अमृता प्रीतम के कृतित्व का यह असाधारण गुण है कि जब वह कविता लिखती हैं तो अपनी अनुभूति की तरलता को ऐसा रूप देती हैं जो गद्य की तरह सहजता से हृदय में उतर जाती है, और जब वह उपन्यास या कहानी लिखती हैं तो भाषा में कविता की लय लहराने लगती है।यदि उनकी अनेक कहानियों में से चुनकर श्रेष्ठ का संकलन कर लिया जाए, और वह भी स्वयं अमृता प्रीतम द्वारा, तो पाठक को पुस्तक के रूप में अमृत-कलश ही प्राप्त हो जाता है। उनकी चुनी हुई कहानियों का यह संग्रह सात सौ बीस क़दम ऐसा ही है।अमृता प्रीतम की इन कहानियों में प्रतिविम्बित है स्त्री-पुरुष के योग-वियोग की मर्म-कथा तथा परिवार और समाज से प्रताड़ित नारी के दर्द के बोलते चित्र। इन कहानियों का विषय-विस्तार अमृता जी के चिन्तन के विविध पक्षों को उजागर करता है। प्रस्तुत है सात सौ बीस क़दम का नया संस्करण ।
भारतीय साहित्य में कथाकार एवं कवयित्री के रूप में एक बहुचर्चित नाम। 31 अगस्त, 1919 को गुजरांवाला (पंजाब) में जन्म। बचपन बीता लाहीर में, शिक्षा भी वहीं हुई।किशोरावस्था से लिखना शुरू कर दिया था कविता, कहानी, उपन्यासऔर निबन्ध भी। प्रकाशित पुस्तकें पचास से अधिक। महत्त्वपूर्ण रचनाएँ:अमृता प्रीतम काग़ज ते कैनवस, में जमा तू (कविता संग्रह); पिंजर, जलावतन, यात्री, कोरे काग़ज़ (उपन्यास); सात सी वीस क़दम (कहानी-संग्रह); काला गुलाब, सफ़रनामा, अज्ज दे काफ़िर (गद्य-कृतियों); रसीदी टिकट (आत्मकथा) आदि। अनेक रचनाएँ देशी-विदेशी भाषाओं में अनूदित। साहित्यिक पत्रकारिता में विशेष रुचि ।'साहित्य अकादेमी पुरस्कार' (1956), बुल्गारिया के 'वैप्त्सरोव पुरस्कार' (1980), और 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' (1981) से सम्मानित ।देहावसान : 31 अक्तूबर, 2005 ।
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