मॉरिशस के यशस्वी कथाकार अभिमन्यु अनत का यह उपन्यास उनके लेखन में एक नए दौर की शुरुआत है | इस उपन्यास में वे देश और काल की सीमाओ में बँधी मानवीय पीड़ा को मुक्त करके साधारीकरण की जिस उदात्त भूमि पर प्रतिष्ठित कर सके है, वह उनके रचनाकार की ही नहीं, समूचे हिंदी कथा-साहित्य की एक उपलब्धि मानी जाएगी |
मॉरिशस की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित इस उपन्यास में उन भारतीय मजदूरो के जीवन-संघर्षो की कहानी है, जिन्हे चालाक फ्रांसीसी और ब्रिटिश उपनिवेशवादी सोना मिलने के सब्जबाग दिखाकर मॉरिशस ले गए थे | वे भोले-भाले निरीह मजदूर अपनी जरुरत की मामूली-सी चीजे लेकर अपने परिवारो के साथ वहाँ की चट्टानों को तोड़कर समतल बनाया, और उनकी मेहनत से वह धरती रसीले और ठोस गन्ने के रूप में सचमुच सोना उगलने लगी | आज मॉरिशस की समृद्ध अर्थव्यवस्था का आधार गन्ने की यह खेती ही है | लेकिन जिन भारतीयों के खून और पसीने से वहाँ की चट्टानें उपजाऊ मिट्टी के रूप में परिवर्तित हुई, उन्हें क्या मिला ? यह उपन्यास मॉरिशस के इतिहास के उन्ही पन्नो का उत्खनन है जिन पर भारतीय मजदूरो का खून छिटका हुआ है, और जिन्हे वक्त की आग जला नहीं पाई | आज मॉरीशस एक सुखी-सम्पन्न मुल्क के रूप में देखा जाता है |
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