बार शब्द पढ़ता था, लिखता था, याद करता था अपने समय का यह प्रमुख वैज्ञानिक सही शब्द इस्तेमाल करने में पारंगत हो गया निघंटु और अमर कोश छात्रों को रटाए जाते थे शब्दों पर अधिकार हो जाए तो आदमी भाषाधिकारी, वदान्य, वाक्पति, वाक्य विशारद, वागीश, वागीश्वर, वाग्मी, वाग्विलासी, वाचस्पति, वादान्य, वादींद्र, विट, विदग्ध, शब्दचतुर, साहबे ज़बान, सुवक्ता, सुवाग्मी कहलाता है
अरविंद सहज समांतर कोश की रचना एक नई शैली में बहुत सोच समझ कर की गई है शब्दों की खोज आसान करने के लिए इसे सहज अकारादि क्रम में रखा गया है इस का काम है आप के सामने शब्दों का भंडार खोलना, यह आप को बताता है कि किसी एक शब्द के कितने भिन्न अर्थ को सकते हैं यह एक शब्द के ढेर सारे पर्याय देता है, संबद्ध (सपर्याय) शब्दों की ओर इशारा करता है अंत में दिखाता है कि उस के विपरीत या उलटे शब्द क्या हो सकते हैं आप कोश के पन्ने पलट कर स्वयं देखिए यह क्या है, कितने काम का है
अरविंद कुमार (जन्म मेरठ, 1930) एमए (अँगरेजी)
1945 से हिंदी और अँगरेजी पत्रकारिता से जुड़े रहे है आरंभ में दिल्ली प्रैस की सरिता कैरेवान मुक्ता आदि पत्रिकाएँ 1963 78 मुंबई से टाइम्स आफ इंडिया की पाक्षिक पत्रिका माधुरी का समारंभ और संपादन 1978 में समांतर काल पर काम करने के लिए वहाँ से स्वेच्छया मुक्त हो कर दिल्ली चले आए बीच में 198० से 1985 तक रीडर्स डाइजेस्ट के हिंदी संस्करण सर्वोतम का समारंभ और संपादन एक बार फिर पूरे दिन समातंर कोश पर काम समांतर कोश का प्रकाशन 1996 में हुआ उस के बाद से द्विभाषी हिंदी भाषी डाटाबेस बनाने में व्यस्त इस में सक्रिय सहयोगी हैं पत्नी कुसुम कुमार अनेक फुटकर कविताएँ, लेख, कहानियाँ चित्र, नाटक, फ़िल्म समीक्षाएँ
कुसुम कुमार (जन्म मेरठ, 1933) बीए, एलटी
दिल्ली में कई वर्ष निजी स्कूलों में हिंदी और अँगरेजी का अध्यापन दिल्ली के ही सरकारी हायर सैकंडरी स्कूल में 1959 से 1965 तक अध्यापिका
प्रकाशकीय
अभी देश आजाद नहीं हुआ था लेकिन फिजी में आज़ादी की बयार अपनी रवानगी में बह रही थी एक तरफ़ जहाँ आज़ादी को ले कर लोगों में जोश व उत्साह था वहीं दूसरी तरफ़ देश के बँटवारे की आशंका भी थी संक्रमण के उस दौर में ही राजकमल प्रकाशन प्रा लि ने 28 फ़रवरी 1947 को सृजन की यह राह चुनी कठिन हालात में हमने साहित्य, कला, इतिहास, दर्शन आदि के स्पर्श से अपने स्वाधीन राष्ट्र की खोज अपनी भाषा हिन्दी में करनी शुरू की, जिसका चेहरा धीर धीरे इन संघर्षों के बीच बनना शुरू हुआ मुक्तिबोध के शब्दों में कहें तो तब हमारे पास ईमान का डंडा, बुद्धि का बल्लम, अभय की गेती, हृदय की तगारी थी हमें बनाने थे आत्मा के, मनुष्य के नए नए भवन, हमने अभिव्यक्ति के सारे खतरे उठाए
