भारतीय संस्कृति में रत्नों का प्रयोग चिर प्राचीन काल से होता आ रहा है। रत्न की गणना शोभन और सौन्दर्यवर्धक वस्तुओं में होती है। साथ ही, इसका आध्यात्मिक महत्त्व भी है। अपनी इसी गुण-गरिमा के कारण 'रत्न' शब्द श्रेष्ठता का प्रतीक माना जाता है। समाज के विभिन्न क्षेत्रों में सम्मान, वरीयता और वैशिष्ट्य देने के लिए 'रत्न' शब्द प्रयुक्त होता है।
हमारा प्रतिपाद्य विषय प्रतीकार्थ न होकर 'रत्न' नामक वह मूल पदार्थ है, जिसे बहुमूल्य पत्थर के रूप में नाना वर्ण, गुण, प्रभाव और अलौकिकता से युक्त माना जाता है।
रत्नों के सम्बन्ध में बहुत कम साहित्य उपलब्ध होता है। जो कुछ है भी, अधिकांश प्रासंगिक और अपूर्ण जैसा है। केवल कुछ ही पुस्तकें ऐसी हैं, जो रत्नों के विषय में जानकारी देती हैं, अन्यथा रत्न-साहित्य की बहुत कमी है।
रत्नों का जो कुछ विवरण मिलता है, उसमें उनके प्रभाव और उपयोग के विवेचन की रिक्तता खटकती है। बिना जानकारी हुए, जनसामान्य रत्नों की उपयोगिता का लाभ नहीं उठा सकता। उनके लिए रत्न मात्र विलासिता और प्रदर्शन की वस्तु हैं; क्योंकि वे मूल्यवान होते हैं। और, इस भ्रान्ति के कारण कभी-कभी समर्थ जन भी रत्न धारण के प्रति उदासीन हो जाते हैं। उनके विचार से यह 'कंकड़-पत्थर' बेकार की चीजें हैं। उनकी दृष्टि में काँच और मणि एक ही हैं।
कोई भी रत्न धारण किया जाय, मानव जीवन पर उसका प्रभाव अवश्य पड़ता है, इस अकाट्य सत्य को अब कितने हो भौतिक विज्ञानी और नास्तिक भी स्वीकार करने लगे हैं। भारतीय संस्कृति के सन्दर्भ में जिन विभिन्न मणियों का उल्लेख मिलता है, वे यही रत्न हैं। साहित्यिक अतिरंजना से मुक्त करके, यदि प्रयोगों की कसौटी पर परख प्रभाव (यदि रत्न शुद्ध है और विधिवत् धारण किया गया है) चमत्कारी ढंग से अनायास ही धारक के जीवन का दिशा-परिवर्तन कर देता है। रत्नीय प्रभाव का एक प्रबल प्रमाण यह भी है कि प्रतिकूल (अशुभ) रत्न को धारण करने से व्यक्ति अकल्पित आपदाओं से ग्रस्त हो जाता है।
रत्न-धारण में ज्योतिषीय सिद्धान्तों का बहुत महत्त्व है। अतः रत्नों का परिचय, उनकी उपयोगिता, व्यावहारिक प्रयोग, धारण-विधि और सावधानी आदि को मुख्य बिन्दु बनाकर इस पुस्तक की रचना की गयी है। इससे पाठकों को रत्न सम्बन्धी अनेक नये और महत्त्वपूर्ण तथ्य प्राप्त होंगे, ऐसी मुझे आशा है।
साथ ही, पाश्चात्य मत और जन्मतिथि और मूलांक से सम्बन्धित तथ्यों का भी उल्लेख कर दिया गया है, जिससे पुस्तक पाश्चात्य मत को मानने वालों के लिए भी समान रूप से उपयोगी सिद्ध हो सके।
मेरी 'तन्त्र शक्ति', 'मन्त्र शक्ति' को जो मान पाठकों ने दिया है, उसके लिए मैं आप सभी का आभारी हूँ। इस पुस्तक से यदि पाठक कुछ लाभ उठा पाये तो मैं अपने श्रम को सफल समझूंगा।
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