Today when things like Tarot are rushed to alternatives, for people to know things better or skin deep, India had already developed a comprehensive scientific set to read our bodily features, bearing their own journey and fate. This cosmic science of Samudrika entails aura and face readings, features analysis, palmistry, and so on. This Hindi edition by PREM KUMAR SHARMA has answers and commentaries to your most of your calls on elevation, depression, elongation, diminution, etc.
परिचय, परिभाषा और व्याख्या
हस्तरेखा विज्ञान-जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है, हाथ की रेखाओं के अध्ययन का शाख है। हथेलियों पर जौ रेखायें पायी जाती हैं वह मनुष्य के जन्म के समय से ही उसके हाथों में पायी जाती है। हमारे प्राचीन ऋषियों के अनुसार इसकी उत्पत्ति गर्भकाल में ही हो जाती है । अमेंरिका शोधकर्ता डॉ० यूनिन शीमेन ने भी इसकी पुष्टि की है कि ये रेखायें गर्भावस्था के तीसरे-चौथे महीने में उत्पन्न होती है । इसके उत्पन्न होने के सम्बन्ध में, इनकी प्रामाणिकता (कि इनसे भविष्य के घटनाक्रमों या मनुष्य की प्रवृत्ति को समझा जा सकता है) के सम्बन्ध में और इस अद्भुत रहस्यमय विज्ञान के सम्बन्ध में आधुनिक युग में अनेक पश्चिमी विद्वानों के शोध सामने आ गये हैं और इन्होंने भले ही इनकी उत्पत्ति और इनके द्वारा भविष्य-गणना के रहस्य को ज्ञात करने में कोई सफलता नहीं प्राप्त की है;- और अंधेरे में भटकते हुए बौद्धिक कसरत कर रहे है; परन्तु इस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता कि आज भारत में जिस हस्तरेखा-विज्ञान का प्रचलन है; वह इन पश्चिमी शोधकर्ताओं की देन है । यह विद्या भारतीय अवश्य है; परन्तु भारतीयों की विडम्बना यह है कि इन्हे अपने प्राचीन ज्ञान-विज्ञान पर भरोसा ही नही है। इन्होंने इनके सम्बन्ध में कभी शोधात्मक सक्रियता नहीं अपनायी । हजार वर्ष से इस क्षेत्र में यहाँ कोई काम ही नही हुआ । बस लकीर के फकीर प्राचीन ग्रंथों के विवरणों को भुना रहे हैं। 'हस्तरेखा विज्ञान' का उत्पत्तिस्थल भारत ही है । इसमें कोई विवाद नहीं है और पश्चिमी शोधकर्ता भी इस तथ्य को स्वीकार करते हैं । यह विद्या विभिन्न माध्यमों से भारतीय व्यक्तियो द्वारा ही विश्व-भर में प्रचारित-प्रसारित हुई है; किन्तु हजार वर्ष की गुलामी के दौरान भारतीय ग्रंथों को नष्ट कर दिया गया । मुस्लिम आक्रमणकारियों ने यहाँ के सभी ज्ञान-विज्ञान के साधन नष्ट कर दिये । यहाँ के विश्वविद्यालय, पुस्तकालय, उनके ग्रंथ सबको यथासम्भव नष्ट कर दिया । फलत: यहाँ इस विषय पर कोई बहुत अधिक विवरण प्राप्त नही है, तथापि इस विद्या की प्राचीनकाल की विशालता की चर्चा अन्य प्राचीन ग्रंथों के पन्नों में बिखरी दिखायी देती है । यह भारतीय सामुद्रिक विद्या की एक शाखा है, पर प्राचीनकाल में इसका स्वरूप सागर की भाँति विशाल था ।
अत: हस्तरेखा विज्ञान भारतीय सामुद्रिक विद्या की वह शाखा है; जिसमें हस्त-रेखाओं द्वारा मनुष्य की प्रवृत्तियों गुणों एक भविष्य के घटनाक्रमों के बारे में अध्ययन किया जाता है ।
क्या यह विज्ञान है?
