| Specifications |
| Publisher: Rajasthani Granthagar, Jodhpur | |
| Author Kalhana | |
| Language: Sanskrit Text with Hindi Translation | |
| Pages: 1051 | |
| Cover: HARDCOVER | |
| 9x6 inch | |
| Weight 1.62 kg | |
| Edition: 2024 | |
| ISBN: 9788119488070 | |
| HAH530 |
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राजतरंगिणी अत्यन्त वृहत्काय महाकाव्य है जिसके आठ तरंगों में 7825 श्लोक हैं। भारत भूभाग के इस सुरम्य कश्मीर मण्डल के भूगोल, इतिहास, संस्कृति, जीवनशैली, हासविलास, मानवस्वभाव आदि को जानने के लिए यह ग्रन्थ अमूल्य है। ग्रन्थ के अत्यन्त वृहत्काय होने के कारण ही सम्भवतः हिन्दी भाषा में इसके अधिक अनुवाद नहीं हो सके। यह ग्रन्थ काव्यगत सुषमा से भी सम्पन्न है किन्तु मूलतः यह इतिहास ग्रन्थ ही है। स्वयं कल्हण भी सम्भवतः यही चाहते थे, क्योंकि राजा जयसिंह के राज्यकाल के साथ ही वर्णन समाप्त करके उन्होंने पुनः राजतरंगिणी में वर्णित सभी राजाओं की एक सूची प्रस्तुत कर दी है, जिससे कश्मीर के इतिहास-अध्येता को सुगमता हो सके।
प्रस्तुत है, महाकवि कल्हण कृत राजतंरगिणी का मूल संस्कृत सहित हिन्दी अनुवाद ।
प्रायः ही संस्कृत साहित्य पर यह दोषारोपण होता रहा है कि कवियों, पण्डितों और विद्वज्जनों ने अपने ग्रन्थों में भारत का इतिहास लिखने में रुचि नहीं दिखाई। यह कथन अंशतः ही सत्य है। बाणभट्ट, पद्मगुप्त, परिमल, बिल्हण, हेमचन्द्र, सोमेश्वर देव आदि ने अपने काव्यों में तत्कालीन इतिहास ही लिखा। किन्तु एक तो उनमें तिथियां नहीं थीं और दूसरे वह इतिहास की पाश्चात्य अवधारणा पर खरे नहीं थे। बारहवीं शती के महाकवि कल्हण के महाकाव्य राजतरंगिणी के आठ तरंगों में चौथे तरंग के लगभग मध्य से प्रारम्भ होकर अन्त तक 350 वर्षों की घटनाओं का तिथि सहित वर्णन है जो कश्मीर के इतिहास हेतु प्रामाणिक सिद्ध हुआ है। भारत की अपेक्षा विदेशी विद्वानों ने इस ग्रन्थ पर बहुत परिश्रम किया और अंग्रेजी अनुवाद सहित इसे प्रकाशित किया। बहुत पहले इसका फारसी में भी अनुवाद हुआ था।

































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