रसलीन (भारतीय साहित्य के निर्माता): Rasleen (Makers of Indian Literature)

Express Shipping
$13.50
$18
(25% off)
Express Shipping: Guaranteed Dispatch in 24 hours
Quantity
Delivery Usually ships in 3 days
Item Code: NZA532
Publisher: SAHITYA AKADEMI
Author: कैलाश नारायण तिवारी:(Kailash Narayan Tiwari)
Language: Hindi
Edition: 2017
ISBN: 9788126032280
Pages: 93
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 90 gm
Fully insured
Fully insured
Shipped to 153 countries
Shipped to 153 countries
More than 1M+ customers worldwide
More than 1M+ customers worldwide
100% Made in India
100% Made in India
23 years in business
23 years in business
Book Description

पुस्तक के विषय में

 

रसलीन हिंदी रीति-कविता के महत्त्वपूर्ण कवि हैं । उनका जन्म 1699 में उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के ऐतिहासिक गाँव बिलग्राम में हुआ था । यह गाँव 17-18 वीं शताब्दी में साहित्य रचना और साप्रदायिक एकता का गढ़ माना जाता था । यहाँ के अरबी, फारसी, उर्दू और हिंदी के रचनाकारों ने भारतीय परंपरा के अनुकूल श्रृंगारिक रचनाएँ लिखी हैं । यह गाँव उस समय मुस्लिम शिक्षा का तक्षशिला था ।

रसलीन का असली नाम "मीर गुलाम नवी" था । वे संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, ब्रज और अवधी के साथ-साथ अरबी और फारसी भाषा के भी विद्वान थे । अन्य कई कवियों की भाँति उन्होंने भी अपने नाम के साथ 'रसलीन' उपनाम जोड लिया था । उस युग के प्रसिद्ध बिलग्रामी-कवि मुहम्मद उनके बारे में लिखते हैं-

मीर गुलाम नबी हुतौ, सकल गुनन को धाम ।

बहुरि धरयौ रसलीन निज, कविताई को नाम ।।

रसलीन का समय मुगलों की सत्ता क्षीण होने और उनकी आपसी कलह के चलते बड़ा उथल-पुथल भरा था । ऐसी कठोर परिस्थिति में रसलीन ने जीवन-यापन के लिए फौज की नौकरी की और मात्र 38 वर्ष की उस में उन्होंने अंगदर्पण और रस-बोध जैसे श्रृंगारिक काव्यों का लेखन भी किया जो समय, काल, वातावरण और प्रतिकूल परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में सचमुच बहुत चुनौतीपूर्ण था । रसलीन राज्याश्रय में नहीं रहे और एक साधारण योद्धा की तरह कर्तव्य-पालन करते हुए 1750 में रामचितौनी (उत्तर प्रदेश) के मैदान मेंसफदरजंग के विरुद्ध लड़ते हुए मारे गए ।

इस विनिबंध में-रसलीन-काव्य का परिचय देते हुए उनके सौंदर्य-बोध रीतिकालीन परंपरा में उनकी भूमिका और सास्कृतिक मूल्यों की दृष्टि से मुत्तफरिक कविताओं का महत्त्व प्रतिपादित करने का प्रयास किया गया है ।

कैलाश नारायण तिवारी (जन्म 1956)-प्रोफेसर, हिंदी विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय । भक्ति काल पर महत्त्वपूर्ण कार्य, चार पुस्तकें प्रकाशित, अनेक विषयों पर शोध-पत्र प्रकाशित । दिसंबर 1996 से जुलाई 2000 तक तुर्की के अंकारा विश्वविद्यालय और वर्तमान में (2009 से) वारसा विश्वविद्यालय, वारसा पोर्लिंड में हिंदी के विजिटिंग प्रोफेसर ।

 

भूमिका

 

