प्रस्तुत कृति 'राधा प्रियाय गोविन्दाय मध्यम पुरुष' श्री राधा एवं श्री कृष्ण जी की प्रेमल जीवनगाथा के विशिष्ट प्रसंगों पर केन्द्रित वाल एवं किशोर मनोविज्ञान के साथ भारतीय मानस शास्त्र, योग एवं आध्यात्म विज्ञान की समन्वित प्रासंगिक दृष्टियों से किया गया शाब्दिक चित्रांकन है जिसमें श्री राधा जी के प्रेममयी सम्पूर्ण समर्पण तथा उसके प्रत्युत्तर में अवसर आने पर श्री कृष्ण जी द्वारा राधा जी के प्रेम को कल्पनातीत सम्मान प्रदान की पराकाष्ठा की भावपूर्ण अभिव्यक्ति है।
मानव मनोविज्ञान के पारखी योगेश्वर श्रीकृष्ण प्रस्तुत कथा में श्री राधा जी द्वारा अभिव्यक्त काम भावना के प्रति उपेक्षा नहीं अपितु तटस्थ भावयुत मान, मैत्री, मुदिता एवं करुणा वृत्ति को व्यक्त कर राधा जी के युवा अभिसार पूर्ण मन को उसके उदात्ततर समाधियुत स्तरों पर आरोहित करा देते हैं।
'उर्मिल कृष्ण' उपनाम के साथ अपनी प्रस्तुत प्रथम कृति के रचनाकार डॉ० कृष्ण मुरारी त्रिपाठी का जन्म सन् 1958 में काशी के एक सुसंस्कृत परिवार में हुआ। उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से 1979 में मनोविज्ञान में परास्नातक तथा पी.एच.डी. करने के उपरान्त 1984 में कबीरमठ के स्वामी विद्यानन्द जी से 3 मास पर्यन्त योग की अनेकानेक गहन क्रियाओं की जानकारियां प्राप्त की और 1988 में क्रियायोगी आचार्य शैलेन्द्र शर्मा जी (सम्प्रति गोवर्धनवासी) से पारम्परिक क्रिया योग परम्परा में दीक्षित हुए। डॉ० त्रिपाठी ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अपना औपचारिक सेवावृत्त 1989 में सह निदेशक के रूप में प्रारम्भ किया। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की 32 वर्षों तक निरन्तर सक्रिय सेवा के बाद 31 जनवरी 2019 में डॉ० त्रिपाठी सेवानिवृत्त हुए।
छात्र जीवन में कालेज की पत्र-पत्रिकाओं में कृष्ण मुरारी त्रिपाठी जी के समय-समय पर लेख एवं कवितायें प्रकाशित होते रहे हैं।
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