पुस्तक के विषय में
बुंदेलखंड गंगा, यमुना के दक्षिण तथा पश्चिम में बेतवा नदी से लेकर पूर्व में विध्यवासिनी देवी के मंदिर तक, दक्षिण में चंदेरी. सागर तथा बिलहरीजिलों के साथ नर्मदा तक फैला हुआ है । इस क्षेत्र में यमुना, टौंस, धसान, बेतवा. काली सिंध आदि नदियों के किनारे पाषाणयुगीन संस्कृति के अवशेष मिले हैं। देवगढ़ का दशावतार मंदिर, प्रतिहारकालीन जराय मठ, बरुआ सागर तथा चंदेल शासकों खारा निर्मित खजुराहो के मंदिर यहां विकसित मूर्तिशिस्थ्य तथा स्थ्यापत्य के सर्व श्रेष्ठ नमूने हैं ।
सुविख्यात कलाविद, इतिहासकार, एवं साहित्यकार डॉ. महेन्द्र वर्मा ने इस ग्रंथ में मूर्तिशिल्पों में केश सज्जा और आभूषणों पर अत्यंत ही शोधपरक और रोचक जानकारी दी है।
भूमिका
षोड्स महाजनपदों में चेदि, बाद में दशार्ण, चंदेलों के समय जेजाकभुक्ति अथवा जेजाभुक्ति तथा बुंदेल शासकों के नाम पर बुंदेलखंड नाम से अभिहित प्रदेश की सीमाएं विभिन्न राजवंशों के समय अलग-अलग निर्धारित होती रहीं । अधिकांश मतों के अनुसार बुंदेलखंड गंगा, यमुना के दक्षिण तथा पश्चिम में बेतवा नदी से लेकर पूर्व में विंध्यवासिनी देवी के मंदिर तक, दक्षिण में चंदेरी, सागर तथा बिलहरी जिलों के साथ नर्मदा तक फैला हुआ था । बुंदेलखंड में यमुना, टौंस, धसान, बेतवा, काली सिंध आदि नदियों के किनारे पाषाणयुगीन संस्कृति के अवशेष मिले हैं । इस क्षेत्र में चौथी शती से लेकर आधुनिक काल तक के अभिलेख प्राप्त हुए हैं ।
बुंदेलखंड के क्षितिज पर द्वितीय शताब्दी से ही स्थापत्य तथा मूर्तिकला के क्षेत्र में गतिविधियां प्रारंभ हो गई थीं । सांची (विदिशा) और भरहुत (सतना) में विशाल बौद्ध-स्तूप निर्मित हुए तथा वेदिकाओं पर मूर्तियां गढ़ी गई जिनका अनुसरण बाद की कला-शैलियों ने किया । पन्ना जिले में स्थित नचना-कुठरा का पार्वती मंदिर तथा विश्व प्रसिद्ध हैवगढ़ का दशावतार मंदिर स्थापत्य एवं मूर्तिशिल्प की दृष्टि से बेजोड़ नमूने हैं ।
चंदेलकालीन खजुराहो के मंदिर मूर्तिशिल्प की दृष्टि से जहां अत्यंत महत्वपूर्ण हैं वहीं इनका स्थापत्य भी प्रभावोत्पादक है । विभिन्न कला समीक्षकों, पुरातत्वविदों तथा भारतीय मूर्तिशिल्प के विद्वानों ने समय-समय पर इन मंदिरों एवं वहां स्थित मूर्तियों का अध्ययन एवं विवेचन प्रस्तुत किया है। डा. महेन्द्र वर्मा बुंदेलखंड के ख्यात चित्रकार, साहित्यकार तथा कला मनीषी हैं। इन्होंने यहां के मंदिरों, दुर्गो, स्मारकों एवं यत्र-तत्र बिखरी पुरा संपदा का विशद अध्ययन कर अपने शोधपरक लेखों एवं विभिन्न पुस्तकों के प्रकाशन द्वारा कला समीक्षकों के समक्ष रोचक तथ्य प्रस्तुत किए हैं।
शोध ग्रंथ चंदेलकालीन कला एवं संस्कृति (डा. महेन्द्र वर्मा) चांदपुर-दुधई के परिप्रेक्ष्य में अपने आप में बहुत ही महत्त्वपूर्ण तथा उपयोगी है । प्रस्तुत पुस्तक बुंदेलखंड के मूर्तिशिल्प से आभास होता है कि बुंदेलखंड के मूर्तिशिल्प पर काम करने वाले शोधार्थियों के लिए यह पुस्तक अत्यंत महत्त्वपूर्ण होगी ।
अनुक्रम
अध्याय-1
बुंदेलखंड
1
अध्याय-2
राजवंशो की निर्माण योजना
13
अध्याय-3
बुंदेलखंड के मूर्तिशिल्प
29
अध्याय-4
मृण्मूर्तिया और मूर्तिशि्ल्प
51
अध्याय-5
केशा विन्यास
63
अध्याय-6
प्रतिमाओं में आभूषणों की परंपरा
73
Hindu (881)
Agriculture (85)
Ancient (1016)
Archaeology (607)
Architecture (532)
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