हिंदी रीति-कविता में सामान्यत: चार बातें सभी कवियों में पाई जाती हैं । पहली-चारण-प्रवृत्ति और दूसरी-आचार्य कहे जाने की आकांक्षा । तीसरी-भक्त होने का संकेत और चौथी-रस-विवेचना, नायिका-भेद और अलंकारों का अतिशय प्रयोग । परंतु रसलीन एक ऐसे कवि थे, जिनमें चारण-प्रवृत्ति और आचार्य कहे जाने की इच्छा नहीं दिखाई देती, क्योंकि उन्होंने अल्ला, पैगंबर, पीर और कुछ मुस्लिम देव-पुरुषों को छोड़कर अन्य किसी का स्तुति-गान नहीं किया । राज्याश्रय प्राप्त कर लक्ष्य और लक्षण का रीति-शास्त्र तैयार कर सभा-कवि कहे जाने की लालसा भी उनमें नहीं दिखाई देती । भरण-पोषण के लिए सैनिक की नौकरी करते हुए वे सेनापतियों और सामंतों से अच्छा संबंध रखते थे ।

रसलीन की कविता का वर्ण्य-विषय श्रृंगार है । अत: वे उच्चकोटि के श्रृंगारी-कवि माने जाते हैं । उनके ग्रंथों में रस-विवेचना, नायक-नायिका-भेद, स्त्री-अंग-वर्णन, अलंकार और चमत्कार के प्रति मोह, अन्य रीति-कवियों की ही भाँति दिखाई देता है । रसलीन संस्कृत भाषा के भी जानकार थे । इसलिए उनमें संस्कृत साहित्य की श्रृंगारिक और मुक्तकीय परंपरा के प्रति आकर्षण था । रस-विवेचन और नायिका-भेद के बारे में नाट्यशास्त्र का जान, उनके इस दोहे में स्पष्ट झलकता है-

काव्य मतै यै नवरसहु, बरनत सुमति विसेषि।

नाटक मति रस आठ हैं, बिना सांत अविरेषि।।

सो रस उपजै तीनि बिधि, कविजन कहत बखानि।

कहुँ दरसन कहुँ स्रवन कहुँ, सुमिरन ते पहिचानि।।

 

रस-विवेचन और नायिका-भेद के बारे में पूर्ववर्त्तियों से प्रभावित होने के कारण किसी-किसी स्थल पर उनमें आचार्य के भी लक्षण पाए जाते हैं । इसीलिए कुछ लोग भ्रमवश उनमें आचर्यत्व भी ढूँढ़ते हैं । पर काव्यशास्त्रीय परंपरा के अनुसार आचार्य वही माने जाते हैं जो किसी न किसी रूप में काव्य-संप्रदाय के प्रवर्तक हों अथवा भाष्यकार या पंडित । ऐसी स्थिति में रसलीन को आचार्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता । बावजूद इसके, रस और नायिका भेद के गहरे पारखी होने के कारण उन्हें 'पंडित' कहा जा सकता है । रसलीन का असली नाम 'मीर गुलाम नबी' था । वे संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, ब्रज और अवधी के साथ-साथ अरबी और फ़ारसी भाषा के भी विद्वान थे । अन्य कई कवियों की भाँति उन्होंने भी अपने नाम के साथ 'रसलीन' उपनाम जोड़ लिया था । उस युग के प्रसिद्ध बिलग्रामी-कवि मुहम्मद उनके बारे में लिखते हैं-

मीर गुलाम नबी हुतौ सकल गुनन को धाम।

करि धरयौ रसलीन निजु, कविताई को नाम।।

 

