आध्यात्मिक दृष्टि से, मैं इस पुस्तक को अपने जीवन का सर्वोच्च योगदान मानता हूँ। अपने जीवन के इस अन्तिम चरण में एक बार फिर से इस महान कार्य का ध्यानपूर्वक अध्ययन करते हुए मैंने देखा, कि मेरे गुरु ने वह हर संभव परिस्थिति ली जिसमें सच्चा ईश्वर-साधक स्वयं को पा सकता है, और उसका आध्यात्मिक रूप सामना करने के लिए सर्वश्रेष्ठ संभव मनोवृत्ति दर्शायी। विस्पर्स आध्यात्मिक साधक के लिए एक परम उत्कृष्ट पुस्तिका है। मुझे इस पर काम करने और इस महान ग्रन्थ को जनता के लिए एक नए रूप में प्रस्तुत करने में गहरा आशीर्वाद अनुभव हो रहा है।
क्योंकि यहाँ मुझे गुरुजी की कुछ प्रेरणाओं को, उनकी ऊँची ड़ान वाली बुलंद परिकल्पनाओं को, और लगभग अभिभूत करने उड़ान वाली परमानन्द की उनकी वास्तविक विशाल लहर को (जैसी यह अधिकांश लोगों को लगेगी) नए सिरे से आवृत्त करना पड़ा। मैंने जो किया है वह, एक भी परिकल्पना को बदले बिना, इसकी अभिव्यक्ति को और अधिक संक्षिप्त काव्यात्मक प्रवाह दिया है। स्वयं गुरुजी ने मुझे उनके लेखनों पर सम्पादक के रूप में कार्य करने के लिए कहा था, और मैंने ऐसा उनके अनेक प्रमुख कार्यों के साथ कियाः भगवद्गीता पर उनकी टीकाएँ (दी एसेन्स ऑफ भगवद्गीता नाम से), रूबाइयात आफ ओमर खैयाम की उनकी व्याख्याएँ, उनकी प्रथम पुस्तक, दी साइन्स आफ रिलिजन (परिवर्तित नाम, गॉड इज फॉर एवरीवन), और, मेरे अपने शब्दों में पर उनके द्वारा कथित शब्दों और लिखित टीकाओं पर आधारित, रेवलेशनस ऑफ क्राइस्ट प्रोकलेमड बॉय परमहंस योगानन्द।
इसके लेखक की राय में, यह पुस्तक, विस्पर्स फ्राम एटरनिटी उनके मुख्य साहित्यिक योगदानों में से है। जैसा कि एक बार उन्होंने एक कविता में लिखा थाः
जब मैं केवल एक सपना हूँ मेरी विस्पर्स फ्रॉम इटरनिटी को पढ़ो; मैं सदा इसके माध्यम से तुमसे बात करूँगा।
1950 की बसन्त में, मैं उनके निवास ट्वैन्टी नाइन पाम्स, कैलिफोर्निया में उनके साथ था। मेरे आध्यात्मिक विकास, और शिष्यत्व के मेरे जीवन का यह एक महत्त्वपूर्ण समय था। गुरुजी ने भगवद्गीता की अपनी व्याख्याओं को लिखवाने का कार्य पूरा कर लिया था, और मुझे सम्पादन में उनकी सहायता करने के लिए कहा था। हम इस बात पर चर्चा कर रहे थे कि किसी को उनकी रचनाओं को सम्पादकीय कलम से छूने की आवश्यकता ही क्यों है? मुझे लगता था कि वे, जिस प्रकार निश्चित रूप से परमचेतना से, और स्वाभाविक ढंग से (पुनः, ऐसा वे निश्चित रूप से करते थे) लिखते थे, सटीक व्याकरण और त्रुटिरहित शैली में भी लिखेंगे। पर हुआ यह कि, इस अन्तिम उम्मीद में, मैं कुछ ज्यादा ही आशावादी था।
