ये काव्य रचनाएँ न केवल हमारी नदियों और परंपराओं के प्रति हमारी श्रद्धा को जागृत करती हैं, बल्कि विदेशी आक्रांताओं और औपनिवेशिक शासन के दौरान भारत की सहनशीलता और संघर्ष की गाथा भी सुनाती हैं।
कुम्भ के सनातन महत्व का स्मरण कराती यह पुस्तक सनातन धर्म और भारत की सांस्कृतिक धरोहर को संजोने के लिए एकजुटता का आह्वान करती है। 'कुम्भ त्रिवेणी' एक प्रेरणा है, जो पाठक के हृदय में धर्म, संस्कृति और भारत की समृद्ध आध्यात्मिक परम्पराओं के प्रति आस्था को और सघन करती है।
काशी विश्वनाथ के प्रति समर्पण भाव में रमे विश्व भूषण वर्तमान में श्री काशी विश्वनाथ मन्दिर ट्रस्ट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) हैं। साथ ही वे उ.प्र. सिविल सेवा संघ के उपाध्यक्ष, ओलंपिक एसोसिएशन के संयुक्त सचिव और हैण्डबॉल एसोसिएशन के उपाध्यक्ष होने की जिम्मेदारी भी पूरी निष्ठा से निभा रहे हैं।
उनके कविता संग्रह 'मैंने अनुभव से सीखा है' को कई प्रतिष्ठित साहित्यिक पुरस्कार मिले हैं, जिनमें हिन्दुस्तान एकेडमी, प्रयागराज द्वारा युवा साहित्यकार सम्मान, सरस्वती अकादमी द्वारा सरस्वती सम्मान, महिला सामख्या उ.प्र. द्वारा महिला सशक्तिकरण पर कविता हेतु राज्य पुरस्कार इत्यादि प्रमुख हैं। लेखक की 'सनातन संवाद कथाएँ' पुस्तक भी साहित्य एवं अध्यात्म जगत में सराहनीय है।
इस पुस्तक में प्रस्तुत कविताओं के माध्यम से कवि नै माँ गंगा, यमुना, सरस्वती और अन्य नदियों की महत्ता को कैवल जल स्रोतों के रूप में नहीं, बल्कि आध्यात्मिक आस्था और सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक रूप में प्रस्तुत किया है। प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक जैसे पवित्र कुंभ स्थलों का माहात्मय और उनकी धार्मिक, ऐतिहासिक विशिष्टता इन कविताओं का विषय है।
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