पुस्तक के विषय में
महर्षि पराशर ने अपने होराशास्त्र मे वर्ग कुण्डलियों का महत्व स्वीकारते हुए उन्हें ग्रह साधन व गशिशील के तुरन्त बाद स्थान दिया हे । वे कहते हैं-
अथ षोडशवर्गेषु विवृणोमि विवेचनम् ।
लग्ने देहस्य विज्ञान होरायां संपदादिक ।।
अब में षोडश वर्गो का विवेचन करता हूँ ।
(1) लग्न से शरीर का तथा (2) होरा वर्ग कुण्डली से सम्पत्ति या आर्थिक स्थिति का ज्ञान प्राप्त होता हे । इसी प्रकार वह आगे बताते हें कि (3) द्रेष्काण से बल, पराक्रम व भाइयों के सुख का तथा (4) चतुर्थाश से भाग्य, भूमि व घर-परिवार का सुख जानें। (5) सप्तमांश से भार्या सन्तान या अगली पीढ़ी अर्थात पुत्र-पोत्रादि का विचार तथा (6) नवमांश से पत्नी, ससुराल व दाम्पत्य जीवन का विचार किया जाता हे । (7) दशमांश वर्ग कुण्डली से आजीविका या किसी महत्त्वपूर्ण कार्य योजना की सफलता का तथा (8) द्वादशांश से माता-पिता की स्थिति व उनके सुख-दुःख का विचार किया जाता है । (9) षोडशांश वर्ग कुण्डली से वाहन सुख (10) विंशांश कुण्डली से देव उपासना व मंत्र सिद्धि तथा (11) चतुर्विशांश वर्ग कुण्डली से विद्या ओर बुद्धि बल का विचार किया जाता हे । (12) भांश या सप्तविशांश से जातक के बलाबल अर्थात गुण-दोष व शक्ति और दुर्बलताओं को जाना जाता है । (13) त्रिशांश से विविध प्रकार के अरिष्ट व कर? फल का चिन्तन तो (14) खवेदांश से जीवन में मिलने वाले शुभ व अशुभ फल की मात्रा का ज्ञान होता है । ( 15) अक्षवेदांश ओर (16) षष्टयांश से सभी प्रकार की बातोंका विचार किया जाता है।
यत्र कुत्रापि सम्प्राप्तः क्रर षष्ट्यंश काघिप: ।
तत्र नाशो न सन्देहो मुने। विधि वचो यथा ।।
यत्र कुत्रापि सम्प्राप्त: कलांशाधिपति: शुभ:
तत्र वृद्धिश्च गर्गादीनां वचो यथा ।।
जिस किसी भाव में पाप (क्रर) षष्ट्यांश का स्वामी ग्रह स्थित हो, (वर्ग कुण्डली के) उस भाव की हानि हुआ करती है। इसके विपरीत, जिस किसी भाव में षोडश वर्ग कुण्डली का शुभ भावाधिपति (केन्द्र,/त्रिकोण का स्वामी) हो, उस भाव की पुष्टि या वृद्धि होती है ।
स्पष्ट है, मुनि पराशर ने षोडशांश की शुभता व षष्ट्यांश वर्ग की अशुभता से विभिन्न वर्ग कुण्डलियों के विश्लेषण को उपयोगी माना है। इतना ही नहीं, विभिन्न वर्ग कुण्डलियों के सम्बन्धित अंशों को दिए गए नाम भी पूरी कहानी कहते हैं।
भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री एस. एन. कपूर की इच्छा थी कि वर्गो में अंशों के देवगण व उनकी भूमिका पर विस्तार से शोधपरक अध्ययन किया जाए। आशा है, यह लघु पुस्तिका उस अध्ययन की आधारशिला बनेगी।
वैसे विचार करें तो नया कुछ भी नहीं है। नवांश वर्ग कुण्डली के देवगण, नर व राक्षसगण का वर-वधू मेलापक में गण विचार शताब्दियों से चला आ रहा है ।
ज्योतिषियों का अनुभव है कि क्षीर, दधि या आज्य सप्तामांश में जन्मा बालक माता-पिता का सुख बढ़ाता है। इसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति का लग्न या लग्नेश इन्द्र, कुबेर या वरुण दशांश में हो तो वह धन-मान और यश पाता है।
यदि किसी व्यक्ति का लग्न या लग्नेश गणेश या अश्विनी कुमार संज्ञक द्वादशाश में पड़े तो वह निश्चय ही समस्याओं को सुलझाने में कुशल व दोष-दुर्बलता मिटाने वाला होता है । उसको माता-पिता का श्रेष्ठ सुख मिलता है।
यह निश्चय ही बहुत उपयोगी और गहन चिन्तन का विषय है। आशा है, विज्ञ पाठक मेरे इस प्रयास से लाभान्वित होंगे।
गोपाल की करी सब होई
जो अपनौ पुरुषारथ मानै
अति डूठौ है सोई...।
विषय-सूची
1
षोडश वर्ग में संज्ञा विचार
7
2
होरा D-2
8-9
3
द्रेष्काण D-3
10-11
4
चतुर्थांश D-4
12-13
5
सप्तामांश D-7
14-15
6
नवांश D-9
16-17
दशमांश D-10
18-21
8
द्वादंश D-12
22-25
9
षोडशांश D-16
26-29
10
विशांश D-20
30-29
11
चतुर्विशांश (सिद्धांश) D-24
40-43
12
भांश सप्त विशांश D-27
44-50
13
त्रिंशाशं D-30
50-30
14
चत्वारिशांश(खवेदांश) D-40
54-57
15
अक्षवेदांश D-45
58-61
16
षष्ट्यांश D-60
62-72
17
उदाहरण कुंडिलयां
73-130
18
विंशांश विचार
38-52
19
त्रिशांश विचार
53-75
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