संप्रति हिंदी का रीति साहित्य जिस परिवेश और परंपरा में लिखा गया, उसकी ओर ध्यान देने की अपेक्षा हमारा झुकाव रीति-कवियों की सामाजिक पक्षधरता की ओर अधिक रहता है और हम मान लेते हैं कि उन्होंने राज्याश्रय प्राप्त कर साहित्यादर्श की उपेक्षा की । यह तथ्य सच होते हुए भी न्यायसंगत नहीं है । हमें यह सोचना चाहिए कि रीति-कवि न तो भक्त थे और न ही संसार को माया समझते थे । जीवन-यापन के लिए धन जरूरी होता है, जो उस युग में बिना राज्याश्रय-प्राप्त किए संभव नहीं था । कुछेक कवियों को छोड़ दें तो शेष कवि आर्थिक दृष्टि से कमजोर और असहाय थे । वृत्ति पाने के लिए वे कैसे एक दरबार से दूसरे दरबार में ठुकराए जाते रहे, इस संबंध में रीति-कवियों का मूल्यांकन आज तक नहीं हुआ है । आशा है, 21वीं शताब्दी में रीति-कवियों कै जीवन की सच्चाइयों को ध्यान में रखकर रीति-कविता का पुनर्मूल्यांकन होगा । जहाँ तक रसलीन की बात है, उनका जीवन सुगमतापूर्वक व्यतीत हुआ था । उन्हें राज्याश्रय की जरूरत नहीं पड़ी । फिर भी उन्होंने श्रृंगार -प्रधान कविता लिखी ।

नायक-नायिका-भेद से वे भी नहीं बच सके, इसलिए कि बिलग्राम का कवि-परिवेश और रीतियुगीन-रचनाशीलता का प्रभाव उनके भी ऊपर रहा ।

जब भरत मुनि ही श्रृंगार से नहीं बच पाए तो रसलीन की क्या बिसात! देखिए

यत्किंचित् लोके मध्यं सुंदरम् तत् सर्वं श्रृंगार रसेनीपमीयते ।

इस विनिबंध में संक्षेप में रसलीन-काव्य का परिचय देते हुए उनका सौंदर्य-बोध, रीतिकालीन परंपरा में उनकी भूमिका और सांस्कृतिक मूल्यों की दृष्टि से मुत्तफ़रिक कविताओं का महत्त्व प्रतिपादित करने का प्रयास किया गया है । वह कितना सार्थक   बन पड़ा है, यह तो सुविइा पाक ही बता सकते हैं ।

 

अनुक्रम

1

भूमिका

7

2

अध्याय एक. रसलीन और उनकी रचनाएँ

9

3

अध्याय दो : रसलीन का काव्य-सौंदर्य

16

4

अध्याय तीन : रसलीन की मुत्तफ़रिक कविता और उसका महत्त्व

39

5

अध्याय चार : रसलीन की धार्मिक सहिष्णुता

48

6

अध्याय पाँच : रीतिकालीन काव्य में रसलीन की भूमिका

66

7

परिशिष्ट : रसलीन के कुछ महत्त्वपूर्ण दोहे

83

 

Sample Pages





Frequently Asked Questions
  • Q. What locations do you deliver to ?
    A. Exotic India delivers orders to all countries having diplomatic relations with India.
  • Q. Do you offer free shipping ?
    A. Exotic India offers free shipping on all orders of value of $30 USD or more.
  • Q. Can I return the book?
    A. All returns must be postmarked within seven (7) days of the delivery date. All returned items must be in new and unused condition, with all original tags and labels attached. To know more please view our return policy
  • Q. Do you offer express shipping ?
    A. Yes, we do have a chargeable express shipping facility available. You can select express shipping while checking out on the website.
  • Q. I accidentally entered wrong delivery address, can I change the address ?
    A. Delivery addresses can only be changed only incase the order has not been shipped yet. Incase of an address change, you can reach us at help@exoticindia.com
  • Q. How do I track my order ?
    A. You can track your orders simply entering your order number through here or through your past orders if you are signed in on the website.
  • Q. How can I cancel an order ?
    A. An order can only be cancelled if it has not been shipped. To cancel an order, kindly reach out to us through help@exoticindia.com.
Add a review
Have A Question

For privacy concerns, please view our Privacy Policy

Book Categories