आजकल हस्तरेखा के विषय पर लिखी नयी पुस्तकों में विज्ञान: लिखने की परिपाटी चल पड़ी है; परन्तु कोई भी तथाकथित हस्तरेखा विशारद् इस बारें कुछ भी कह सकने में असमर्थ हैं कि यह विज्ञान किस प्रकार है? आधुनिक विज्ञान इस शाख को विज्ञान नही मानता । वह इसे अन्धआस्था कहता है और हमारे ये हस्तविशारद् इस शाख की कोई तार्किक बौद्धिक एवं सुसंगत सैद्धान्तिक व्याख्या कर सकने में असमर्थ है। उनका घिसा-पीटा कथन होता है कि प्राचीनकाल की विद्याओं में विज्ञान तो हैं ही । कुछ यह कहने लगते हैं कि अनुभव द्वार।' इन रेखाओं के बारे में कहे गये कथन सत्य होते है, इसलिये यह विज्ञान है ।
परन्तु जो लोग आधुनिक विज्ञान के बारे में जानते हैं वे समझ सकते है कि इस प्रकार के तर्क किसी विषय को विज्ञान सिद्ध करने में निरर्थक हैं ।
वस्तुत: भारत के वैदिक एव शाक्त-मार्ग के वितान के बारे में आज किसी को कुछ भी ज्ञात नही। गुरू-शिष्य परम्परा में चलने वाला यह 'विज्ञान' आज पुरी तरह से लुप्त है । आज जो साधक आदि सक्रिय है, वे सिद्धियों के पीछे भाग रहे है, जो 'ज्ञान' नही है, अपितु एक या एक से अधिक विशिष्ट तकनिकियाँ मात्र है। इन तकनिकियों में कोई ज्ञान नही है । ये केवल प्रयोग हैं और विडम्बना यह है कि इन प्रयोगों के सैद्धान्तिक सूत्र का भी ज्ञान किसी को नहीं है। फिर इन प्राच्य विद्याओं की वैज्ञानिकता किस प्रकार सिद्ध हो?
हस्तरेखा शास्त्र विज्ञान सम्मत है।
हस्तरेखाओं से सम्बन्धित विषय सम्पूर्ण रूप से वैज्ञानिकहैं। यह भारतीय तत्व-विज्ञान की एक छोटी सी शाखा हैं। वस्तुत: यह तत्व-विज्ञान ही वास्तव में विज्ञान है, शेष सभी तुक्का है, जिसमें जानकारियाँ मात्र है और इन जानकारियों को ही भौतिक विज्ञान विज्ञान कहता है, जबकि विज्ञान का सम्बन्ध एक ऐसे सुव्यवस्थित सूत्रात्मक व्यवस्था के ज्ञान से हैं; जो प्रकृति के तमाम रहस्यो को व्यक्त कर सके । आधुनिक विज्ञान इस विषय पर कोरा है । वह मुट्ठी भर जानकारियों को ही विज्ञान कह रहा है ।
पुस्तक के सामुद्रिक खंड में हमने यह विवरण सम्पूर्ण रूप से स्पष्ट किया है कि किस प्रकार से मूलतत्व में भवँर का निर्माण होता है और किस प्रकार एक सृक्ष्मतम् परमाणु की उत्पत्ति होती है, जिसे वैदिक भाषा में 'आत्मा' कहा गया है । यह परमाणु एक सर्किट का रूप धारण कर लेता है, जो ऊर्जा-धाराओं (इसमें मृलतत्व ही घूमते हुए विभिन्न धाराओं में प्रवाहित होते है) के क्रास पर अपने ऊर्जा उत्सर्जन बिनु को उत्पन्न करताहैं। ये बिन्दु नये-नये स्वरूप में तरंगों को उत्सर्जित करते हैं और यह परमाणु स्वचालित हो जाता है ।
स्वचालित होकर यह नाचने लगता है और अपना विस्तार करने लगता है। इसके नाभिक से प्रथम परमाणु जैसे परमाणुओं की बौछार होने लगती है, और ये परमाणु नयी-नयी इकाइयों को उत्पन्न करने लगते हैं ।
