पुस्तक के विषय में
विज्ञान, धर्म और कला के अंतर-संबंध को समझाते हुए ओशो कहते है: ये तीन बातें मैंने कहीं। विज्ञान प्रथम चरण है। वह तर्क का पहला कदम है। तर्क जब हार जाता है तो धर्म दूसरा चरण है, वह अनुभूति है। और जब अनुभूति सघन हो जाती है तो वर्षां शुरू हो जाती है, वह कला है। और इस कला की उपलब्धि सिर्फ उन्हें ही होती है जो ध्यान को उपलब्ध होते हैं। ध्यान की बाई-प्रॉडक्ट है। जो ध्यान के पहले कलाकार है, वह किसी न किसी अर्थों में वासना केंद्रित होता है। जो ध्यान के बाद कलाकार है, उसका जीवन, उसका कृत्य, उसका सृजन, सभी परमात्मा को समर्पित और परमात्मामय हो जाता है।
इस पुस्तक के कुछ विषय बिंदु:-
सत्य की खोज, सत्य का अनुभव सत्य की अभिव्यक्ति
सर्विस अबँव सेल्फ, सेवा स्वार्थ के ऊपर
क्या हम ऐसा मनुष्य पैदा कर सकेंगे जो समृद्ध भी हो और शांत भी?
जिसके पास शरीर के सुख भी हों और आत्मा के आनंद भी?
जीवन क्रांति के तीन
सूत्र धर्म का विधायक विज्ञान
प्रवेश के पूर्व
विज्ञान ने शक्ति तो दे दी, लेकिन शांति विज्ञान के देने की सामर्थ्य नही है । उसका कोई सवाल ही नहीं है उससे अपेक्षा भी नहीं करनी चाहिए । उससे मांग भी नहीं करनी चाहिए वह कोई प्रश्न ही नहीं है वह तो ऐसा है जैसे कोई गणित से कहने लगे कि कविता भी आप ही हमें दो तो गणित कविता केंसे देगा? गणित गणित देगा, गणित की अपनी जरूरत है । लेकिन गणित कविता नहीं दे सकता । या कोई कविता से कहने लगे कि हमे फैक्ट्री बना दो तो कविता फैक्ट्री कैसे कविता गीत दे सकती है प्रेम दे सकती है आनंद की पलक दे सकती है नृत्य दे सकती है लेकिन फैक्ट्री कैसे देगी ये तो पागलपन की बात है कोई कान से कहने लगे कि देखो, और कोई आंख से कहने लगे कि सुनो-वैसी ही बातें है विज्ञान से अपेक्षा भी नहीं करने का सवाल है।
शानि तो देगा धर्म शांति का विज्ञान धर्म है और शक्ति का विज्ञान विज्ञान है अंतस-चेतना कैसे शांत होती चली जाए,कितनी निर्विकार कितनी आनंद को उपलब्ध होती चली जाए, इसकी जो चेष्टा और साधना है वह धर्म है लेकिन धर्म केवल शांति दे सकता है शक्ति नहीं दे सकता।
अकेली शांति निर्बल कर देती है, कमजोर कर देती है अकेली शांति एक तरह की इपोटेस पैदा करती है, एक तरह की नपुंसकता पैदा करती है भारत जो इतना इंपोटेंट हो गया, उसका कोई और कारण नहीं है भारत की इतनी दीनता दरिद्रता और कमजोरी मे भारत के उन धार्मिक लोगों का हाथ है जिन्होंने विज्ञान का निषेध करके धर्म को विकसित किया कमजोर हो ही जाएगा। और शांत आदमी कमजोर हो जाए, यह उतना ही खतरनाक है जितना अशांत आदमी शक्तिशाली हो जाए एक सी बातें है ये दोनो शांत आदमी कमजोर हो जाए यह सारी दुनिया के लिए खतरनाक है । क्योंकि तब शांत आदमी दुनिया में परिवर्तन की सारी सामर्थ्य खो देता है। तब अच्छा आदमी भला आदमी दुनिया को बदलने की सारी हिम्मत खो देता है तब उसके पास एक ही काम रह जाता है कि अपने मंदिरों में बैठ जाए और भगवान की प्रार्थनाएं करता रहे । और वह भी तभी तक, जब तक कोई ताकतवर आदमी आकर उसके भगवान की मूर्ति को तोड़ फोड़ कर न फेंक दे, तभी तक प्रार्थनाएं करता रहे।
