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रसशास्त्र एवं भैषज्य कल्पना- Rasa Shastra Evam Bhaishajya Kalpana: Ayurvedic Medicine Experiment Science (Volume 2)

$34
(Based on the New Syllabus Approved by National Commission for Indian Systems of Medicine (NCISM), New Delhi)

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Specifications
HBC835
Author: Ankit Kumar Gupta
Publisher: Chaukhambha Publications
Language: Sanskrit Hindi and English
Edition: 2024
ISBN: 9788197639074
Pages: 315
Cover: PAPERBACK
9.5x7 inch
450 gm
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Book Description
लेखक के सन्दर्भ में इस पुस्तक के लेखक डा. अंकित कुमार गुप्ता जी का जन्म उत्तर प्रदेश के अयोध्या जिले में हुआ तथा वर्तमान समय में आप जिला अयोध्या के रहने वाले है। आपने अपनी स्नातक की शिक्षा ऋषिकुल राजकीय आयुर्वेदिक कालेज हरिद्वार से तथा स्नातकोत्तर की शिक्षा आपने आई. पी. जी. टी एण्ड आर. ए (वर्तमान आई.टी.आर.ए.) जामनगर से पूर्ण किया है। आपने एम.डी. प्रथम तथा अन्तिम वर्ष में गोल्ड मेडल प्राप्त किया है। लोक सेवा आयोग उ.प्र. प्रयागराज द्वारा जारी प्रवक्ता रसशास्त्र एवं भैषज्य कल्पना (सन् 2009) की मेरिट सूची में प्रथम स्थान प्राप्त कर अपने सरकारी नौकरी शुरूआत 2009 में राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज एवं हॉस्पिटल अतर्रा (बाँदा) के रसशास्त्र एवं भैषज्य कल्पना के प्रवक्ता पद पर कार्य किया। वर्तमान समय में आप रीडर, रसशास्त्र एवं भैषज्य कल्पना, राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय वाराणसी के पद पर कार्यरत हैं। आपके विभिन्न पत्रिकाओं में 24 लेख भी प्रकाशित हैं। आपके द्वारा आयुर्वेदीय भैषज्य कल्पना विज्ञान, रस शास्त्र विज्ञान तथा Text book of Rasa shastra नामक पुस्तकों का प्रकाशन चौखम्भा पब्लिकेशन्स, नई दिल्ली द्वारा हो चुका है। पुस्तक के सन्दर्भ में : प्रस्तुत पुस्तक रसशास्त्र एवं भैषज्य कल्पना (आयुर्वेदीय औषधि प्रयोग विज्ञान भाग 2) राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा पद्धति आयोग, नई दिल्ली द्वारा स्वीकृत नवीन पाठ्यक्रम पर आधारित है। जिसमें पाठ्यक्रम के विषयों को आयुर्वेद के सिद्धान्तों तथा आधुनिक वैज्ञानिक सिद्धान्तों के आधार पर संकलित किया गया है। प्रत्येक अध्याय में उससे सम्बन्धित विषयों का वर्णन किया गया है तथा अध्याय के अन्त में पाठ्यक्रम द्वारा निर्देशित बहुविकल्पीय प्रश्न, लघु उत्तरीय तथा दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों का संग्रह किया गया है। प्रस्तावना जो सुमिरत सिधि होड़ गन नायक करिवर बदन । करउ अनुग्रह सोई बुद्धि रासि सुभ गुन सदन ॥ (बा.का./रामचरितमानस) जिन्हें स्मरण करने से सब कार्य सिद्ध होते हैं, जो गणों के स्वामी और सुन्दर हाथी के मुख वाले हैं, वे ही बुद्धि के राशि और शुभ गुणों के धाम श्री गणेश जी मुझ पर कृपा करें। आयुर्वेद विद्या की उत्पत्ति भगवान धन्वन्तरि के द्वारा मानी जाती है। भगवान धन्वन्तरि ने रोगों के प्रशमन हेतु आर्युद का उपदेश किया। आचार्य चरक ने चिकित्सा हेतु चार पाद का वर्णन किया है, यथा- भिषक् द्रव्याण्युपस्थाता रोगी पाद चतुष्टयम् । गुणवत् कारणं ज्ञेयं विकारव्युपशान्तये ।। (च.सू. 9/3) चिकित्सा के चार पाद 1. गुणवान वैद्य, 2. गुणवान द्रव्य, 3. गुणवान उपस्थाता तथा गुणवान रोगी ये चारों सम्पूर्ण रोगों की शान्ति में कारण होते हैं। आचार्य चरक ने उत्पत्ति भेद से द्रव्य के तीन प्रकार कहा है। जो कि जाङ्गम (Animal origin), स्थावर (Herbal origin) तथा पार्थिव (Mineral and Metal) तीन प्रकार के होते हैं। जाङ्गम द्रव्यों में मधु, दूध, दही आदि, स्थावर द्रव्यों में विभिन्न प्रकार की औषधियाँ तथा पार्थिव द्रव्यों में स्वर्ण आदि पंच लोह, हरताल, मनःशिला आदि की गणना आचार्य चरक ने किया है। इसी प्रकार रोगों के शमनार्थ चरक संहिता में प्रधान रूप से विभिन्न प्रकार की औषधियाँ तथा इनके योग एवं जाङ्गम द्रव्यों का प्रयोग किया गया है जबकि पार्थिव द्रव्यों का प्रयोग का विवरण अल्प मात्रा में चरक संहिता में पाया जाता है। रसशास्त्र के ग्रन्थों में रिस द्रव्यों (पारद, धातु, विष आदि) का प्रयोग में चिकित्सा हेतु विस्तृत रूप में पाया जाता रस हृदय तन्त्र के अनुसार एक अकेला पारद ही शरीर को अजर तथा अमर कर सकता है, यथा- एकऽसौ रसराजाः शरीरमराजरं कुरूते । (र.हृ.त. 1/13) इस प्रकार रस को केन्द्र मानकर रस विद्या की उत्पत्ति हुई। इस रस विद्या के द्वारा दो उद्देश्यों की पूर्ति की गई। 1. देहवाद- पारद के शरीरिक प्रयोग से शरीर को रोग मुक्त कर स्थिर देह का निर्माण करना । 2. धातुवाद - पारद के द्वारा नाग, वंग आदि धातुओं को स्वर्ण, रजत में परिवर्तित करना ।














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