सृजनपथ के इस कठिन सफर में हमने हजारों कालजयी कृतियों का प्रकाशन किया और अभिव्यक्ति के तमाम खतरे उठाते हुए हिन्दी भाषी बौद्धिक मानस के निर्माण एवं विकास में अपना विनम्र योगदान दिया जो संभवतः हिन्दी प्रकाशन जगत में मात्रा और गुण की दृष्टि में सर्वाधिक है
हर वर्ष राजकमल समूह तकरीबन 150 नई किताबें प्रकाशित कर रहा है यदि दैनिक औसत निकाला जाए तो पुनर्मुद्रण सहित प्रतिदिन लगभग तीन पुस्तकें प्रकाशित करने का हमारा रिकार्ड है
आलोचना ओर नई कहानियाँ जैसी हिन्दी की विशिष्ट पत्रिकाएँ भी हमने प्रकाशित कीं आलोचना का प्रकाशन आज भी जारी है मुख्यतः, हिन्दी प्रदेश हमारा लक्ष्य क्षेत्र है और हिन्दी पाठकों तक पहुँचना हमारा ध्येय प्रत्येक हिन्दी भाषी पाठक तक अपनी पहुँच सुनिश्चित करने के लिए हमने सस्ते मूल्यों पर उत्कृष्ट पुस्तकों के पेपरबैक संस्करण निकालने शुरू किए इस दिशा में हमारा प्रयास निरन्तर जारी है
हमने समाज के लगभग हर वर्ग के लिए हर विषय पर किताबें प्रकाशित कीं छह दशकों की इस जोखिमपूर्ण यात्रा में हमने लेखकों और पाठकों की एक पीढ़ी तैयार की, जो विद्वान लेखकों और गंभीर तथा सुधी पाठकों के सहयोग से ही संभव हो सका है बच्चों, किशोरों व प्रौढ़ों सबके लिए हमने साहित्य, कला, विज्ञान, क़ानून, स्वास्थ्य, शिक्षा, स्त्री विमर्श व दलित साहित्य, मीडिया आदि विषयक पुस्तकें प्रकाशित कीं तथा भारतीय परंपरा और संस्कृति का प्रसार करने का विनम्र प्रयास किया मौलिक हिन्दी ग्रन्यों के साथ साथ हमने अन्य भारतीय भाषाओं व श्रेष्ठ विदेशी साहित्य का अनुवाद प्रकाशित किया, ताकि हमारे पाठक समकालीन सृजन की शैली व कथ्य से अवगत हो सकें विश्व क्लासिक शृंखला हमारी ऐसी महत्त्वाकांक्षी योजना है, जिसके तहत हमने लेव तोल्सतोय, जैक लण्डन, मोपासा गिओगी प्लेखानोव, कोस्तांतिन फेदिन, सिंक्लेयर लुइस, मिखाइल शोलोखोव, स्तांधाल, मेरी वोल्स्टक्राफ़्ट चेखव आदि महान रचनाकारों की पुस्तकें सजिल्द और पेपरबैक संस्करणों में प्रकाशित की हैं
हमने मैथिली के समकालीन प्रतिनिधि पाँच रचनाकारों की कृतियों को मूल मैथिली में प्रकाशित किया है मूर्द्धन्य लेखकों और पाठकों के बीच निरन्तर संवाद का कार्यक्रम लेखक पाठक संवाद भी हमने चलाया है, जिसे काफ़ी सराहा गया है संथाली में पुस्तकें प्रकाशनक्रम में हैं
हिन्दी के वरिष्ठ रचनाकारों की रचनाओं को समग्र रूप से रचनावलियों और संचयिताओ के रूप में प्रस्तुत करने की हमारी कोशिशों को भी सराहा गया है इस क्रम में अब तक हमने सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, हजारीप्रसाद द्विवेदी, हरिवंशराय बच्चन, हरिशंकर परसाई, गजानन माधवन मुक्तिबोध, नागार्जुन, फणीश्वरनाथ रेणु, सआदत हसन मंटो, रामवृक्ष बेनीपुरी, महात्मा ज्योतिबा फुले, राहुल सांकृत्यायन आदि की रचनावलियाँ तथा अज्ञेय, मैथिलीशरण गुप्त, नामवर सिंह, रघुवीर सहाय, भवानी प्रसाद, श्रीकान्त वर्मा आदि की महत्वपूर्ण रचनाओं की संचयिताएँ प्रकाशित की हैं प्रमुख रचनाकारों की चित्रावलियाँ प्रकाशित करने का सौभाग्य भी हमें प्राप्त हुआ है
