जन्म: 17 मार्च, 1960; मुरादाबाद (उ०प्र०)
माता: श्रीमती शान्ति देवी
पिता: श्री गोपाल दास
शिक्षा: वाणिज्य स्नातक, लागत एवं प्रबन्धन लेखाकार (ACMA), योग, ज्योतिष एवं वास्तु आचार्य
आध्यात्मिक शिक्षा: 12-13 वर्ष की आयु में ही महाभारत, भागवत, गीता, रामचरितमानस का पारायण। योगेश्वर श्रीकृष्ण के जीवन से प्रभावित होकर वेद और योग में रुचि। 1978 में आर्यसमाज रूपी सैद्धान्तिक संस्था में प्रवेश तथा वेद, वैदिक साहित्य का अध्ययन।
कार्य: - वेद योग चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना।
- वेद तथा वैदिक साहित्य के निःशुल्क प्रचारार्थ www.vedyog.net वेबसाईट का निर्माण एवं संचालन।
website: www.vedyog.net
contact.vedyog@gmail.com
सांख्य दर्शन में सत्त्वादि गुणों तथा प्रकृति और पुरुष के गुण, कर्म, स्वभाव और स्वरुप का वर्णन है। जिसमें सत्त्व गुण प्रकाश का, रजोगुण क्रिया = गति, तमोगुण स्थिरता, अज्ञान, आलस्य आदि का प्रतीक है। ब्रह्माण्ड की प्रत्येक वस्तु जो प्रकृति से निर्मित है, वह इन्हीं सत्त्वादि गुण के मेल से बनी है। इसी प्रकार सभी प्राणियों के स्थूल और सूक्ष्म शरीर भी प्रकृति से निर्मित हैं। इसी कारण कुछ पदार्थ प्रकाश गुण वाले है, कुछ गतिवान, ऊर्जावान है, और कुछ स्थूल है। यह सभी सत्त्वादि गुणों के भिन्न संयोजन के कारण है।
इन गुणों के कारण ही मनुष्य के कर्म भी पाप और पुण्य के रूप में मिश्रित होते हैं और आत्मा अपने संचित कर्मों के कारण नाना प्रकार के शरीरों को प्राप्त करके दुःख कष्ट भोगती है। इसलिए सांख्य दर्शन के प्रारंभ में कहा गया है कि जीवन का अंतिम उद्देश्य तीन प्रकार के दुःखों का निवारण करना है। इसके लिए ऋषि कपिल मुनि ने पदार्थ और आत्मा का विवेकपूर्ण ज्ञान प्राप्त करने का उपदेश दिया है।
"परमाकारणिकोः महामुनिर्जगदुद्धिर्शः कपिलो मोक्षशास्त्रमारामनामाः प्रथमे सूत्रे चाकार" अथ त्रिविधदुख...
अर्थात परम करुणा के महान अपि कपिल मुनि ने संसार को ज्ञान देने की इच्छा से मोक्ष के शास्त्र का उपदेश "अच त्रिविधदुख..." के रूप में दिया।
कुछ अन्य बुद्धिजीवियों का मत भित्र है कि इसका उपदेश 'पंचाशिका' या किसी और ने दिया था। ऐसा कहा जाता है कि यद्यपि सिद्धांत कपिल मुनि के हैं, लेकिन उनके एक शिष्य ने इसकी रचना की है।
यह वैदिक युग के सबसे पुराने दर्शनों में से एक है। सांख्य का मूल दर्शन क्या है? यह आत्मा चेतन वस्तु और जड़ - जड़ वस्तु के गुण, कर्म और स्वभाव का वर्णन करता है। संपूर्ण ब्रह्मांड जड़ से निर्मित है, अर्थात जड़ ही ब्रह्मांड कर उपादान कारण है और परमात्मा ईचर ही निमित्त कारण है, जिसने जड़ से ब्रह्मांड की रखना की है। जड़ तीन गुणों प्रकाश, ऊर्जा और जड़ता की साम्य अवस्था है, जिसके अलग-अलग लक्षण हैं। इन तीनों गुणों की मित्रता के कारण ही हम इस ब्रह्मांड की विविधता देखते हैं।
अब आत्मा दो प्रकार की है, एक परमात्मा जो जड़ से ब्राह्मांड का निर्माता है और दूसरा आत्मा जो इस ब्रह्मांड का भोक्ता है, जो जड़ से निर्मित है। फिर असंख्य आत्माएं हैं, जो इस ब्रह्मांड के भोक्ता हैं। दूसरी ओर, जड़ आत्मा के अनुभव और मोक्ष के उद्देश्य की पूर्ति करती है।
ये तीनों अलग-अलग वस्तुएं हैं, प्रत्येक के अलग-अलग गुण, कर्म और स्वभाव हैं। इसके अलावा, ये तीनों शाश्चत हैं और इनका कोई उपादान कारण नहीं है। इसी प्रकार, आत्मा (दोनों) किसी अन्य वस्तु का उपादान कारण नहीं है।
सांख्य दर्शन की शुरुआत इस सूत्र से हुई कि तीन प्रकार के दुखों का निवारण ही आत्मा का अंतिम उद्देश्य है, जिसे मोक्ष कहते हैं। सांख्य से संबंधित दूसरा दर्शन योग है। ऋषि पतंजलि योग सूत्रों के रचयिता हैं। सांख्य दर्शन मोक्ष प्राप्ति के सिद्धांत की व्याख्या करता है और योग मोक्ष प्राप्ति की प्रक्रिया की व्याख्या करता है। इसलिए ये एक दूसरे के पूरक हैं। सांख्य योग के अंगों के सिद्धांतों को स्वीकार करता है, जिसमें एकाग्रता, ध्यान, समाधि, इन अंगों के अभ्यास से विवेक की प्राप्ति और इच्छा-शून्यता का विधान है; और योग, सांख्य दर्शन में ऋषि कपिल द्वारा बताई गई सृष्टि प्रक्रिया और तीन शाचत वस्तुओं अर्थात पदार्थ, आत्मा और ईश्वर को स्वीकार करता है।
बुद्धिजीवियों के एक वर्ग ने महर्षि कपिल को नास्तिक के रूप में स्थापित किया हुआ है। इस सम्बन्ध में स्वामी दयानन्द सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश के समुल्लास 7 में 'श्रुतिरपि प्रधानकार्यतवस्य' सूत्र 5.12 पर व्याख्या करते हुए लिखा है - 'इसलिए जो कोई कपिलाचार्य को अनीधरवादी कहता है, जानो वही अनीश्वरवादी है, कपिलाचार्य नहीं'। यह भ्रम 'ईश्वरसिद्धेः' सूत्र 1.92 के कारण है। किन्तु भाष्यकार इस सूक्ति का अर्थ वर्तमान संदर्भ में नहीं समझ पाए। इस सूक्ति के सही अर्थ के लिए कृपया हमारी टीका देखें।
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