सामुद्रिक विद्या का शरीर विज्ञान
पृथ्वी पर जो जीव-जन्तु या प्राणी दृष्टिगत होते हैं वे कोई विलक्षण उत्पत्ति नहीं हैं। इनकी उत्पत्ति भी उन्हीं सूत्रों एवं नियमों से होती है; जिन नियमों एवं सूत्रों से ब्रह्मांड की उत्पत्ति होती हैं । पृथ्वी के नाभिकीय कण एवं सूर्य के नाभिकीय कणों के संयोग से प्रथम परमाणु जैसा ही एक सर्किट बनता है, जो प्राणविहीन स्थिति में पृथ्वी एवं सूर्य के नाभिकीय संयोजन के बल से अन्यन्त अल्पकाल तक सक्रिय रहता है । इसी बीच इसमेंब्रह्माडीय नाभिकीय कण समा जाता है और वह सर्किट स्वचालित होकर अनुभूत करने एवं प्रतिक्रिया व्यक्त करने लगता है । इस विषय में हम प्रथम खंडे में बता आये हैं कि यह सर्किट किस प्रकार सक्रिय होता है और कैसे पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण के प्रभाव से इसमें विभिन्न अंगों की उत्पत्ति होती है ।
यहाँ इस चित्र को देखिये । डमरूनुमा यह सर्किट नाच रहा है । इसके नाचने से इसके ऊपर नीचे के वृतखंड जैसे चाप के किनारों से वातावरण की ऊर्जा की लहरें कटती हैं और हाथ-पैर विकसित होते हैं।
अब आप स्वयं समझ सकते हैं कि हाथों-पैरों की ये धारायें बाहरी स्वरूप एवंप्रवृत्ति में एक जैसी होती है; पर प्रत्येक सर्किट की धाराओं एवं उनकी सक्रियता में अन्तर होता है । यह अन्तर इसके सम्पूर्ण अंगों में प्रसारित होता है । अब जैसा सर्किट होगा, वैसे ही अंगों के लक्षण होंगे । इसी सूत्र पर समस्त सामुद्रिक विद्या आधारित है ।
हाथों की उत्पत्ति एवं ऊँगलियों का गोपनीय रहस्य
अब पुन: यहाँ दिये गये चित्र को देखिये । D एव E किनारे वस्तुत: एक ही तस्तरीनुमा प्लेट के नीचे की ओर मुड़े हुए किनारे हैं जो नाचते हुए वातावरण की ऊर्जा (पृथ्वी एवं सूर्य की ऊर्जा का सम्पत्ति रूप) को काटते हैं और इससे लहरें उत्पन्न होती हैं । इनका एक अन्तर तो D एवं E बिन्दु पर उत्पन्न होता है । दूसरा अन्तर वहाँ आता है, जहाँ लहरें कटती हैं ।
ये नीचे बीच में जाकर B एवं C की इसी प्रकार की लहरो से टकरा कर छितराते हैं । इनमें मुख्य पाँच प्रकार की धारायें होती हैं । ये अलग-अलग हो जाती हैं ।
पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण का प्रभाव
पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण के कारण ये धारायें दो ओर सिमट कर पृथ्वी में समान। चाहती हैं पर इनका चुम्बकीय कवच रोकता हैं और हथेलियों का निर्माण होता है । यह स्थिति जीवाणु के सतत विकास की है । बाद की विकसित स्थितियाँ अपने-अपने नाभिकीय कणों (डिम्ब+शुक्राणु) के संयोग से बनती हैं और इनमें पूर्ववर्ती गुण नये सर्किट को जन्म से ही प्राप्त हो जाते है या यों कहें कि गर्भावस्था से ही । इसका भी एक सुस्पष्ट सूत्र है । जैसा सर्किट हैं, उसका नाभिक भी वैसा ही ट्यून्ड होता हैं। उसके कण भी । फलत: वे अपनी प्रतिलिपियों को उत्पन्न करते है।
