पुस्तक के विषय में
रीति-कवियों के अतिरिक्त रीतिकाल में संत, सूफी, राम और कृष्ण काव्यधारा सहित अन्य कवि हुए हैं जो न तो चारण, आचार्य, राजगुरु अथवा राज्याश्रित कवि थे और न ही विलासिता अथवा रसिकता से उनका कोई लेना-देना था. बल्कि धर्म-भावना ही उनके व्यक्तित्व का प्रमुख तत्व थी ।
सहजोबाई (1782-1805) भी रीतिकाल की एक ऐसी ही कवयित्री हैं, जिनका प्रादुर्भाव रीतिकाल के लगभग मध्य-भाग में हरियाणा में हुआ । उनके गुरु चरण दास थे । सहजोबाई द्वारा रचित एक ही रचना प्रामाणिक मानी जाती है और वह है- सहजकार्य । इसका पहला प्रकाशन 1838 में हुआ । लगभग 100 पृष्ठों की यह पुस्तक भारतवर्ष की तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में गुरु-भक्ति, सगुण के माध्यम से निर्गुण-प्राप्ति-योग, साधना और सदाचरण पर बल देकर पथभ्रष्ट मानव को विश्वबंधुत्व के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित-प्रोत्साहित करती है । काव्य-रचना के साथ-साथ सहजोबाई ने आश्रम से बाहर निकलकर समय-समय पर आयोजित 'रामते' (धार्मिक यात्राओं) के माध्यम से भी आध्यात्मिक उन्नयन और जन-जागरण का कार्य किया ।
लेखक परिचय
उषा लाल (जन्म 1955) कुमारी विद्यावती आनंद डी.ए.वी. महिला महा- विद्यालय, करनाल (हरियाणा) में एसोशिएट प्रोफ़ेसर और हिंदी विभागाध्यक्ष । आप हरियाणा में रचित हिंदी-साहित्य और पारंपरिक लोक-साहित्य की विशेषज्ञ हैं । हरियाणा की हिंदी कहानी साहिल के रूप-रंग, हरियाणा का साहित्यिक देशकाल आदि पुस्तकें प्रकाशित हैं ।
अनुक्रम
1
जीवन और साहित्य
7
2
भक्ति-भावना
14
3
दार्शनिक चेतना
31
4
लोकसंस्कृति-निरूपण
45
5
काव्य-कला
67
6
अवदान
76
संदर्भ-सामग्री
80
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Tantra (तन्त्र) (1024)
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