हम नोबेल पुरस्कारप्राप्त कामीला खोसे सेला और बुकर पुरस्कारप्राप्त अरुंधति रॉय की किताबों के प्रकाशन के लिए गौरव का अनुभव करते हैं अभी तक हमारे प्रकाशन की लगभग पच्चीस पुस्तकों को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित होने का गौरव प्राप्त हुआ है हमारे पाँच लेखकों को ज्ञानपीठ सम्मान व चार लेखकों को सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है, जो हमारे लिए प्रसन्नता की बात है विभिन्न राज्यों की अकादमियों और अन्य सम्मानों/पुरस्कारों से हमारे रचनाकार लगभग हर वर्ष सम्मानित होते रहे हैं
किसी भी समृद्ध भाषा की सब से बड़ी विशेषता यह है कि उसके शब्दकोशों में प्रत्येक शब्द का बहुत ही वैज्ञानिक और व्यवस्थित ढंग से स्पष्ट निरूपण हो, ताकि उसके प्रयोगों के संबंध में किसी भी प्रकार के भ्रम या संदेह के लिए कोई अवकाश नहीं बचे हमने भाषा की समृद्धि और विकास को ध्यान में रखते हुए पालि हिन्दी शब्दकोश, हिन्दी हिन्दी शब्दकोश, हिन्दी अंग्रेजी कोश, अंग्रेजी हिन्दी मुहावरा कोश, मानविकी पारिभाषिक शब्दकोश शृंखला, राजनीति कोश, अर्थशास्त्र कोश आदि प्रकाशित किए हैं अरविंद सहज समांतर कोश इसी दिशा में अपनी तरह का अकेला प्रयास है हम आगे भी इसी तरह के मानक शब्दकोशों का प्रकाशन करते रहेंगे गंभीर व सुधी पाठकों द्वारा इसमें किसी संशोधन व परिष्कार हेतु सुझाव व प्रतिक्रिया आने पर हम सहर्ष उन पर विचार करेंगे
इतना ही नहीं, हमने संकट के क्षणों में सामाजिक सक्रियता बढ़ाने का भी प्रयास किया और सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदा में पीड़ितों के सहायतार्थ धन जुटाया
सामाजिक संलग्नता और सृजन के इस कठिन सफर में पाठकों का सहयोग और निरन्तर संवाद जरूरी है कम मूल्य में श्रेष्ठ साहित्य उपलब्ध कराना शुरू से ही हमारा ध्येय रहा है और हमारा यह प्रयास आगे भी जारी रहेगा
प्रस्तुति
प्रस्तुत है अरविंद सहज समांतर कोश
उन्नीसवीं सदी आधुनिक हिंदी की तैयारी की सदी थी उस के पहले दशक में इंशा अल्लाह खाँ ने रानी कैतकी की कहानी ( 1803) लिखी (जिस में हिंदवी छुट किसी और बोली का पुट न मिले) और अस्सी आदि दशक के अंत में रेवरेंड जे न्यूटन ने एक ज़मीदार का दृष्टांत कहानी ( 1887) लिखी इन दोनों के बीच स्वामी दयानंद ( 1821 1883) ने समाज सुधार आदोलन में हिंदी को माध्यम बनाया और भारतेंदु हरिश्चंद ( 1850 1885) ने उसे परंपरा से जुड़ी नईं सांस्कृतिक भूमि दी
