इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का विषय 'भूमंडलीकरण और नारी विमर्श' इतिहास और वर्तमान के मध्य परिघटित राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य का उद्घाटन करने के साथ-साथ भूमंडलीकरण और नारी विमर्श के अंतसंबंधों एवं अंतर्वस्तु की पड़ताल करने का अवसर प्रदान करता है। संबंधित विषय हमें 19वीं शताब्दी की नवजागरणकालीन राष्ट्रीयतावादी चेतना एवं उसके मध्य मुखर होती नारी मुक्ति की आकांक्षाओं एवं भूमंडलीकरण से व्युत्पन्न 'जेंडर क्वेक' दोनों छोरों के निहितार्थों को समझने व परखने का उपयुक्त अवसर प्रदान करता है। सन 1857 से सन 2024 तक के एक सी सरसठ वर्ष के भारतीय इतिहास का सिंहावलोकन करने पर ज्ञात होता है कि नवजागरणकालीन नारी मुक्ति की चेतना एक तरफ पितृसत्तात्मक स्त्री विरोधी सामंती रूढ़ियों की श्रृंखलाओं से मुक्ति का आह्वान था वहीं दूसरी तरफ वह ब्रिटिश राज के विरुद्ध भारत के स्वाधीनता संग्राम में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सत्याग्रह एवं संघर्ष के पथ पर निकल पड़ती है। पंडिता रमाबाई, सावित्रीबाई फुले, भगिनी निवेदिता, सरला देवी घोषाल, हरदेवी रोशनलाल, दुर्गाबाई देशमुख, अरुणा आसफ अली, मैडम भीकाजी रुस्तमजी कामा, एनी बेसेंट और सरोजिनी नायडू ऐसी ही क्रातिचेता महिला नेतृत्वकर्तरि एवं स्वतंत्रता सेनानी हैं।
सन् 1906 में कोलकाता में आयोजित भारतीय स्वतंत्रता सम्मेलन में सरोजिनी नायडू उद्बोधन् करती हैं- "क्या कोई मनुष्य किसी दूसरे मनुष्य को ईश्वर प्रदत्त शुद्ध वायु के उसके जन्म सिद्ध अधिकार से वंचित करने की हिम्मत कर सकता है?... तो फिर कोई भी मनुष्य किसी इंसान को उसके जीवन एवं आजादी की अविस्मरणीय विरासत से कैसे वंचित कर सकता है? आपके पिता ने आपकी माता के इस अविस्मरणीय जन्मसिद्ध अधिकार से वंचित करके आपको लूटा है इसलिए मैं आपको चेतावनी देती हूँ कि आप अपनी स्त्रियों के परंपरागत अधिकारों को बहाल करें क्योंकि जैसे मैंने पहले भी कहा है कि आप नहीं, असली राष्ट्र निर्माता हम हैं तथा हमारे सक्रिय सहयोग के विना प्रगति के किसी बिंदु पर की जाने वाली आपकी सभी बैठकें एवं कांग्रेस व्यर्थ होगीं। आप भी स्त्रियों को शिक्षित करें और देखें कि राष्ट्र स्वयं अपनी रक्षा कर लेगा क्योंकि यह बात कल भी सत्य थी आज भी है और रहती दुनिया तक सत्य होगी। पालना झुलाने वाले हाथ ही विश्व पर शासन करते हैं।" (स्पीचेज एंड राइटिंग, मद्रास, जी. ए. नेटसन, पृष्ठ संख्या 18-20) भारत भगिनी की संपादक श्रीमती हरदेवी रोशन लाल ने दृढ़तापूर्वक कहा कि, "राष्ट्रीय सामाजिक सम्मेलन कांग्रेस से भी अधिक महत्वपूर्ण संगठन है, क्योंकि यह इस बात पर जोर देता है कि स्त्रियों का सरोकार पुरुषों के समान ही है। साथ-साथ दोनों उठते हैं या गिरते हैं। वामन या ईश्वर की तरह बंधनयुक्त या उन्मुक्त।
मैडम भीकाजी रुस्तमजी कामा राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्रिटिश राज्य के विरुद्ध क्रांतिकारियों की गतिविधियों में खुलकर मदद करने वाली जीवट महिला थीं। वे एक सच्ची अंतरराष्ट्रीयतावादी थीं और उनका मत था "दुनिया मेरा देश है तथा हर इंसान मेरा संबंधी। परंतु विश्व में अंतर्राष्ट्रीयतावाद की स्थापना से पूर्व में राष्ट्रों को तरजीह दूँगी।
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