राग दरबारी (Rag Darbari)

FREE Delivery
$21
$28
(25% off)
Quantity
Delivery Ships in 1-3 days
Item Code: NZA225
Publisher: Rajkamal Prakashan
Author: श्रीलाल शुक्ल (Shri Lal Shukla)
Language: Hindi
Edition: 2019
ISBN: 9788126713967
Pages: 335
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch x 5.5 inch
Weight 320 gm
Fully insured
Fully insured
Shipped to 153 countries
Shipped to 153 countries
More than 1M+ customers worldwide
More than 1M+ customers worldwide
100% Made in India
100% Made in India
23 years in business
23 years in business
Book Description

राग दरबारी

राग दरबारी एक ऐसा उपन्यासहै जो गाँव की कथा के माध्यम से आधुनिक भारीतय जीवन की मूल्याहीनता को सहजता और निर्ममता से अनावृत्त करता है। शुरू से आखीर तक इतने निस्संग और सोद्देश्य व्यंग्य के साथ लिखा गया हिंदी का शायद यह पहला वृहत् उपन्यास है।

फिर भी राग दरबारी व्यंग्य-कथा नहीं है। इसका संबंध एक बड़े नगर से कुछ दूर बसे हुए गाँव की जिंदगी से है, जो इतने वर्षों की प्रगति और विकास के नारों के बावजूद निहित स्वार्थों औरअनेक अवांछनीय तत्त्वों के सामने घिसट रही है। यह उसी जिंदगी का दस्तावेज है।

 

1986 में राग दरबारी का प्रकाशन एक महत्त्वपूर्ण साहित्यिक घटना थी। 1970 में इसे साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया और 1986 में एक दूरदर्शन-धारावाहिक के रूप में इसे लाखों दर्शकों की सराहना प्राप्त हुई।

वस्तुत: राग दरबारी हिंदी के कुछ कालजयी उपन्यासों में से एक है।

 

जीवन परिचय

श्री लाल शुक्ल

जन्म: शुक्ल 31 दिसम्बर, 1925 को लखनऊ जनपद (उप्र.) के अतरौली गाँव में

शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक

कृतियाँ

उपन्यास सूनी घाटी का सूरज, अज्ञातवास, राग दरबारी, आदमी का जहर, सीमाएँ , मकान, पहला पड़ाव, बिस्रामपुर का संत

 

काहानी-संग्रहयह घर मेरा नहीं, सुरक्षा तथा अन्य कहानियाँ, इस उम्र में

व्यंग-संग्रह : अंगद का पाँव, यहाँ से वहाँ, मैरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ, उमरावनगर में , कुछ जमीन पर कुछ हवा में, आओ बैठ लें कुछ देर, अगली शताब्दी का शहर के पचास साल

आलौचना: अगय कुछ राग और कुछ रंग

विनिबंध: भगवतीचरण वर्मा, अमृतलाल नागर

बाल-साहित्य : बबर सिंह और उसके साथी

अनुवाद 'पहला पड़ाव' अंग्रेजी में अनुदित और 'मकान' बांग्ला में 'राग दरबारी'

'प्रमुख भारतीय भाषाओं सहित अंग्रेजी में

'प्रमुख सम्मान ज्ञानपीठ सम्मान, पद्मभूषण सम्मान, साहित्य अकादेमी पुरस्कार, ' भूषन सम्मान, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय का गोयल साहित्य पुरस्कार, लोहिया ' अतिविस्टसम्मान .प्र. शासन का शरद जोशी सम्मान, मैथिलीशरण गुज सम्मान, व्यास सम्मान|

निधन : 28 अक्टूबर, 2011

प्रस्तावना

'राग दरबारी' का लेखन 1964 के अन्त में शुरू हुआ और अपने अन्तिम रूप में 1967 में समाप्त हुआ । 1968 में इसका प्रकाशन हुआ और 1969 में इस पर मुझे साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिला । तब से अब तक इसके दर्जनों संस्करण और पुनर्मुद्रण हो चुके हैं । 1969 में ही एक सुविज्ञात समीक्षक ने अपनी बहुत लम्बी समीक्षा इस वाक्य पर समाप्त की 'अपठित रह जाना ही इसकी नियति है ।' दूसरी और इसकी अधिकांश समीक्षाएँ मेरे लिए अत्यन्त उत्साहवर्द्धक सिद्ध हो रही थीं । कुल मिलाकर, हिन्दी समीक्षा के बारे में यह तो स्पष्ट हो ही गया कि एक ही कृति पर कितने परस्पर-विपरीत विचार एक साथ फल-फूल सकते हैं ।उपन्यास को एक जनतान्त्रिक विधा माना जाता है । जितनी भिन्न-भिन्न मतोंवाली समीक्षाएँ-आलोचनाएँ इस उपन्यास पर आई, उससे यह तो प्रकट हुआ ही कि यही बात आलोचना की विधा पर भी लागू की जा सकती है ।

