पुस्तक के विषय में
ज्योतिष के तीन हिस्से हैं।
एक, जिसे हम कहें अनिवार्य, एसेंशियल, जिसमें रत्ती भर फर्क नहीं होता। वही सर्वाधिक कठिन है उसे जानना। फिर उसके बाहर की परिधि है: नॉन-एसेंशियल, जिसमें सब परिवर्तन हो सकते हैं। मगर हम उसी जानने को उत्सुक होते हैं। और उन दोनों के बीच में एक परिधि है- सेमी एसेंशियल, अर्द्ध अनिवार्य, जिसमें जानने से परिवर्तन हो सकते हैं, न जानने से कभी परिवर्तन नहीं होंगे। तीन हिस्से कर लें। एसेंशियल,जो बिलकुल गहरा है, अनिर्वाय, जिसमें कोई अंतर नहीं हो सकता। उसे जानने के बाद उसके साथा सहयोग करने के सिवाय कोई उपाय नहीं है। धर्मों ने इस अनिवार्य तथ्य की खोज के लिए ही ज्योतिष की ईजाद की, उस तरफ गए। उसके बाद दूसरा हिस्सा है: सेमी-ऐसेंशियल, अर्द्ध अनिवार्य। अगर जान लेंगे तो बदल सकते हैं, अगर नहीं जानेंगे तो नहीं बदल पाएंगे। अज्ञान रहेगा, तो जो होना है वही होगा। ज्ञान होगा, तो ऑल्टरनेटिव्स हैं, विकल्प हैं, बदलाहट हो सकती है। और तीसरा सबसे ऊपर का सरफेस, वह है: नॉन-एसेंशियल। उसमें कुछ भी जरूरी नहीं है। सब सांयोगिक है।
प्रवेश से
ज्योतिष बहुत बातों की खोज थी । उसमें जो अनिवार्य है, उसके साथ सहयोग । वह जो होने ही वाला है, उसके साथ व्यर्थ का संघर्ष नहीं । जो नहीं होने वाला है, उसकी व्यर्थ की मांग नहीं, उसकी आकांक्षा नहीं! ज्योतिष मनुष्य को धार्मिक बनाने के लिए तथाता में ले जाने के लिए परम स्वीकार मे ले जाने के लिए उपाय था । उसके बहुआयाम है ।
...जगत एक जीवंत शरीर है, आर्गेनिक यूनिटी है । उसमें कुछ भी अलग-अलग नहीं है; सब संयुक्त है । दूर से दूर जो है वह भी निकट से निकट से जुडा है; अजुड़ा कुछ भी नहीं है । इसलिए कोई इस भांति में न रहे कि वह आइसोलेटेड आइलैंड है । कोई इस भांति में न रहे कि कोई एक द्वीप है छोटा सा अलग- थलग ।
नहीं, कोई अलग- थलग नहीं है, सब संयुक्त है। और हम पूरे समय एक-दूसरे को प्रभावित कर रहे हैं और एक-दूसरे से प्रभावित हो रहे है। सड़क पर पड़ा हुआ पत्थर भी, जब आप उसके पास से गुजरते है तो आपकी तरफ अपनी किरणें फेंक रहा है। स्व भी फेंक रहा है । और आप भी ऐसे ही नहीं रूर रहे हैं, आप भी अपनी किरणें फेंक रहे है। मैंने कहा कि चाद-तारों से हम प्रभावित होते हैं । ज्योतिष का दूसरा और गहरा खयाल है कि चांद-तारे भी हमसे प्रभावित होते हैं । क्योंकि प्रभाव कभी भी एकतरफा नहीं होता । जब कभी बुद्ध जैसा आदमी जमीन पर पैदा होता है तो चांद यह न सोचे कि चांद पर उनकी, बुद्ध की, वजह से कोई तूफान नहीं उठते, कि बुद्ध की वजह से चांद पर कोई तूफानशांत नहीं होते! अगर सूरज पर धब्बे आते है और सूरज पर अगर तूफान उठते है और जमीन पर बीमारियां फैल जाती हैं, तो जब जमीन पर बुद्ध जैसे व्यक्ति पैदा होते हें और शांति की धारा बहती है और ध्यान का गहन रूप पृथ्वी पर पैदा होता है तो सूरज पर भी तूफान फैलने में कठिनाई होती है। सब संयुक्त है।
एक छोटा सा घास का तिनका भी सूरज को प्रभावित करता है और सूरज भी घास के तिनके को प्रभावित करता है। न तो घास का तिनका इतना छोटा है कि सूरज कहे कि तेरी हम फिकर नहीं करते और न सूरज इतना बड़ा है कि यह कह सके कि घास का तिनका मेरे लिए क्या कर सकता है । जीवन संयुक्त है! यहां छोटा-बड़ा कोई भी नहीं है, एक आर्गेनिक यूनिटी है- एकात्म है। इस एकात्म का बोध अगर आए खयाल में तो ही ज्योतिष समझ में आ ' सकता है, अन्यथा ज्योतिष समझ में नहीं आ सकता।
अनुक्रम
1
ज्योतिष: अदैूत का विज्ञान
2
ज्योतिष अर्थात अध्यात्म
45
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