वैदिक वाङ्मय में देववाणी का अपना विशिष्ट एवं गौरवशाली महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। विश्रुत ब्रह्मावर्त प्रदेश में सरस्वती एवं दृषद्वती नदियों के तट पर विश्व वाङ्मय की प्रथम कृति ऋग्वेद के साथ-साथ वेदों के विविध मन्त्रों का पाठ संस्कृत साहित्य की माँ शारदा के चरणों में प्रथम स्तुति रही है। इस प्रदेश के विभिन्न मतावलम्बी ऋषियों, महर्षियों, साधु, महात्माओं, सन्तों, विचारकों एवं कवियों की साधना स्थली होने का गौरव प्राप्त है।
भारतदेश में संस्कृत साहित्य की सर्वविध विधाओं (यथा संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद्, सूत्र, कल्प, उपजीव्य काव्य, कविता (काव्य) रूपक, गद्यकाव्य, उपन्यास, लघुकथा, निबन्ध, समीक्षाशास्त्र, पत्र-पत्रिकायें, कोश आदि) की सर्जना होती रही है। देववाणी संस्कृत विश्व की प्राचीनतम भाषा है। यह परम प्राचीन होने के साथ साथ समृद्ध और विकसित भाषा भी है। इसका वाङ्मय विश्व की किसी भी अन्य भाषा के वाङ्मय से अधिक प्राचीन है। यह तथ्य अब प्रायः निर्विवाद है 'भावात्मक एकता और संस्कृत' (लेख) पं. विष्णुदत्त शर्मा (स्मारिका, राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलनम्, जयपुर, 1978)। यह चिरन्तर सत्य है कि गौरवपूर्ण भारतीय संस्कृति की वाहक, आर्य भाषाओं का मूल स्रोत एवं हमारी सर्वजनीन पूंजी संस्कृत भाषा है ।
वैदिक काल से लेकर आज तक संस्कृत में साहित्य सृजन की सरस्वती सर्वदा प्रवाहित होती आयी है। जिस समय लेखन के साधन उपलब्ध नहीं थे, उस समय भी यह भाषा कवियों के कण्ठ का हार बनी थी तथा कण्ठस्थ होकर गुरुशिष्य परम्परा से आगे बढ़ी थी। यही कारण है कि इस भाषा का प्राचीन साहित्य अद्यावधि अक्षरशः सुरक्षित रह पाया है। संस्कृत भारत का प्राण है 'संस्कृतमेव हि भारतम्' ।
संस्कृत भाषा के बिना भारतीय संस्कृति को समझने की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। संस्कृति का मूलाधार संस्कृत ही है- 'संस्कृति संस्कृताश्रिता'।
संस्कृत का विश्व की प्रमुख भाषाओं में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसका शब्दभण्डार विलक्षण होने के कारण विश्व की अनेकानेक भाषायें इससे समृद्ध हो सकी है। इस भाषा ने सम्पूर्ण विश्व को 'वसुधैव कुटुम्बकम्' का सन्देश दिया है। इस भाषा में सुख समृद्ध होने की कामना की गयी है 'सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः' ।
संस्कृत एक ऐसी भाषा है। जिसमें भारतीय संस्कृति का चिरसंचित ज्ञान भरा पड़ा है। संस्कृत के अध्ययन के अभाव में कोई भी व्यक्ति विद्वान् कहलाने का हकदार नहीं बन सकता। इसके अध्ययन-अध्यापन के सम्बल से व्यक्ति देवोपम गुणों का अर्जन कर सकता है ।
संस्कृत अनेक प्राचीन विषयों का ज्ञान स्रोत है। इसमें भूगोल, इतिहास, गणित, ज्योतिष, दर्शन, धर्म, संस्कृति, राजनीति, पुरातत्त्व आदि अनेकानेक प्राच्य विद्याओं का संगम देखा जा सकता है, संस्कृत के महत्त्व के विषय में अनेकानेक विद्वान् समय-समय पर अपने विचार व्यक्त करते रहे हैं।
भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री वेंकटरमण ने कहा था 'हमारा देश युगों से सांस्कृतिक एकता के सूत्र में बंधा हुआ है, और उसका मूलाधार है - संस्कृत । आज आवश्यकता इस बात की है कि एकता की भावना और उदारता का दृष्टिकोण हमारे जीवन का पर्याय बने तथा संस्कृत पाठ्यक्रम में उसे अधिक महत्त्वपूर्ण स्थान दिया जाये।
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