बीसवीं सदी ने हिंदी का चतुर्दिक विकास देखा महात्मा गाँधी ( 1669 1948) के नेतृत्व में हिंदी राजनीतिक संवाद की भाषा और जनता की पुकार बनी पत्रकारों ने इसे माँजा, साहित्यकारो ने सँवारा उन दिनों सभी भाषाओं के अखबारों में तार द्वारा और टेलिप्रिंटर पर दुनिया भर के समाचार अँगरेजी में आते थे इन में होती थी एक नए, और कई बार अपरिचित, विश्व की अनजान अनोखी तकनीकी, राजनीतिक, सांस्कृतिक शब्दावली जिस का अनुवाद तत्काल किया जाना होता था ताकि सुबह सबेरे पाठकों तक पहुँच सके कई दशक तक हज़ारों अनाम पत्रकारों ने इस चुनौती को झेला और हिंदी की शब्द संप्रदा को नया रंगरूप देने का महान काम कर दिखाया पत्रकारों ने ही हिंदी की वर्तनी को एकरूप करने के प्रयास किए तीसादि दशक में फ़िल्मों को आवाज़ मिली बोलपट या टार्की द्वी का युग शुरू हुआ अब फ़िल्मों ने हिंदी को देश के कोने कोने में और देश के बाहर भी फैलाया संसार भर में भारतीयों को जोड़े रखने का काम बीसवीं सदी में सुधारकों, स्वतंत्रता सेनानियों, पत्रकारों, साहित्यकारों और फ़िल्मकारों ने बड़ी खूबी से किया मध्ययुगीन भावभूमि में पनपी, अँगरेजी से आक्रांत शासन और शिक्षा प्रणाली से दबी भाषा को बड़ी छलाँग लगा कर संसार की आधुनिकतम भाषाओं के समकक्ष आना था बीसवीं सदी में ही हिंदी वालों ने आधुनिक कोशकारिता में क़दम बढ़ाए सदी के पूर्वार्ध में हिंदी साहित्य सम्मेलन और काशी नागरी प्रचारिणी सभा जैसे संस्थानों ने हिंदी के विशाल कोश बनवाए 1947 में स्वाधीनता के साथ ही विकास का नया युग आरंभ हुआ सदी के उत्तरार्ध में क़दम रखते ही 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लाग हुआ और हिंदी को भारत की राजभाषा का दर्जा प्राप्त हुआ एक दो वर्ष बाद ही ज्ञानमंडल वाराणसी नें बृहत् हिदी कोश प्रकाशित किया, जो तभी से अपने तमाम नए संस्करणों के साथ अब तक हिंदी हिज्जों का मानक कोश बना हुआ है पंडित नेहरू (889 1964) और मौलाना आज़ाद (1888 1958) ने नई हिंदी शब्दावली के विकास कै लिए अनेक तरह के आयोग गठित किए अनेक कोशकारों को अनुदान दिए गए इस प्रकार हमारी हिंदी खुले मैदानों की जन सभाओं में । सिनेमाघरों में । विद्यालयों के प्रांगणों में, विश्व साहित्य से प्रेरित मनों में । अनुवादों में, स्वतंत्र रचनाओं में और दफ्तरों की मेज़ों तक पर बनती सँवरती रही
सातवीं सदी में छोटे से क्षेत्र में सुगबुगाती खड़ी बोली अब इक्कीसवीं सदी में विश्वभाषा बन चुकी है सच यह है कि आज जो हिंदी है वह कभी किसी एक धर्म की भाषा नहीं रही न ही अब वह किसी एक प्रदेश या देश तक सीमित है भारत से बाहर मारीशस, फीजी, गायना, सूरीनाम, त्रिनिदाद, अरब अमीरात, इंग्लैंड, अमरीका, कनाडा आदि अनेक देशों में लोग इसे दैनिक व्यवहार में लाते हैं बोलने समझने वालों की संख्या मे आज यह संसार की दूसरी या तीसरी भाषा है दुनिया भर में फैले हिंदी वाले अलग अलग जगहों से नई जानकारी और नई शब्दावली से इसे समृद्ध