आपके सम्मुख अपना नौवां काव्य संग्रह 'रिश्ते काँच से, हो गए हैं' प्रस्तुत कर रहा हूँ। इस संग्रह में मेरी कुल ...... कविताएँ हैं। इन कविताओं में जीवन के विभिन्न रूपों की प्रतिछाया मिलेगी। कवि/कथाकार साहित्यकार जब भी सृजनकार्य करता है तो या वह अपने जीवन के अनुभवों को अपने साहित्य का विषय बनाता है, या फिर मुक्तभोगी के रूप में उसने जीवन में जो झेला-भोगा देखा होता है, उसके बारे में वह लिखता है। कवि-साहित्यकार मात्र उन्हीं विषयों को अपनी रचनाओं का आधार बनाना चाहता है, जिसमें उसे जीवन का सार दिखे, तथा जिस विषय को वह बड़ी गम्भीरता से पाठकों के सामने रख सके। हाँ इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता, कविताओं को रचते हुए कहीं-कहीं कल्पनाओं के पुट की आवश्यकता उसे रहती है, जिनका प्रयोग वह रचना को श्रेष्ठ तथा स्वभाविक बनाने में करता है। यह कहना यहाँ सार्थक होगा, यह सोने में सुहागा वाली कहावत के समान (तुल्य) इसे समझा-आँका जाए।
जहाँ तक कवि की शैली की बात है, प्रस्तुतिकरण की बात है। वह हर कवि का अपना-अपना विशिष्ट ढंग होता है। मेरी कविताओं में समकालीन मुद्दों के साथ-साथ जीवन के चिरस्थाई मुद्दे भरे रहते हैं। जीवन का जो सार है, जीवन का जो गूढ़ रहस्य है। वही मेरी कविताओं का स्वर है। मैं मानव के भीतर की बातों को कविताओं में उतारता हूँ। मैं कविता बनाता नहीं, बल्कि वह मेरे मन की अतल गहराईओं से फूट पड़ती है तो मैं उसे शब्दों में बाँध लेता हूँ।
आजकल कई प्रकाशक कहते हैं, कि कविताओं की किताबें बिकती नहीं। जबकि यह कटु सत्य है कि काव्य पुस्तकें अन्य साहित्यक विधाओं की पुस्तकों से कहीं अधिक छपती हैं। ज्यादा छपती हैं तो बिकती भी होगीं अवश्य। इसमें कोई संशय नही होना चाहिए। हमें सच्चाई को नकारना नही चाहिए।
मेरी सभी कविताएं सहज-सरल शब्दों में लिखी गई हैं। मैं सदा यही चाहता हूँ कि मेरी कविताएँ उस व्यक्ति को भी पढ़ने समझने में कोई दिक्कत न हो, जिसे मात्र अक्षरज्ञान की जानकारी हो। संक्षेप में अगर यूँ कहूँ कि मेरी कविताएँ कमजोर वर्ग, मजदूर, सर्वहारा वर्ग तथा झोपरपट्टी में रहने वाले लोगों को भी समझ आनी चाहिए। इसलिए मैं शब्दों को भारी-भरकम जामा नही पहनाता, कठिन शब्दों के प्रयोग से सदा बचता हूँ।
बुद्धिजीवी वर्ग से मैं यह कहना चाहूँगा कि वह इन कविताओं को पढ़े तथा इन पर अपने सारगर्भित विचारों से मुझे भी अवगत अवश्य करवाएँ। मुझे अच्छा लगेगा। जब भी मुझे ऐसे पाठक दूर-दूर से फोन करते हैं तो मुझे वेहद अच्छा लगता है।
एक बार पुनः निवेदन करूँगा सभी पाठकों से, कि वह अपनी-अपनी बहुमूल्य टिप्पणियों से मुझे अवश्य अवगत करवाएँ।
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