भारतीय राष्ट्रीय संघर्ष को प्रबल और सशक्त बनाने, सामाजिक नवजागृति ताने और बौदिक कोलाहल को तीव्र करने में सरोजिनी नायडू ने जैसी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी उसका समूचा और व्योरेवार विवरण इस पुस्तक में उपलब्ध कराया गया है। यह मूलतः सरोजिनी नायडू का जीवन चरित है। इसमें उनके बहुआयामी व्यक्तित्व का अध्ययन ऐतिहासिक दृष्टि से किया गया है। विद्वान लेखिका ने यह प्रतिपादित किया है कि एक प्रबुद्ध साहित्य- कार के रूप में उभरी इस असाधारण महिला ने जीवन के आरम्भिक वर्षों में ही राष्ट्रीय जन-जागरण के महत्व को समझा और पूरे उत्साह और मनोयोग से वह लगातार राष्ट्रीय उत्थान के कार्य में जुटी रही। सरोजिनी नायडू के जीवन से यह प्रमाणित होता है कि वीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द में राष्ट्र को नेतृत्व प्रदान करने का साहसिक कार्य किस प्रकार के सुयोग्य व्यक्तियों ने किया। इससे यह भी साबित होता है कि निस्वार्थ सेवाभाव से ये प्रणेता आगे आये और उन्होंने देश को स्वतंत्र कराने के कार्य को सर्वोच्च महत्व दिया। तत्कालीन परिस्थितियों में सरोजिनी नायडू तथा उनके समान अनेक राष्ट्र नेताओं को कष्ट उठाने पड़े, यातनाएं सहनी पड़ीं तथा अपने निर्धारित कार्य, पेशे और अभिरुचि को प्रायः भुलाना भी पड़ा।
डा० श्रीमती रचना सिंह ने जहाँ एक ओर सरोजिनी नायडू के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डाला है, कवयित्री के रूप में उनकी रचनाओं के महत्व को सराहा है वहीं दूसरी ओर उनके राजनीतिक जीवन की सविस्तार समीक्षा करते हुए यह स्पष्ट किया है कि किस प्रकार भावनाओं के संसार में रहते हुए भी इस विदुषी ने लगातार राष्ट्रीय स्वातंत्र संघर्ष में भाग लिया। लेखिका ने आरब्ब में सरोजिनी नायडू के पारिवारिक जीवन और देश तथा विदेश में उनकी शिक्षा की चर्चा करते हुए उनकी साहित्यिक अभिरुचियों का विवरण दिया है। सरोजिनी नायडू के जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ उस समय आया जब उन्होंने बंगाल विभाजन से उपजी राजनीतिक चेतना से प्रभावित होकर राजनीतिक संघर्ष में भाग लेने का निश्चय किया और एक बार जो कदम आगे बढ़ाया वह कभी पीछे नहीं मोड़ा। यह उनकी चारित्रिक दृढ़ता को प्रकट करता है, उनकी प्रतिबदता को सिद करता है और प्राणपण से राष्ट्र सेवा के भाव को प्रमाणित करता है।
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