कर रहे हैं हिंदी की सब से बड़ी शक्ति यह है कि हर सभ्यता और संस्कृति से यह विचार और शब्द अपने में समोती रहती है आज यह काम बड़े पैमाने पर हो रहा है टेलिविज़न, कंप्यूटर और इंटरनैट हिंदी के विकास की नई संभावनाएँ ले कर आए हैं तेजी से एक नई हिंदी बन रही है इस नई सदी के अंत तक हिंदी में कितने बदलाव आएँगे, यह अभी कहा नहीं जा सकता यह बात पक्की है कि जो हिंदी बनेगी वह पूरी तरह जीवंत भाषा होगी
महाप्रयास की पिछली सदी में बड़े काम हुए बड़े सपने देखे गए ऐसा ही एक सपना मैं (अरविंद कुमार) ने देखा था रोजट के अँगरेजी थिसारस के प्रथम प्रकाशन के ठीक सो साल बाद 1952 में उस का अनुपम कोश पहली बार मेरे हाथ लगा और मैं ने एक सपना देखा हिंदी में भी कोई ऐसा कोश बनेगा इतनी सारी समितियाँ और आयोग बने हें हिंदी कोशकारिता में एक उबाल सा आया है इस उबाल में से हिदी थिसारस भी निकलेगा इंतज़ार में बीस साल बीत गए
1963 से मैं मुंबई में माधुरी पत्रिका का संपादक था, 26 दिसंबर 1973 की रात को अचानक कौंधा कि किसी ने अब तक हिंदी थिसारस नहीं बनाया तो इस का मतलब है कि यह काम मुझे ही करना है सपना मेरा है, मुझे ही साकार करना होगा मन स्कूर्ति से भर गया
सुबह सैर के समय मैं ने कुसुम से उस सपने के बारे में बताया और कहा कि मुझे यह करना है यह पूरा करने के लिए संभवतः मुझे संपादकी छोड़ कर वापस घर जा कर शायद आयहीन हो कर जैसे तैसे गुज़ारा कर के यह काम करना पड़े एक पल सोचे बग़ैर कुसुम ने ही कर दी अब हम दोनों दंपति होने के साथ साथ सहकर्मी हो गए वहीं हैंगिंग गार्डन की तरों ताज़ा हवा में पूरी योजना और कार्यक्रम बना लिए गए हम लोगों ने कुछ समय संदर्भ सामग्री इकट्ठा करने और विशेष तरह के इंडैक्स कार्ड आदि बनाने में त्नगाया फिर घर पर सुबह शाम किताब पर काम कर के देखा (तब से अब तक हमारे परिवार में समातंर कोश किताब के नाम से ही जाना जाता है) 19 अप्रैल 1976 को हम ने नासिक नगर में गोदावरी स्नान के बाद किताब पर बाक़ायदा काम शुरू किया 1978 में, जब बच्चे शिक्षा के हिसाब से शहर बदलने लायक़ हो गए, तो हम मुंबई से विदा हो कर दिल्ली घर चले आए
जिस काम के कुल दो साल में पूरा हो जाने की कल्पना की गई थी, उस में पूरे बीस साल लग गए जो काम कार्डो पर शुरू हुआ था, 1993 से वह कंप्यूटर पर चला गया सच तो यह है कि कार्डों पर काम करने के लिए हमें सहायकों की पूरी फ़ौज चाहिए होती और बीसियों साल लगे रहते तो भी आधुनिक तकनीक के बिना, हम दो जन वह काम कभी पूरा नहीं कर पाते इस नई तकनीक तक हम कभी न पहुँचते यदि नए विचारों वाली नई पीढी के हमारे बेटे डाक्टर सुमीत कुमार । ऐमबीबीऐस ऐमऐस ने हमें कंप्यूटर के उपयोग के लिए मजबूर न कर दिया होता और ईरान में डाक्टरी कर के कंप्यूटर के लिए आर्थिक संसाधन न जुटाए होते यही नहीं सुमीत ने अपने आप पढ़ कर कंप्यूटर विद्या सीखी और समांतर कोश बनाने के लिए प्रविधि भी बनाई
