संत-वंदना
हे पवित्रकीर्ति संतगण! आकाशमणि सूर्य पृथ्वीको ऊपरसे आलोक प्रदान करता है, किंतु आपलोग पृथ्वीपर रहकर उसपर ईश्वरीय प्रकाशको प्रसारित करते हैं; अत: हम आपकी वन्दना करते हैं।
भगवान् सविता पृथ्वीको ताप प्रदान करते हैं और आपलोग अपने भीतरी खजानोंमेंसे ज्ञानरूपी अमृत देकर जीवात्माको सुखरूप उष्णता प्रदान करते हैं । हम जिधर आँख उठाकर देखते हैं, जिस किसी देशमें जाते हैं, हम आपके पावनपाद-पद्मोंके आनन्दरूप मकरन्दको निरन्तर झरता हुआ पाते हैं । आपके चरणोंमें हमारे कोटिशः प्रणाम हैं।
तापसंतप्त संसारको मुक्तिरूप निरतिशय आनन्दका संदेश सुनानेवालो! यह पृथ्वी आपकी पावन चरणधूलिके सम्पर्कसे ही हमारे रहनेयोग्य बनी हुई है । मेसोपोटेमिया और अरबके सूखे रेगिस्तानोंमेंसे यदि मूसा, ईसा और रसूल-जैसे अमृतनिर्झर पैदा न होते तो वहाँकी तप्त बालुकामें झुलसने कौन जाता? योरपके रणक्षेत्रमें यदि हमें सुकरात, प्लेटो, अरस्तु और संत फ्रांसिस-जैसे महान् आत्माओंके दर्शन न होते तो वहाँके लोगोंको शान्तिका पाठ कौन पढ़ाता? ब्रह्मज्ञानी लात्शे और महात्मा कन्फ्यूसके नामका चीन देश अब भी गौरवके साथ स्मरण करता है और उनके उपदेश उस देशकी एक अमर सम्पत्ति हैं । हमारा पवित्र भारतवर्ष भी शून्य प्रतीत होने लगेगा यदि व्यास-वाल्मीकि, शुकदेव-नारद, याज्ञवल्क्य- जनक, वसिष्ठ-दधीच, बुद्ध-महावीर शंकर-रामानुज, निम्बार्क- वल्लभ, मध्व-चैतन्य, नानक-कबीर, सूर-तुलसी, नम्मलवार- माणिक्क -वासगर, ज्ञानदेव-तुकाराम, एकनाथ-रामदास और रामकृष्ण-रामतीर्थ प्रभूति संतोंको उसके इतिहासमेंसे निकाल दिया जाय। संत ही भारतवर्षके स्मृतिकार हैं, संत ही सच्चे कवि हैं संत ही सच्चे संदेशवाहक हैं और संत ही सबको प्रेम, ज्ञान और शान्तिका पाठ पढ़ानेवाले हैं। उन संतोंके चरणोंमें हमारा बार-बार प्रणाम है।
संत ही मानव-जातिके प्राण हैं संत ही संसाररूपी पादपके अमृतफल हैं संत ही सभ्य समाजको प्रकाश देनेवाले प्रदीप हैं। वे ही पाप-तापसे पीड़ित मानव-जातिको ऊपर उठानेवाली शक्ति हैं। अत: सभी जातियों और सभी संतोंको हम नतमस्तक होकर कोटि-कोटि प्रणाम करते हैं।
निवेदन
संत विश्वकल्याणके परम आधार हैं उनकी प्रत्येक चेष्टा स्वाभाविक ही विश्वके कल्याणके लिये होती है। उनकी वाणीसे अमर ज्ञानामृत झरता है उनके नेत्रोंसे प्रेमकी शीतल सुखद ज्योतिधारा बहती रहती है उनके मस्तिष्कसे अखिल जगत्का कल्याण प्रसूत होता है उनके ह्यसे आनन्दका प्रवाह बहता है । जो कोई भी उनके सम्पर्कमें आ जाता है वही पाप-तापसे मुक्त होकर महात्मा बन जाता है। वे जिस स्थानमें रहते हैं वही स्थान पुण्यतीर्थ बन जाता है । वे जो उपदेश करते हैं वही पावन सत्कर्मशास्त्र बन जाता है वे जिन कर्मोंको करते हैं वे ही कर्म आदर्श समझे जाते हैं। संत सभी देशों, सभी धर्मों और सम्प्रदायोंमें होते हैं । हिंदू, मुसलमान, ईसाई, यहूदी, पारसी आदि सभी मतोंमें सच्चे संत हुए हैं । किसी देश या काल-विशेषसे संतोंका संकोच नहीं किया जा सकता। सभी देशोंमें सभी समय कोई-न-कोई संत रहते हैं और वे प्रत्यक्ष या परोक्षरूपमें जगत्का कल्याण करते रहते हैं । ऐसे ही संतोंके ढाई हजार 'अनमोल बोल' इसमें संगृहीत हैं । ये बोल ऐसे हैं जो दुःख-सागरमें डूबे हुए पापी-से-पापी प्राणीको भी तारनेमें समर्थ हैं। इसमें प्राय: सभी देशों और जातियोंके संतोंकी वाणीका संग्रह है। अधिकांश संग्रह हमारे सम्मान्य भाई श्री 'माधवजी' का किया हुआ है; कुछ वचन दुबारा आ गये थे । अष्टम संस्करणमें उनके स्थानपर दूसरे वचन बैठा दिये गये हैं आशा है पाठक- पाठिकागण इससे विशेष लाभ उठायेंगे।
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