जो लोग आध्यात्मिक जीवन में आगे बढ़ना चाहते हैं, उनके जीवन में साधुसंग की महत्वपूर्ण भूमिका है। जैसा संग, वैसा रंग। श्रील प्रभुपाद ने कहा है कि अगर किसी को पक्का शराबी बनना है, तो उसको शराबियों की संगति करनी चाहिए। उसी प्रकार अगर किसी को भगवान का पक्का भक्त बनना हैं तो उसको साधुओं के संग में रहना चाहिए। यह पुस्तक भक्तों की संगति की महत्ता पर प्रकाश डालेगी। साधु संग पुस्तक में शास्त्रों के प्रमाणिक विचारों को प्रस्तुत करने के साथ साथ स्वयं ४६ वर्ष से व्यवहारिक तौर पर लेखक ने साधु संग में जो अनुभव किया है, उसकी भी प्रस्तुति की है।
साधु संग प्राप्त करने के लिए हमें साधुओं का पूर्ण ज्ञान होना आवश्यक है। अर्थात, हमें साधु संग का महात्म्य समझना होगा और उसके बाद हमें अलग अलग श्रेणी के भक्तों को, उनकी श्रेणी पर उनको समझना होगा कहीं ऐसा न हो कि हम कनिष्ठ भक्त को उत्तम समझकर व्यवहार करें और उत्तम को कनिष्ठ समझकर कोई अपराध करें। इसलिए भक्तों के साथ कैसे व्यवहार करें यह कला सीखनी होगी। शुद्ध भक्तों की पहचान के पश्चात् भक्ति के मार्ग में आगे बढने की आकांक्षा रखने वाले व्यक्ति को चाहिए कि वह इनका अधिकाधिक संग प्राप्त करे। उनकी दिनचर्या और कार्यकलाप को देखें। उनका दूसरे भक्तों के साथ किए जाने वाले व्यवहार से सीखें कि भक्तों के साथ कैसे मधुरता तथा विनम्रता से बात की जाती है और उनके उपदेशों को ग्रहण करें।
शुद्ध भक्तों का संग अर्थात साधु संग से ही मनुष्य का सर्वांगीण विकास संभव है। वह भक्ति के पथ पर इस साधु संग के माध्यम से ही आगे बढ़ सकता है। ध्यान रहे कि साधु के प्रति किया गया अपराध अक्षम्य होता है और उससे मुक्ति उसी साधु व्यक्ति द्वारा की जा सकती है जिसके प्रति अपराध हुआ है। वैष्णव भक्त के प्रति किए गए अपराध से भक्ति की कोमल लता ऐसे ही नष्ट-भ्रष्ट हो जाती है जैसे एक मदमस्त हाथी के सुंदर बगीचे में प्रवेश करने से सारा बगीचा नष्ट हो जाता है। हमें बहुत गंभीरता से साधु संग विषय को समझना होगा ताकि हम वैष्णवों के प्रति अपराध न करें। हमें ज्ञात होना चाहिए कि जीव का सर्वोच्च कल्याण श्रीकृष्ण भक्ति से ही हो सकता हैं। इसके लिए साधु संग अनिवार्य हैं। इसलिए हमें साधु संग की कला का ज्ञान होना बहुत ही जरूरी है। इस पुस्तक में जीव का सर्वोत्तम कल्याण कैसे हो, इसकी सरल विधि बताने का प्रयत्न किया गया है।
इस पुस्तक का आधार एक तीन दिवसीय सेमीनार है जो कि डेनवर, कोलोराडो, अमेरिका में हुई। श्रीमान चैतन्यदेव दास प्रभु के अनुरोध पर परम पूज्य क्रतु दास जी महाराज ने साधु संग विषय पर प्रवचन दिया था। इस सेमीनार ने भक्तों को इतना आप्लावित कर दिया कि भक्तो ने लेखक को साधु संग पर पुस्तक लिखने के लिए उत्साहित किया। इसी के परिणाम स्वरूप २०१४ में पहली बार साधु संग पुस्तक अंग्रेजी में प्रकाशित हुई। इस पुस्तक की जनप्रियता को देखते हुए और हिंदी भाषी भक्तों की मांग को मान्यता देते हुए अब उसी पुस्तक को हिंदी में प्रस्तुत किया गया है। परम पूज्य क्रतु दास जी महाराज इस्कॉन के प्रामाणिक गुरुओं में से हैं और श्रील प्रभुपाद के शिष्य हैं। ये पुस्तक उनके व्यक्तिगत जीवन के अनुभवों का भी दर्पण स्वरूप है।
पुस्तक के प्रकाशन में अनेक भक्तों ने कवर डिजाइन करके, चित्र अंकित करके और एडिटिंग के द्वारा अपना अपना योगदान दिया है। उनमें से कुछ भक्तों के नाम इस प्रकार हैं- प्रिय सखी देवी दासी, चैतन्यदेव दास, कृपालु कृष्ण दास, रमन दास, प्यारी राधे देवी दासी, स्नेह गौरांगी देवी दासी, राधा श्यामसुंदर दास, कृष्ण केशव दास, राधा भक्ति देवी दासी, सुवर्ण राधिका देवी दासी, सोनम माहेश्वरी, अच्युत गोपी देवी दासी, अनुपमा सुन्दरी देवी दासी, तविषी, अमल इत्यादि ।
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