बोधिसत्त्व स्वामी आनन्द अरुण ओशो तपोवन के संस्थापक आचार्य हैं। अध्ययन काल में ही साधना और अध्यात्म की खोज चे और इसी क्रम में बहुत से गुरुओं से दीक्षा भी ली। लेकिन 29 मार्च 1969 में जब वे पटना इन्जीनियरिंग कॉलेज में विद्यार्थी थे, ओशो से मिलने पर उन्हें गहरी आध्यात्मिक अनुभूति हुई। 1974 में ओशो से दीक्षित होने के पश्चात ओशो ने उन्हें नेपाल जाकर उनके कार्यों के प्रचार-प्रसार की आज्ञा दी। नेपाल आकर उन्होंने ताहाचल, काठमांडू में नेपाल के प्रथम 'आशीष रजनीश ध्यान केन्द्र' की और 1990 में 'ओशो तपोवन आश्रम' की स्थापना की। उनकी ही प्रेरणा से सारे संसार में 150 से भी अधिक आश्रमों तवा ध्यान केन्द्रों की स्थापना हुई है। अभी तक की अपनी आध्यात्मिक यात्रा में उन्होंने लगभग 900 ध्यान शिविरों का संचालन कर 100 से अधिक राष्ट्रों के 1,25,000 साधकों को ओशो के नव-संन्यास में दीक्षित किया है। सन 1984 में ओशो ने उनको आचार्य और वोधिसत्त्व तथा सन 1986 में 'रजनीश मिस्ट्री स्कूल' के अन्तर्गत 'मेडिटेशन एण्ड स्पिरिचुअल ग्रोथ सेन्टर' का निर्देशक घोषित किया। इनके द्वारा अमेरिका, कनाडा, अस्ट्रेलिया, रूस, जापान, यूरोप के विभिन्न देश, भारत और नेपाल में ध्यान शिविर, प्रवचन और सत्संग कार्यक्रमों का नियमित संचालन होता है। वे विभिन्न राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय संचार माध्यमों में नियमित रूप से समसामयिक और आध्यात्मिक विषयों पर अपने विचार बेवाक रखते हैं तथा इनके लेख पत्र-पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशित होते रहते हैं।
हिन्दी, अंग्रेजी और रूसी भाषा में इनकी 12 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। नेपाल के राष्ट्रपति के द्वारा इन्हें प्रबल जनसेवा श्रीपदक से सम्मानित किया गया। अन्नपूर्णा समाचार संस्थान द्वारा इन्हें नेपाल के 50 और लायन्स क्लब द्वारा 100 राष्ट्रनिर्माताओं में शामिल कर सम्मानित किया। 80 वर्ष की उम्र में भी ये योग, ध्यान के प्रचार-प्रसार में सक्रिय है।
संत के लौकिक अर्थात मात्र वाह्य स्वरूप को जानना उसके विराट स्वरूप के एक अंश को समझना है। संत को उसकी पूर्णता में समझना हो तो उसके अलौकिक स्वरूप का बोध भी चाहिए, जो अनन्त है। इसे मस्तिष्क अर्थात तर्क से नहीं समझा जा सकता, इसे सिर्फ हृदय से, अनुभव से ही जाना जा सकता है। शब्द और तर्क की बली सदा अनुभव की वेदी पर ही चढ़ती है, हालांकि तर्क शब्दातीत अनुभव पर हमेशा संदेह करता रहा है और निंदा करता है।
संत, सिद्ध या बुद्ध किसी हिमशैल जैसे हैं, जिसका सिर्फ एक अंश मात्र बाहर रहता है, अधिकांश भाग जल के भीतर छिपा रहता है। इन्हें जानने का एक मात्र उपाय समर्पण और साधना है। जितने आप स्वयं के भीतर डूबते है, उतना ही संत का अनंत रूप आपके सामने अनुभव के रूप में प्रकट होता है।
संत या बुद्ध के अलौकिक स्वरूप के इस अनुभव को शब्दों में बांधना संभव नहीं है, अतः इस पुस्तक के द्वारा उस स्वरूप की सुगंध को ही आप तक पहुंचाने का एक सप्रयास है।
यह मुझे पता है कि पुस्तक में ऐसे अनेक दृष्टांत है, जिन्हें इस तरह के अनुभव नहीं हुए हैं, वे इस पर संदेह करेंगे। लेकिन जो आध्यात्मिक यात्रा पथ पर है और जो साधक हैं, वे इस बात को समझेंगे। उनका खुद का अनुभव इन बातों का प्रमाण होगा।
इस तरह की अलौकिक घटनाएं आध्यात्म के शिखर पर विराजित चेतना के आसपास सहज ही घटती हैं। हालांकि सामान्य मनुष्य के लिए इसे चमत्कार समझना या इन पर तर्क खड़े का अपना ही आधार होता है।
कुछ लोग का मानना है कि विज्ञान और भौतिकवाद के विकाश के साथ दुनिया बदल गई है तथा रहस्यमय घटनाएं अतीत की मिथक बन गई हैं लेकिन मैं इससे असहमत हूं। मेरा जीवन स्वयं ऐसी अनेक घटनाओं का साक्षी है जो मेरी बुद्धि की समझ समझ से परे थीं।