यह छोटी सी कहानी 20वीं सदी में तकनीक के विकास की कहानी भी हैं और नई दुनिया के रोजट थिसारस से प्रेरित और देश की समृद्ध कोश परंपरा के निघंटुऔर अमर कोश जैसे ग्रंथों से वर्तमान और भविष्य को जोड्ने वाले हमारे थिसारस की राम कहानी भी यह कोई अघटन घटना घटीयसी नहीं थी कि जिस सदी में हिंदी भाषियों द्वारा आधुनिक कोशकारिता आरंभ की गई, उस का अंत होते होते हिंदी में पहला आधुनिक थिसारस समांतर कोश भी आ गया
और यह भी आश्चर्यजनक नहीं है कि इक्कीसवीं सदी में प्रवेश के पाँच वर्षे बाद अब एक नई तरह का अरविंद सहज समांतर कोश हम दे पा रहे हैं
समातंर कोश का पहला प्रकाशन दिसंबर 1996 में हुआ उस में हमारे 4,50,000 से अधिक अभिव्यक्तियों के डाटाबेस में, से चुनी गईं 1,60,850 अभिव्यक्तियाँ थीं इन्हें 1100 शीर्षको के अंतर्गत 23 ,759 उपशीर्षकों में रखा गया था आगे बढ़ती हिंदी ने कोश को भारी समर्थन दिया कुछ ही सप्ताह बाद उस का रीप्रिंट हुआ, और अब भी होता रहता है
प्रकाशन के तुरंत बाद जनवरी 1997 से ही हम लोग डाटा के परिष्कार में लग गए थे
1 जो अभिव्यक्तियाँ समांतर काले में सम्मिलित की गई थीं, उन्हें फिर से जाँचा गया किसी
भाव विशेष के लिए कुछ आवश्यकता से अघिक पाई गई (जैसे शिव के लिए 700) उन्हें कम किया गया
2 कुछ महत्त्वपूर्ण भाव छूट गए थे, उन्हें सम्मिलित किया गया
इस में हमें सब से बड़ी सहायता मिली हिंदी डाटा को द्विभाषी बनाने से
हम हिंदी डाटा में समकक्ष अँगरेजी शब्दावली सम्मिलित कर रहे थे हमारे विचार से सांस्कृतिक वैश्वीकरण से जुड़ना 21 वीं सदी में देश की प्राथमिकताओं में से एक है कंप्यूटरित हिंदी संकलन में उपयुक्त अँगरेजी अभिव्यक्तियाँ जोड़ना हमें इस दिशा में अत्यावश्यक क़दम लगा यह काम दो चरणों में किया गया पहले चरण में हिंदी डाटा को आधार बना कर अँगरेजी शब्द डाले गए इस में आरंभिक इनपुट हमारी बेटी मीता ने दिया उस ने समांतर कोश के सभी हिंदी शीर्षको औंर उपशीर्षकों के लिए हाशियों में अँगरेजी अर्थ लिख दिए अब हमारा काम था कि उन को आधार बना कर उपयुक्त अँगरेजी शब्द खोजें और लिखें स्वाभाविक ही था कि इस प्रक्रिया में अँगरेजी की अपनी अनेक महत्त्वपूर्ण अभिव्यक्तियाँ छूट जातीं इस लिए दूसरे चरण में अँगरेजी शब्दकोशों को ए से ज़ैड तक छाना गया आवश्यक शब्दों को हिंदी के समकक्ष रखा गया बहुत से ऐसे भाव और नए तकनीकी विकास सामने आए जो हमारे डाटा में नहीं थे इस से समांतर कोश वाले डाटा को आधुनिकतम बनाने में अमूल्य सहायता मिली