 

जो भी हो, यहाँ मेरा अभीष्ट अपनी आलोचनाओं का उत्तर देना या उनका विश्लेषण करना नहीं है । दरअसल, मैं उन लेखकों में नहीं हूँ जो अपने लेखन को सर्वथा दोषरहित मानकर सीधे स्वयं या किसी प्रायोजित आलोचक मित्र द्वारा बताए गए दोषों का जवाब देकर विवाद को कुछ दिन जिन्दा रखना चाहते हैं । मैं उनमें हूँ जो मानते हैं कि सर्वथा दोषरहित होकर भी कोई कृति उबाऊ और स्तरहीन हो सकती है जबकि कोई कृति दोषयुक्त होने के बावजूद धीरे-धीरे क्लासिक का दर्जा ले सकती है । दूसरे, मैं प्रत्येक समीक्षा या आलोचना को जी भरकर पड़ता हूँ और खोजता हूँ कि उससे अपने भावी लेखन के लिए कौन-सा सुधारात्मक अनुभव प्राप्त किया जा सकता है ।

 

'राग दरबारी' की प्रासंगिकता पर साक्षात्कारों में मुझसे बार-बार पूछा गया है । यह सही है कि गाँवों की राजनीति का जो स्वरूप यहाँ चित्रित हुआ है, वह आज के राष्ट्रव्यापी और मुख्यत: मध्यम और उच्च वर्गो के भ्रष्टाचार और तिकड़म को देखते हुए बहुत अदना जान पड़ता है और लगता है कि लेखक अपनी शक्ति कुछ गँवारों के ऊपर जाया कर रहा है । पर जैसे-जैसे उच्चस्तरीय वर्ग में गबन, धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार और वंशवाद अपनी जड़ें मजबूत करता जाता है, वैसे-वैसे आज से चालीस वर्ष पहले का यह उपन्यास और ज्यादा प्रासंगिक होता जा रहा है । कम-से- कम सामान्य पाठकों और अकादमीय संस्थानों में इसका जैसा पठन-पाठन बढ़ रहा है, उससे तो यही संकेत मिलता है |

 

इसके प्रकाशन के चालीसवें वर्ष में राजकमल प्रकाशन ने बिलकुल नए स्वरूप में इसका नया संस्करण निकालने का संकल्प किया है । इसके लिए मैं उक्त प्रकाशन के श्री अशोक महेश्वरी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ और आशा करता हूँ उनका यह प्रयास पाठकों के लिए और विशेषत: नए पाठकों के लिए विशेष आकर्षक सिद्ध होगा ।

 

 

 

Frequently Asked Questions
  • Q. What locations do you deliver to ?
    A. Exotic India delivers orders to all countries having diplomatic relations with India.
  • Q. Do you offer free shipping ?
    A. Exotic India offers free shipping on all orders of value of $30 USD or more.
  • Q. Can I return the book?
    A. All returns must be postmarked within seven (7) days of the delivery date. All returned items must be in new and unused condition, with all original tags and labels attached. To know more please view our return policy
  • Q. Do you offer express shipping ?
    A. Yes, we do have a chargeable express shipping facility available. You can select express shipping while checking out on the website.
  • Q. I accidentally entered wrong delivery address, can I change the address ?
    A. Delivery addresses can only be changed only incase the order has not been shipped yet. Incase of an address change, you can reach us at help@exoticindia.com
  • Q. How do I track my order ?
    A. You can track your orders simply entering your order number through here or through your past orders if you are signed in on the website.
  • Q. How can I cancel an order ?
    A. An order can only be cancelled if it has not been shipped. To cancel an order, kindly reach out to us through help@exoticindia.com.
Add a review
Have A Question

For privacy concerns, please view our Privacy Policy

Book Categories