यह पुस्तक साधकों और आध्यात्म के पथ पर चलने वालों के लिए एक ऐसा दस्तावेज है जो उनके लिए एक संबल और मार्गदर्शक के रूप में कार्य करेगा। साथ ही उन्हें साधना पथ पर आने वाले व्यवधानों और प्रलोभनों के प्रति आगाह भी करता है।
साधना के मार्ग में एक साधक को अनेक बाधाओं और अवरोधों का सामना करना पड़ता है। इसीलिए महान गुरुओं ने इस यात्रा को तलवार की धार पर चलने जैसा बताया है। हर कदम बहुत सजगता और सावधानी से उठाना और रखना होता है।
जब एक साधक का ध्यान गहन होने लगता है और गहराई में उतरने लगता है, तो उसे कई अतींद्रिय तथा अलौकिक अनुभव होने लगते हैं। साधना हमें शुद्ध करती है। जैसे-जैसे हमारी चेतना में अधिक शुद्धता आती है, हमारी भीतर की सुषुप्त शक्तियां जागृत होने लगती हैं और हमें अनेक प्रकार की योगिक सिद्धियों की अनुभूतियां होने लगती हैं, जो एक सामान्य मनुष्य के लिए संभव नहीं है। पूर्वीय धार्मिक ग्रंथों में अष्ट सिद्धि और नव निधि का उल्लेख किया गया है, जो साधना में एक ऊंचाई पर पहुंचने के बाद क्रमशः साधक को उपलब्ध होती हैं। यह सही है कि शक्ति जितनी बड़ी हो जिम्मेदारी भी उतनी ही बड़ी हो जाती है। इन शक्तियों को संभालने के लिए अधिक परिपक्वता की आवश्यकता होती है, जो हर किसी के वश में नहीं होता।
अतः साधना के मार्ग में हमें एक ऐसे गुरु की आवश्यकता होती है जो इन सभी कठिनाइयों से होकर आया हो और उन पर विजय प्राप्त की हो, ताकि वह हमारा सही मार्गदर्शन कर सके।
बहुधा साधक सिद्धियों का प्रयोग या तो अपने आध्यात्मिक अहंकार को बढ़ाने के लिए या सांसारिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए करते हैं। प्राचीन काल से आध्या. त्मिक साधक सिद्धियों का उपयोग करने के कारण दुष्चक्र में फंसते रहे हैं। लेकिन इससे पहले कि उन्हें इसका बोध हो, वही शक्तियां उन पर अधिकार कर लेती है और उनकी आध्यात्मिक प्रगति को रोक देती है, फिर भी वे अपने आत्म-सम्मान, कामनाओं और अहंकार को छोड़ नहीं पाते हैं। यही कारण है कि सिद्धियों को कभी भी आध्यात्मिक प्रगति के संकेत के रूप में नहीं देखा गया है, न ही आध्यात्मिक पथ पर एक लक्ष्य या मील के पत्थर के रूप में ही। हां, वे एक बड़ी बाधा जरूर हैं और इनसे बचना ही श्रेष्ठ है।
आशा है यह पुस्तक साधकों को लिए एक मार्गदर्शिका तो होगी ही साथ ही साथ पाठकों की स्थूल जगत के पार के जगत के बारे में सामान्य जिज्ञासाओं को भी शांत करेगी।
जब एक साधक का ध्यान गहन होने लगता है और गहराई में उतरने लगता है, तो उसे कई अतींद्रिय तथा अलौकिक अनुभव होने लगते हैं। साधना हमें शुद्ध करती है। जैसे-जैसे हमारी चेतना में अधिक शुद्धता आती है, हमारी भीतर की सुषुप्त शक्तियां जागृत होने लगती हैं और हमें अनेक प्रकार की योगिक सिद्धियों की अनुभूतियां होने लगती हैं, जो एक सामान्य मनुष्य के लिए संभव नहीं है। आमतौर पर, जब कोई साधक इस प्रकार की शक्तियों का अनुभव करता है तो उसके अहंकार में वृद्धि हो जाती है और वह खुद को असाधारण समझने लगता है। सिद्धियों का यह अहंकार उसके ही आध्यात्मिक विकास में प्रचंड बाधक बन जाता है। इन शक्तियों को संभालने की क्षमता होने के लिए अत्यंत आध्यात्मिक परिपक्वता और सही मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। अधिकांशतः यह देखा गया है ऊच्च कोटी के साधक भी सिद्धियों के मोह में पड़ जाते हैं और उसके दुरुपयोग के कारण उनकी पूरी साधना ही असफल हो जाती हैं तथा योगभ्रष्ट कहलाते हैं। ऐसे साधक जन्मों-जन्मों तक इसकी पीड़ा को भोगते हैं।
Hindu (हिंदू धर्म) (12739)
Tantra (तन्त्र) (1024)
Vedas (वेद) (707)
Ayurveda (आयुर्वेद) (1913)
Chaukhamba | चौखंबा (3360)
Jyotish (ज्योतिष) (1474)
Yoga (योग) (1094)
Ramayana (रामायण) (1387)
Gita Press (गीता प्रेस) (729)
Sahitya (साहित्य) (23215)
History (इतिहास) (8311)
Philosophy (दर्शन) (3411)
Santvani (सन्त वाणी) (2584)
Vedanta (वेदांत) (121)
Send as free online greeting card
Email a Friend
Manage Wishlist