भारतीय इतिहास और भारतीय चिन्तन परंपरा में मध्यकालीन भारतीय भक्ति-साहित्य का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। यदि संपूर्ण मध्यकालीन साहित्य और साधना पद्धति का सम्यक् दृष्टि से अवलोकन करें तो ज्ञात होता है कि साधना का मार्ग भिन्न होते हुए भी सबका साध्य एक ही है। सभी भक्त कवि एक ही पथ के गामी हैं। वे एक ही दीपक की ज्योति से समूची मानवता को प्रकाश देना चाहते हैं।
राष्ट्र की भावात्मक और संवेदनात्मक आंतरिक एकता के लिए सबसे बड़ा कार्य मध्ययुगीन भक्त कवियों ने किया। इन मध्ययुगीन भक्त और संत कवियों ने अपने-अपने भाषायी और भौगोलिक क्षेत्रों में रहने वाले जनमानस को अपनी वाणी द्वारा वैचारिक चेतना प्रदान की। असम में श्रीमंत शंकरदेव और उनके शिष्य माधवदेव ने, बंगाल में चैतन्य महाप्रभु और संत चंडीदास ने, कर्नाटक में संत बसवेश्वर ने, पंजाब में गुरु नानक देव ने, महाराष्ट्र में संत नामदेव और संत तुकाराम ने और उत्तर भारत में संत कबीर, संत दादू, संत सुन्दरदास, संत रैदास आदि ने जो कार्य किया, वह हमारी मूल्यवान धरोहर है। इसी प्रकार तेलुगु कवि वेमना और तमिल संत कवि माणिक्कवाचकर ने दक्षिण भारत में वहाँ के सामान्य जन समाज के बीच कार्य किया।
भक्तिकाल हिन्दी काव्य का ही नहीं बल्कि संपूर्ण भारतीय काव्य का स्वर्णकाल है। भक्तिकाल ने हमें शाश्वत और कालजयी कविता दी, जो आज भी हमारी संवेदना को छूती है। इन मध्ययुगीन संतों और भक्तों का काव्य भारतीय संस्कृति के सागर के गहन मंथन से निकला अमृत है। यह गहन मंथन से प्राप्त अमृत हमारी साहित्यिक समृद्धि का प्रतीक है। यह भक्तिकाव्य रूपी अमृत आज भी समाज और राष्ट्र के लिए सदुपयोगी है। राष्ट्र और समाज के लिए भक्तिकाल की प्रासंगिकता आज भी है। भक्त कवियों द्वारा स्थापित कुछ जीवन मूल्य वर्तमान समाज को सही राह दिखाने की क्षमता रखते हैं। भक्त कवियों द्वारा स्थापित उन जीवन मूल्यों की पुनर्स्थापना आवश्यक प्रतीत होती है, जो हमें अंधकार के मध्य भी रोशनी देने की शक्ति रखते हैं।
भारतीय संत कवियों और साधकों में कबीरदास का स्थान सर्वोपरि है। हिन्दी-साहित्य के पूर्व मध्यकालीन भक्त और संत कवियों में कबीर का व्यक्तित्व अपनी विशिष्ट पहचान रखता है। कबीर का सच से साक्षात्कार हमारे लिए आज भी मूल्यवान है। कबीर सर्वोच्च जीवन मूल्यों के सच्चे कवि थे। कबीर वाणी गत छह सौ वर्षों से सामान्य समाज के मध्यअलख जगाती रही है। इस अलख को राष्ट्र के सामुहिक कल्याण के लिए आज भी जगाने की आवश्यकता है।
मध्यकालीन हिन्दी काव्य-यात्रा में संत कबीर, गोस्वामी तुलसीदास, महाकवि सूरदास, मलिक मुहम्मद जायसी, रहीम, रसखान, और मीरा का एक विशिष्ट स्थान है। इन मध्यकालीन प्रतिनिधि भक्त कवियों के काव्य का आधुनिक संदर्भ में, समकालीन परिप्रेक्ष्य में मंथन और पुनर्मूल्यांकन आवश्यक है।
मुझे हार्दिक प्रसन्नता है कि प्रस्तुत कृति 'संत कबीर: आधुनिक संदर्भ' इस दिशा में उठाया गया एक सराहनीय सृजनात्मक कदम है। इस कृति से मध्यकालीन हिन्दी कविता को आधुनिक संदर्भ में देखने की दृष्टि मिलेगी और हिन्दी काव्य समीक्षा की नई राह विकसित होगी। राष्ट्र को शक्तिशाली बनाने के लिए मध्यकालीन हिन्दी काव्य के मध्य उपस्थित सूत्रों का हमें उपयोग करना है। आधुनिक वैज्ञानिक प्रगति और सूचना प्रौद्योगिकी के वर्तमान युग में जहाँ समूचा विश्व सिमटता जा रहा है, हमारे संतों की वाणी आज भी मानव कल्याण के लिए उपयोगी है। इन संतों की वाणी को समाजोपयोगी बनाने के लिए हमें तत्पर रहना चाहिए। मूल्यहीनता के बढ़ते दौर में भक्त कवियों की वाणी हमें सम्बल और आत्मविश्वास की भावना प्रदान करती है। कबीर-काव्य इस दृष्टि से सर्वाधिक उपयोगी और महत्वपूर्ण है। संत कबीर ने भाषा की शक्ति का पूरा-पूरा उपयोग किया था, इसलिए वे अभिव्यक्ति के धरातल पर हिन्दी के सबसे शक्ति संपन्न कवि हैं। हिन्दी भाषा का प्रखर रूप हमें कबीर में ही मिलता है।
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