इस प्रकार विकसित होती हैं हाथ की रेखायें
तत्वविज्ञान के अनुसार इस सर्किट में पाँच प्रकार की ऊर्जाधारायें होती हैं । ये अपने समिश्रण से 9 प्रकार की धाराओं का निर्माण करते हैं । ये सभी धारायें बाहों से होकर आगे बढ़ती हैं और कलाई के पास जाकर धरती से सम्पर्क होने पर छितराकर हाथों के रूप में विकसित होती हैं ।
स्वाभाविक है कि जैसी सर्किट की धारायें होंगी, वैसी ही उनके मिश्रण के जोड़ों और घूर्णन आदि के चिह्न प्रकट होंगे। हथेली की रेखाओं का रहस्य यह है ।
सम्पूर्ण हस्तरेखा विज्ञान इसी सूत्र पर आधारित है। इन रेखाओं के द्वारा सर्किट की स्थिति उसकी ऊर्जात्मक प्रवृत्ति उसके अस्तित्व का काल उसके गुण उसकी क्रियाविधि एवं उसके जीवन का घटनाक्रम आदि इस सूत्र पर ज्ञात किया जाता है कि गुण-धर्म प्रवृत्ति आयु घटनायें सर्किट की धाराओं के समीकरण पर आधारित हैं ।
अभी बहुत काम बाँकी है
यद्यपि आज हस्तरेखा विज्ञान विश्व भर में प्रसारित-प्रचारित हो रहा है, तथापि हम भारतीयों को इस पर विशेष प्रसन्न होने का कोई कारण नहीं है; क्योंकि हमने इस क्षेत्र में नये अनुसन्धानों एवं परीक्षणों के लिये कुछ नहीं किया है। यह सब यूरोपियन विद्वानों के शोधों एवं परीक्षणों के परिणाम हैं । हमारे यहाँ तो दो प्रकार के ही व्यक्ति रहते हैं । एक यूरोपियन मनोवृत्ति के निकृष्ट दास जो यह मानते हैं कि विकसित मानसिकता एवं विज्ञान तो यूरोपियनों का है, भला लंगोटधारियों का विज्ञान से क्या वास्ता? दूसरे वे लोग हैं जो भारतीय ऋषियों के श्लोंकों से शाब्दिक अर्थ लेकर ऐसे बुतपरस्त बने हुए हैं कि सारे-ज्ञान-विज्ञान को अंधआस्था के कचरे में दफन करके अपनी रोजी-रोटी और व्यक्तित्व प्राप्ति में लगे हैं। एक हजार वर्ष से भारत में इस दिशा में कोई परीक्षण-अनुसन्धनि या खोजबीन का प्रयत्न हुआ ही नहीं । बस रटने वाले तोतों का समुदाय भारतीय शान के उद्धारक और भंडारक बने बैठे हैं।
ऐसे में किया भी क्या जा सकता है? हम तो प्रभु से केवल इतनी प्रार्थना करना चाहते हैं कि पढ़े-लिखे तर्कशील, बौद्धिक विचारधारा के युवा व्यक्तित्वों को इस दिशा में अपना समय देने के लिये प्रेरित करें, ताकि उनके मस्तिष्क से इस मानसिक रूप से गुलाम राष्ट्र का उद्धार हो सकें।
विषय-सूची
खण्ड एक
शरीर लक्षण एवं आकृति विज्ञान
1
सामुद्रिक विद्या-परिचय और तात्विक व्याख्या
17-20
2
सृष्टि-विचार
21-30
3
भारतीय जीव-विज्ञान
31-40
4
जीव की शारीरिक संरचना का रहस्य
41-48
5
कैसे बनते हैं? लक्षण?
