कैनेडा के पद्य संकलन को प्रकाशित करते हुए हमें बहुत प्रसन्नता है। इस संकलन से पूर्व कुछ काव्य-संकलन कैनेडा से प्रकाशित हुए थे पर इधर लगभग एक दशक से भी अधिक समय से कोई बड़ा काम इस दिशा में नहीं हो पाया था। इस बीच अनेक नए लेखक इस देश में सक्रिय हुए। इस कारण इधर नियमित लेखन में लगे हुए लेखकों के संकलन की आवश्यकता कुछ समय से अनुभव हो रही थी। इस प्रकार के संकलन प्रवासी लेखन के अनेक आयाम एक साथ प्रस्तुत कर के अपने नए मानक गढ़ते हैं और पाठकों को प्रवासी लेखन के विषय में फैले भ्रमों से मुक्त कर सत्य की तस्वीर दिखाते हैं।
1960 के आस-पास भारत से कैनेडा आए लोगों ने हिन्दी साहित्य की नींव रखी। उनके सोचने और सन् 1990-2000 के आसपास आए लोगों के अनुभव संसार में बहुत अंतर है। सन् 60 में आए लोग भारतीय व्यक्ति को देखते ही लपकते हुए उसके पास जाते थे और आत्मीयता से मित्रता के अटूट बंधन में बँध जाते थे। कम भारतीय लोग थे, कम भारतीय दुकानें थीं और कैनेडा के लोगों को भारत और भारतीयता की कम जानकारी थी। सन् 2000 तक आते-आते इन सभी क्षेत्रों के आँकड़े बदलने लगे। भारतीयों की संख्या बढ़ने लगी और अब 2021 में बहुत से भारतीय मूल के लोग हैं, बहुत सी दुकानें हैं और भारत की बहुत अच्छी समझ पैदा हुई है। बहुत सी संस्थाएँ बनीं और अनेक भारतीय भाषाओं और प्रदेशों के लोगों को अनेक मंच मिले। भारतीय कलाओं को प्रोत्साहन मिला तो हिंदी लेखकों की संख्या भी बढ़ी है।
सन् 60 के दशक में जो लोग यहाँ आए थे, वे परिवार को पीछे छोड़ आने और उन से लंबे समय तक न मिल पाने के दुख पर, भारत की याद पर लंबे समय तक रचनाएँ लिखते रहे। सम्पर्क के साधन कम थे, भारतीय उन्हें 'भगोड़ा' कहते थे या उन्हें 'डॉलर्स' का कल्पवृक्ष माना जाता था। इन कारणों से यहाँ की भी हिन्दी की प्रारंभिक रचनाओं में 'नॉस्टेलिजिया' का भाव अधिक दिखाई देता है। सन 1990 के आसपास जो लोग भारत से बाहर आए, उनके पास संपर्क के लिए तकनीक का बहुत बड़ा माध्यम था। सन 2000 के बाद तो दूर-संचार तकनीक के विकास ने निःशुल्क फोन से दुनिया भर में फैले परिवारों को आपस में मिला दिया है। इस क्रांति ने दूरी के दुख को बहुत कुछ मिटाया है। चेहरा देखते हुए बात करने की सुविधा के चलते 15 दिनों में पहुँचने वाले पत्र समाप्त प्रायः हो गए हैं। न मिल पाने का दुख तकनीक के माध्यम से बहुत कुछ समाप्त हुआ। अब प्रवासी भारतीय लेखकों की विषय-वस्तु में 'बाबुल के देस' के अलावा जीवन के अनेक आयामों पर अधिक भाव और विचार देखने को मिलते हैं। जो आलोचक प्रवासी हिन्दी साहित्य को 'नॉस्टेलिजिया' का साहित्य कहते आए हैं वे भी आज के प्रवासी लेखकों की रचनाओं के विभिन्न विषयों को देख कर अपनी राय बदल रहे हैं। सन 2001 के बाद इन स्थितियों में और अधिक बदलाव आया। तकनीक के बहुआयामी प्रयोग, सोशल मीडिया की लोकप्रियता से वैश्विक स्थितियों पर वैचारिक संवाद प्रारंभ हुए, नई सूचनाओं के प्रकाश में पुरानी धारणाओं पर नए सिरे से विचार करते हुए अनेक रचनाएँ सामने आने लगीं। कैनेडा के साहित्य में यह वैश्विक भागीदारी और एक अलग तरह की परिपक्वता आज हमें दिखाई देती है। अगर इस तरह से हम रचनाओं को बदलते समय के अनुसार देखेंगे तो स्पष्ट होगा कि आज का प्रवासी साहित्य बहुआयामी है और भारत के साहित्य के समकक्ष ही अपनी वैचारिक सशक्तता के साथ खड़ा हुआ है।
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