कर्नाटक के तटीय जिले उडुपि के निवासी, स्वामी विराजेश्वर 'हंस' ने अपनी कॉलेज की शिक्षा मुम्बई से ग्रहण की और Ph.D की डिग्री अमेरिका में न्युजेसर्सी की 'रट्ङ्गर्स स्टेट युनिवर्सिटी' (Rutgers State University) से प्राप्त की, तपश्चात न्यूयार्क में आई.वी.एम. (IBM) के अनुसंधान विभाग (R&D) में वैज्ञानिक का पद ग्रहण किया और लगभग एक दशक तक वहाँ कार्यशील रहे और वहाँ की तत्कालीन उभरती हुई कंप्यूटर तकनीकी क्रांति में सहभागी रहे।
'भगवद्गीता का विज्ञान', गीता के ज्ञान को समझने का एक नया और अद्वितीय दृष्टिकोण है। यह विशेषतया इक्कीसवीं शताब्दी के वैज्ञानिक प्रवृति तथा तर्कसंगत मनोवृति वाले व्यक्तियों लिए उपयुक्त है। श्लोकों के अर्थ की अत्यंत तार्किक, स्पष्ट और सरल व्याख्या, वेदान्त के आलोचकों की आपत्तियों तथा संशय का निवारण करती है।
31 मई 2014 के दिन, स्वामी विराजेश्वर 'हंस' महासमाधि लेकर ब्रह्मलीन हो गये। इसके पूर्व वह लगभग सोलह वर्षों तक, बैंगलोर से 70 कि.मी. दूर, तमिलनाडु के अनुसोनी गाँव के वाहा क्षेत्र में स्थित अपने 'हंसा आश्रम' में रहते हुए, आध्यत्मिक मार्ग पर अग्रसर मुमुक्षु व अग्रवर्ती साधकों का मार्ग दर्शन करते रहे।
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