परमहंस योगानन्द द्वारा लिखित, विस्पर्स फ्रॉम इंटरनिटी में, हमें अपने दिव्य पिता से याचना द्वारा नहीं, माँग द्वारा प्रार्थना करना सिखाया गया है. और इस प्रकार स्वयं को याचना के तरीके द्वारा सीमित नहीं करना है। लेखक प्रारम्भ में स्पष्ट करते हैं कि हमारी प्रार्थनाओं का सदा उत्तर क्यों नहीं दिया जाता। एक पिता की सारी सम्पत्ति पर उसके पुत्र द्वारा दावा किया जा सकता है, लेकिन एक भिखारी द्वारा नहीं। इसलिए लेखक हमें कहते हैं कि माँग करने के लिए, पहले हमें गहरे ध्यान में पिता के साथ हमारी भूली हुई पहचान का बोध होना चाहिए; हमें अवश्य, उचित जीवन जीकर, याद करना होगा कि ईश्वर ने हमें अपनी छवि में रचा है।
इस पावन पुस्तक में हमें दर्शाया गया है कि मृत और पुराने ढंग की प्रार्थनाओं को कैसे पुनजीर्वित किया जाए, और उनके जीवन्त गुणों द्वारा मौन सर्वशक्तिमान से कैसे उत्तर प्राप्त किया जाएँ। यह पुस्तक हमें सिखाती है कि, मृत प्रार्थनाओं को रटने की बजाए. अपनी प्रार्थनाओं को ईश्वर का आह्वान करने वाले प्रेम से कैसे परिपूर्ण किया जाए।
यहाँ हमें सिखाया जाता है कि दो अतियों से कैसे बचा जाए-छोटे स्व के अहंकारपूर्ण पथ प्रदर्शन से और ईश्वर पर अंधी, निष्क्रिय निर्भरता से। यह हमें सिखाती है कि जीवन को हर तरह से सफल बनाने के लिए, हम अपनी ईश्वर-प्रदत्त इच्छा शक्ति और एकाग्रता का प्रयोग कैसे करें, जो हमारे अहमों द्वारा नहीं बल्कि ईश्वर द्वारा निर्देशित हो। इसीलिए लेखक लिखते हैं: "मैं तर्क करूँगा, मैं इच्छा करूँगा, मैं कार्य करूँगा, पर आप मेरे तर्क, इच्छाशक्ति और कार्यकलाप का सही मार्गदर्शन करें, जो मुझे हर चीज़ में करना चाहिए।"
इस पुस्तक की प्रार्थनाएँ सीधे ईश्वर-सम्पर्क से उत्पन्न होने वाली भावनाओं के वर्णन द्वारा ईश्वर को निकट लाने में सहायता करती हैं। यहाँ ईश्वर को सुनिश्चित और वास्तविक रूप से अभि व्यक्त किया गया है। ब्रह्माण्डीय प्रतिमा असीम और अदृश्य की भव्य धारणा है जिसे सीमित, स्पृश्य और दृश्य बनाया गया है। प्रकृति, मानव, मन और सारी दृश्यमान वस्तुओं को एक भव्य दिव्य प्रतिमा रचने के लिए सामग्री के रूप में प्रयुक्त किया गया है जिस पर हम आसानी से ध्यान केन्द्रित कर सकें।
सार्वभौमिक प्रार्थनाओं के इस निर्झर से सभी धर्मों के अनुयायी पान कर सकते हैं। ये आह्वान आधुनिक वैज्ञानिक दिमाग के लिए उत्तर हैं, जो ईश्वर को बुद्धिमत्ता से खोजता है। इस पुस्तक में प्रार्थनाएँ बहुत विविधता से प्रस्तुत की गई हैं, और इसलिए हम में से प्रत्येक उन प्रार्थनाओं को चुन सकता है जो हमारी विशेष आवश्यकताओं के लिए सबसे उपयुक्त और सहायक हैं।
पाठक से मेरी विनम्र विनती अधोलिखित पंक्तियों में अभिव्यक्त की गई हैं:
इस पवित्र पुस्तक में शब्द रूपी पौधों को पुष्ट करने वाली मिट्टी में छिपी बोध की खानों के पास से, जल्दबाजी में किए गए बौद्धिक पठन के साथ नहीं गुजरें। जैसा कि लेखक हमें कहते हैं, एकाग्रचित्त, श्रद्धापूर्ण और ध्यानमय अध्ययन की कुदाल से उन्हें ध्यानपूर्वक, प्रतिदिन, और बार-बार खोदो। तब आप आत्म-बोध के अमूल्य रत्न को प्राप्त करेंगे।
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