प्रकाशकीय निवेदन
जन्मना अग्रवाल वैश्य होने के कारण महाराजा अग्रसेन के प्रति श्रद्धाभाव होना तो स्वाभाविक है। इसी प्रकार उनके तीर्थस्वरूप स्थान अग्रोहा के प्रति आकर्षण होना भी स्वाभाविक है। अत: कई अग्रवाल बंधुओं के साथ जाने का कार्यक्रम बना। इसी क्रम में याद आए आचार्य रामरंग जी। जिनकी अपने ही प्रकार की आडम्बरहीन मर्मस्पर्शी प्रवचन शैली है। उनके श्रीराम के राजतिलक के पश्चात् की कथा पर आधारित विस्तृत ग्रंथ उत्तर साकेत और उसी प्रकार दो खडी में प्रकाशित अनुसंधानात्मक अन्य ग्रंथ युगपुरुष तुलसी से भी मैं अत्यन्त प्रभावित था। अत: उनसे भी अग्रोहा चलने का आग्रह किया। उन्होंने भी अनुमति दी और चले।
अग्रोहा का भव्य निर्माण, वहा के अग्रमय वातावरण के विषय में शब्दों में कहना कठिन है। अग्रोहा के निर्माण कार्य के सचालक श्रद्धेय श्री नदाकिशोर जी गोइंका की निष्ठा और उससे प्रेरित होकर उनकी कार्यशैली को देखकर, उनके सामने अनायास शिर झुक जाता है लगता है अग्रोहाधाम को मिले दैवी वरदानों को सफल करने के लिए ही कुलदेवी मा महालक्ष्मी ने उन्हे अपनी कोख से जन्म दिया है। माँ महालक्ष्मी मंदिर में महाराज अग्रसेन के जीवन पर आधारित चित्रों को देखा। कार्यालय से जो साहित्य प्राप्त हुआ, वह लेकर आचार्य रामरंग जी को दिया। उनसे आग्रह किया कि महाराजा के जीवन पर अपने अन्य अनेक ग्रंथो के समान कोई ग्रंथ लिखें। इस ग्रंथ लेखन की प्रेरणा भी श्री अग्रोहापाख्यानम (अग्रभागवत) के मिलने के पश्चात् हुई। अग्रभागवत आमगाँव निवासी श्री रामगोपाल जी अग्रवाल बेदिल को कहीं आसाम प्रदेश के किन्हीं सज्जन से प्राप्त हुई। अग्रभागवत के अतिशयोक्तियों से भरे हुए वर्णन, आज के वैज्ञानिक युग से मेल नहीं खाते। कथाक्रम भी व्यवस्थित नहीं है। इस कारण आवश्यकता और अधिक प्रतीत हुई।
अत: जो श्रद्धा को भंग भी न करे। साधारण से साधारण व्यक्ति को भी रुचिकर प्रतीत हो, ऐसी कृति लिखने के लिए मैंने आचार्य जी से निवेदन किया। उन्होंने भी इसका अनुमोदन किया। इसके पश्चात् उन्होंने किस-किस ग्रंथ से, कहा-कहा से सामग्री जुटाकर, राष्ट्रपुरुष महाराजा अग्रसेन नामक इस कृति का सृजन किया, वह तो मैं नहीं जानता। कितु मेरे पास बीच-बीच में उसके अंश आते रहे। मैं देखता रहा। जब श्री नंदकिशोर जी गोइंका और श्रीमती डॉ. स्वराज्य जी अग्रवाल आदि ने इस कृति की प्रशंसा की, तभी अग्रोहा विकास ट्रस्ट समिति जनपद मेरठ ने इसके प्रकाशन का बीड़ा उठाया।
समिति को आशा ही नहीं बल्कि विश्वास है कि अपनी शैली खोजपूर्ण विवरणो के आधार पर यह कृति आपको रुचिकर प्रतीत होगी। आचार्य रामरंग जी ने भूमिका मे जिस ढंग से अनेकानेक भ्रातियों का खंडन किया है, उचित-अनुचित को प्रामाणिकता दी है उस पर विद्वदज्जन ध्यान देंगे।
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