एक तुम हो, जो पराई धरोहर मानकर वस्त्रहरण ही नहीं कर रहे हो बल्कि विरुपित और खंडहर करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हो... मेरे कितने भाइयों को तो तुम्हारे जैसे क्रूर हाथों अपनी पहचान तक खो देनी पड़ी ?
तुम्हें अपने पूर्वजों की धरोहरों पर नाज़ नहीं? ध्यान रखें जिन्होंने देश की सांस्कृतिक ऐतिहासिक धरोहरों को नष्ट करने का प्रयास किया, इतिहास गवाह है बह समूल नष्ट हो गये। इसलिये हमें सुरक्षित रखें और पढ़ें, समझें हमारे अतीत के बारे में...।
सम्प्रति : भारतीय स्थल सेना में बाराहोती सैक्टर, मानावास, बंगाल, भूटान, तिब्बत में सेवारत रहते दो मैडल प्राप्त। फूलों की घाटी, द्रोणागिरि, सुराई ठोटा तथा मानसरोवर के साथ तराई के वनप्रदेश का भ्रमण।
भारतीय डाकतार विभाग से रिटायर्ड पोस्टमास्टर।
कृतित्व : राष्ट्रीय प्रान्तीय एवं जिला
स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में ऐतिहासिक एवं समसामयिक लेख। ई.टी.वी. तथा जी.टी.वी. पर साक्षात्कार एवं ऐतिहासिक शोधपूर्ण लेखन में रुचि ।
प्रकाशित : कल्याणपुरी दिग्दर्शन,करौली इतिहास के झरोखे से (दो भागों में), बयाना ऐतिहासिक सर्वेक्षण, मुगल साम्राज्य का अन्तिम बादशाह बहादुरशाह जफ़र, चित्तौड़ की ज्वाला रानी पद्मिनी, रणथम्भौर दुर्ग का घटनाक्रम, डाकघर (संस्मरण), भारत का अन्तिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान, अठारह सौ सत्तावन, अकबरनामा, जहाँगीरनामा, करौली का इतिहास ।
इस पुस्तक के लेखन में जहाँ मैंने अपने घुम्मक्कड़ी अनुभवों का पूरा उपयोग करने का प्रयास किया, वहीं सम्बन्धित प्राप्त अभिलेख, शिलालेख, पुराण एवं तत्कालीन विद्वानों के आवश्यक ग्रन्थों का भी सदुपयोग किया है जिनके बगैर यह पुस्तक प्रामाणिकता की कसौटी पर खरी नहीं स्वीकारी जाती, जो वर्तमान परिप्रेक्ष्य में एक महत्वपूर्ण मापदंड स्वीकारा हुआ है।
मेरा यह प्रयास रहा है कि राजस्थान के ज्यादा से ज्यादा ऐतिहासिक स्थलों तक अपने सुधि पाठकों को पहुँचाऊँ। उपरान्त भी मैं दावे के साथ नहीं कह सकता कि मैं इस क्रम में पूर्ण सफल हो सका हूँ।
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