रामपुर रज़ा लाइब्रेरी, भारतीय इस्लामिक साहित्य एवं संस्कृति कला का अमूल्य खज़ाना है। इस पुस्तकालय की बुनियाद 1774 ई0 में रामपुर स्टेट के नवाब फैजुल्ला ख़ाँ ने रखी थी। उन्होने 1794 ई0 तक राज किया और अपने संग्रह की पाण्डुलिपियों, ऐतिहासिक दस्तावेज़ों, किताबों और लघु चित्रों को राज्य के तोशाखाने में रखवा कर पुस्तकालय की बुनियाद डाली। रामपुर स्टेट के नवाबों ने शोधकर्ताओं, कलाकारों, कवियों, खत्तातों व संगीतकारों को संरक्षण दिया। नवाब अहमद अली खाँ (1794-1840 ई0) के शासनकाल में इसकी उल्लेखनीय उन्नति हुई। इनके उत्तराधिकारी नवाब मो० सईद खाँ (1840-1855) ने पुस्तकालय के लिये अलग विभाग बनाया और संग्रह के लिए एक विशेष कक्ष बनाया। उन्होने संग्रह की देखरेख के लिये अल्लामा यूसुफ अली महवी को नियुक्त किया। जिन्होने प्रसिद्ध खत्तातों, जिल्दसाज़ों एवं कलाकारों को कश्मीर व भारत के अन्य भागों से आमत्रित किया। उन्होने फारसी लिपि में एक मुहर बनवायी जो निम्नवत है:
"हस्त इन मोहर बर कुतुब खाना, वालिये रामपुर फरजाना 1268 हिजरी" (1851 ई) सन 1855 में नवाब यूसुफ अली खाँ गद्दी पर बैठे। उनके समय में 1857 ई0 के स्वतन्त्रता संग्राम के बाद बड़ी संख्या में प्रसिद्ध शायर, लेखक व शोधकर्ता देहली और लखनऊ से आकर रामपुर बस गये। नवाब कल्बे अली खाँ (1865-1887) के शासन काल में दुर्लभ पाण्डुलिपियों व चित्रों में अत्याधिक वृद्धि हुई। उन्होंने बहुत से लोगों को बहुमूल्य पुस्तकों व पाण्डुलिपियों को खरीदने के लिये नियुक्त किया। नवाब कल्बे अली खाँ को पुस्तकालय में अत्यधिक रूचि थी। नवाब कल्बे अली ख़ाँ स्वयं एक आलिम थे, उन्होंने पुस्तकालय की उन्नति में विशेष ध्यान दिया।
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