49-55
सामान्य लक्षण विचार
56-74
लक्षणशास्त्र के सूत्र और वर्गीकरण
75-91
सूक्ष्म एवं सर्वलक्षण विचार
पैर एवं उसके चिह्नों का शुभाशुभ
92-118
तलवों की रेखाएं और भविष्य
119-127
स्त्री के तलुवों की रेखाएं एवं भविष्य
128-130
जांघों, कूल्हों, नितम्बों, टांगों, पिण्डलियों आदि के विचार
131-145
यौनांग-लिंग एवं योनि
146-152
6
उदर-प्रदेश विचार
153-156
7
वक्ष प्रदेश विश्लेषण
157-169
8
भुजाएं (बांहें), कलाई, गर्दन, पीठ आदि के विचार
170-174
9
गर्दन, सिर, चेहरा और सिर के अंगों के विकार
175-186
10
स्त्री के विशिष्ट लक्षणों के विचार
187-205
11
आकृति के अनुसार भविष्य एवं प्रवृत्ति विचार
206-213
12
ललाट की रेखाओं द्वारा भविष्य एवं प्रवृत्ति ज्ञान
214-237
सामुद्रिक शास्त्र
प्राचीन सामुद्रिकशास्त्रम्
239-260
व्यक्तित्व विचार
261-267
आवर्त विचार
268-270
स्त्री के अंगों के लक्षण
271-283
स्त्रियों के लक्षण
284-294
सामुद्रिक जाति लक्षण
295-316
सामुद्रिक हस्तरेखा विचार
330-350
सामुद्रिक हस्तरेखा विज्ञान
351-395
सामुद्रिक सर्वांग शरीर लक्षण
396-446
ग्रहों का हस्त चिह्नों पर प्रभाव
447-466
13
ग्रहों की विकसितादि स्थिति
467-479
14
ज्योतिष हस्तरेखा व रोग विचार
480-501
15
हस्तरेखा व अनिष्ट ग्रहों के अचूक उपाय
502-512
16
ज्योतिष व हस्तरेखा द्वारा जन्मपत्री निर्माण
513-534
(कृपया दूसरे भाग का अवलोकन करें)
खण्ड दो
हस्तरेखा विज्ञान
3-7
भाग्य प्रबल होता है या कर्म?
8-14
बनावट के अनुसार हाथों का वर्गीकरण
15-38
कोमलता तथा कठोरता की दृष्टि से वर्गीकरण
39-41
अंगूठी के झुकाव के आधार पर वर्गीकरण
42-43
रंग की दृष्टि से हाथों का वर्गीकरण
44-47
हथेलियों के अंग एवं पर्वतों का विश्लेषण
48-73
रेखा परिचय
74-81
जीवन रेखा
82-95
मस्तिष्क रेखा
96-113
भाग्य रेखा
114-139
हृदय रेखा
140-159
बुध रेखा, अन्तर्ज्ञान रेखा, स्वास्थ्य रेखा
160-164
मंगल रेखा
165-168
राहु रेखा
169-172
मत्स्य रेखा
173
17
विवाह रेखा
174-178
18
वृहस्पति रेखा (इच्छा रेखा)
179
19
शुक्र रेखा
180-181
20
चन्द्र रेखा
182
21
सूर्य रेखा
183-188
22
विलासकीय रेखा
189
23
हथेली पर पाये जाने वाले चिह्न
190-196
24
हस्तचिहों पर विदेशी मत
197-226
हस्तरेखाओं से भविष्य दर्शन
रेखाओं का संक्षिप्त परिचय
I. हथेली के ग्रह पर्वत और उनके क्षेत्र
15-16
II. जीवन रेखा की स्थितियां एवं फल
17-48
III. मस्तिष्क रेखा एवं उसकी विभिन्न स्थितियां
49-86
हृदय रेखा एवं उसकी विभिन्न स्थितियां
87-110
भाग्य रेखा एवं उसकी विशेष स्थितियां
111-144
145-149
बुध रेखा/अन्तर्ज्ञान रेखा/स्वास्थ्य रेखा
150-153
154-172
सन्तान रेखा
173-175
राहु रेखाएं
176-179
बृहस्पति रेखा (इच्छा रेखा)
182-183
शुक्र रेखाएं
184-185
186-187
188-192
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