परिष्कार के इन दोनों चरणों के पूरा होने में सात से अधिक साल लगे इस द्विभाषी संकलन में अब 8,50,000 से अधिक प्रविष्टियाँ हैं यदि इस में वे उभिव्यक्तियाँ भी जोड़ ली जाएँ जो हमारे मूल डाटा मे थीं और नए डाटा मे अभी तक सम्मिलित नहीं की गई हैं, तो यह संख्या । 10 लाख पार कर जाएगी संभवत यह विश्व की विशालतम कंप्यूटरित द्विभाषी ( अँगरेजी हिंदी) शब्दावली है
हमारा शब्द संकलन फौक्सप्रो नाम के कप्यूटर प्रोग्राम में डाटाबेस फ़ाइल है डाटाबेस एक तरह की तालिका होती है, इस का लाभ यह होता है कि एक बार डाटा तैयार हो जाए तो उसे उलट पलट कर देखा जा सकता है इस कच्चे माल को तरह तरह से मेनीपुलेट कर के कई तरह कें कोश बनाए जा सकते हैं हर कोश के लिए उस तालिका में एक एक रिकार्ड को चयनचिह्नि या शौर्ट लिस्ट करना होता है यह काम श्रमसाध्य है और समयसाध्य भी
अरविंद सहज समांतर कोश उसी परिष्कृत डाटा का पहला फल है इस के बाद अनेक आकार प्रकार के हिंदी थिसारसों की रचना के साथ साथ जिन अन्य थिसारसों के निर्माण की संभावना है और जिन में हमारी तत्काल और सहज रुचि है, वे हैं
हिंदी अँगरेजी थिसारस हर वर्ग के हिंदी भाषी के लिए आज अँगरेजी भाषा का सम्यक् ज्ञान आवश्यक हो गया है विश्वज्ञान को आत्मसात करने और विदेशों से संपर्क के लिए हमारे पास अँगरेजी सुलभ साधन है अपनी सीमित अँगरेजी शब्द संपदा को बढ़ाना आज हिंदी विरोध नहीं, बल्कि हमारी क्षमताओं का विकास है हिंदी अँगरेजी कोश इस में सहायक नहीं हो पाते अकेली अँगरेजी के थिसारसों का उपयोग पाठक न जानता है, न सही तरह से कर पाता है, न उसे अपने संदर्भ से जोड़ पाता है उसे चाहिए ऐसा थिसारस जो हिंदी शब्दों के सामने न सिर्फ़ अनेक हिंदी विकल्प रखे, बल्कि उन से भी ज्यादा अँगरेजी शब्द पेश करे । ताकि वह अपने काम की अँगरेजी पा सके
अँगरेजी हिंदी थिसारस दिन रात हमें अँगरेजी शब्दावली से काम पड़ता है और उस के लिए हिंदी शब्दावली की तलाश रहती है लेकिन हमारी तलाश अपंग रहती है द्विभाषी कोश हैं लेकिन उन की अपनी सीमाएँ हैं उन का काम अर्थ बताना है, दूसरी भाषा के कई शब्द देना नहीं प्रस्तावित द्विभाषी थिसारस पाठक को शब्दों के जगमग मणि भंडार में खड़ा कर देंगे एक ही भाव के लिए अँगरेजी और हिंदी के अनेक शब्द
भारत के लिए बिल्कुल अपना अँगरेजी थिसारस हमारी राय में यह अन्य थिसारसों जितना ही महत्त्वपूर्ण है संसार में अँगरेजी थिसारसों की कमी नहीं है लेकिन वे सभी अमरीकी या ब्रिटिश पाठकों को ध्यान में रख कर बनाए गए हैं भारतीय अँगेरजी पाठक के लिए अँगरेजी थिसारस असंतोषजनक सिद्ध होते हैं वे विश्वज्ञान को हमारे संदर्भो से नहीं जोड़ते हम ने अपने द्विभाषी डाटा को पूरी तरह अंतरराष्ट्रीय रखते हुए, उस में भारतीय आवश्यकताओं का पूरा ध्यान रखा है इसे दो संस्करणों में उपलब्ध कराने का विचार है उच्च स्तर का अधिक शब्दों वाला संस्करण और भारतीय स्कूलों के लिए अलग से छोटा संस्करण
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