और जब कोई धीरे-धीरे कमजोर होता चला जाता है तो यह भी खयाल मे लें लें कि कमजोर आदमी बहुत दिन तक शांत भी नहीं रह सकता दीन-हीन आदमी बहुत दिन तक शांत भी नहीं रह सकता कष्ट में पड़ा हुआ आदमी बहुत दिन तक शांत भी नहीं रह सकता । तब फिर अशांति का जन्म शुरू हो जाएगा । और एक चक्कर शुरू होगा । अशांति का जन्म होगा तो विज्ञान की खोज शुरू हो जाएंगी । और विज्ञान शक्ति लाएगा, और अशांत आदमी के हाथो में शक्ति आ जाएंगी । यह चक्कर आज तक पूरी मनुष्यता को पीड़ित किए रहा है । एक विसियस सर्किल है। एक दुष्चक्र है। जिसमें आदमी पड़ गया । जैसे ही आदमी के हाथ में ताकत आती है, वह शात होने की कोशिश शुरू कर देता है ।
हिदुस्तान में जब शांति की और धर्म की लहर चली, उस वक्त हिदुस्तान बहुत समृद्ध था । बुद्ध और महावीर का वक्त हिदुस्तान मे स्वर्ण-वक्त था । बहुत समृद्ध था । एकदम सोने की चिडिया थी उस वक्त शांति की लहर और धर्म की बाते थी ।
शक्तिशाली आदमी शांत होने की कोशिश मे लग जाए तो धीरे-धीरे निर्बल हो जाता है । और निर्बल आदमी अशांत होता है तो अशांत होते से ही शक्ति की खोज मे लग जाता है ।
पूरब समृद्ध था, शांति की खोज की, दरिद्र हो गया । पश्चिम दरिद्र था, शक्ति की खोज की, समृद्ध हो गया । लेकिन अब तक शक्ति और शांति एक साथ निर्मित नही की जा सकी है । दोनो प्रयोग असफल हो गए। विज्ञान भी असफल हुआ, उससे हिरोशिमा और नागासाकी पैदा हुए । और अब तीसरा महायुद्ध पैदा होगा । धर्म भी अकेला असफल हो गया, उससे यह भारत के दीन-हीन, दरिद्र, भिखारी पैदा हुए, गुलाम पैदा हुए, बडे से बडा देश छोटे-छोटे देशो के हाथो मे गुलाम बन गया । उनके चरण अता रहा, वे उसकी छाती पर जूते रख कर चलते रहे, वह पड़ा रहा । वह राम-राम जपता रहा, वह ओम ओम करता रहा।
ये दोनो प्रयोग असफल हो गए, जो अब तक आदमी ने किए है । एक तीसरे प्रयोग में सारी सभावना और सारा भविष्य है । और वह तीसरा प्रयोग है कि धर्म और विज्ञान के बीच सारा विरोध समाप्त हो । विरोध का कोई कारण भी नहीं है, कोई जगह भी नहीं है, कोई वजह भी नही है । धर्म और विज्ञान एक संस्कृति के अग बने । यह कब होगा और कैसे होगा?
अनुक्रम
1
विज्ञान, धर्म और कला
2
धर्म है बिलकुल वैयक्तिक
17
3
सेवा स्वार्थ के ऊपर
33
4
निर्विचार होने की कला
47
5
प्रेम और अपरिग्रह
65
6
मृत्यु का बोध
81
7
धर्म और विज्ञान का समन्वय
101
8
विधायक विज्ञान
115
9
विज्ञान स्मृति है और धर्म शान
133
10
धर्म को वैज्ञानिकता देनी जरूरी है
149
11
नया मनुष्य
159
ओशो एक परिचय
177
ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिजॉर्ट
178
ओशो का हिंदी साहित्य
179
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