श्रीमद्भगवद्गीता एक अलौकिक एवं प्रासादिक ग्रन्थ है। श्रीगीताजीपर टीका, टिप्पणी, रहस्यपूर्ण अर्थ या भावका उद्घाटन आदि तो दूर, अभी भी हमारे समाजमें ऐसे बहुत से लोग हैं जो गीताजीके श्लोकोंका शुद्ध पाठ नहीं कर पाते हैं। हमारी भावना और प्रयास उन सभी महानुभावोंके लिये है जो गीता पढ़ना चाहते हैं। इसी सद्भावनासे प्रेरित होकर भगवान्की अहैतुकी कृपासे एक 'सरल गीता' तैयार की गयी है जिससे सामान्य शिक्षित व्यक्ति भी कम-से-कम श्रीमद्भगवद्गीताका ठीक ढंगसे पाठ करके अपना कल्याण कर ले। इस गीताका एकमात्र उद्देश्य सर्व-सामान्यको गीताके श्लोकोंको पढ़नेका अभ्यास कराना है।
दो पंक्तियोंमें छपे श्लोकोंको पढ़ते समय उसे आठ-आठ अक्षरका चार भाग बना लें अर्थात् आठ अक्षर गिनकर एक साथ पढ़नेसे एक चरण पूरा होगा। इसी प्रकार चार पंक्तियोंमें छपे चौवालीस अक्षरोंवाले श्लोकोंके एक चरणमें ग्यारह अक्षर गिनकर पढ़ना चाहिये।
गीताके कुछ श्लोकोंमें अक्षर-गणना करते समय कहीं-कहीं एक चरणमें नौ तथा बारह अक्षर भी मिलते हैं, उसका उच्चारण दिये गये रंगोंके अनुसार ही करना चाहिये।
श्लोकाक्षरोंकी गणनामें आधा अक्षर अर्थात् हलन्त अक्षरकी गणना नहीं करनी चाहिये। आठ अक्षर और ग्यारह अक्षरकी गिनती करते समय पूर्णाक्षरको ही गिनना चाहिये।
गीताजीका सही उच्चारण सीखनेवाले सामान्य पाठकोंकी सुविधाके लिये प्रत्येक चरणके कठिन शब्दोंको सामासिक चिह्नोंसे अलग करके दो रंगोंमें छापा गया है। इससे श्लोकके प्रत्येक चरणको समझनेमें सहायता मिलेगी। प्रत्येक श्लोकके नीचे उसका हिन्दी अर्थ भी दिया गया है ताकि पाठकोंको श्लोकोंके पढ़ने और उसका भाव समझनेमें ज्यादा सरलता हो। वाराहपुराणमें आया है कि नित्य गीताजीका पाठ करनेवाले मनुष्यका पतन नहीं होता है। इसलिये गीताजीका नित्य पाठ यथासम्भव अवश्य करना चाहिये।
आशा है, जो पाठक गीता पढ़ना चाहते हैं, उनके लिये यह विधि और प्रयास उपयोगी होगा।
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