महादेवी का सम्पूर्ण गद्य साहित्य संख्यात्मक विपुलता से ऊपर गरिमागत गुणात्मकता के कारण हिन्दी साहित्य में विशेष रूप से चर्चित रहा और इसी कारण हिन्दी गद्य लेखन के अंतर्गत उनकी अपनी एक विशिष्ट पहचान बन पाई है। गद्य की साहित्यिक विधाओं का वैविध्य भी महादेवी के गद्य साहित्य में मिलता है, जिसका कोई भी रूप किसी से कम महत्त्वपूर्ण नहीं कहा जा सकता ।
साहित्य और जीवन को विविध सामाजिक परिप्रेक्ष्य में संतुलित रूप से अपने गद्य लेखन में अवतरित करने का महादेवी जी का प्रयास वास्तव में एक ऐसे ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में है, जिसे हिन्दी गद्य साहित्य के प्रगति-पथ पर बने मील-स्तम्भ के रूप में महत्त्व दिया जा सकता है।
हिन्दी गद्य-साहित्य के अन्तर्गत महादेवी वर्मा द्वारा रचित समस्त गद्य- साहित्य का स्थान अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है। वास्तव में महादेवी जी ने युग-सापेक्ष मूल्यों के अनुरूप हिन्दी गद्य-साहित्य की जिन विधाओं में साहित्य-सर्जना की है, वे हैं- रेखाचित्र, संस्मरण, सम्पादकीय लेख, विचार प्रधान निबंध, काव्य-कृतियों तथा गद्य-ग्रंथों में लिखित प्रस्तावनाएँ, सभाओं में दिए गए भाषण तथा अनुवाद रूप।
यद्यपि उक्त विधाओं के अतिरिक्त हिन्दी-गद्य में और भी विधाएँ हैं, जिनमें कुछ तो नवीन तथा अति नवीन साहित्यिक विधाएँ हैं। किन्तु, इनमें से जो सात विधाएँ महादेवी द्वारा साहित्य सर्जना हेतु प्रयुक्त हुई हैं, वे अपने आप में बड़े ही महत्व के हैं। साथ ही इनकी संख्या अल्प होने के बावजूद इनमें सृजित महादेवी के गद्य-साहित्य की गुणात्मक गरिमा की विषदता तथा गहनता पर्याप्त है।
हिन्दी के सम्पूर्ण गद्य-साहित्य की पृष्ठभूमि के परिप्रेक्ष्य में महादेवी के समस्त गद्य-साहित्य पर एक जगह विचार करने का दृष्टिकोण अपने समक्ष रखकर प्रस्तुत पुस्तक में महादेवी-साहित्य में स्थित गद्य की गरिमा को आलोकित करने का यह एक प्रयास है।
महादेवी द्वारा रचित गद्य-साहित्य की विधाओं का हिन्दी गद्य-साहित्य में स्थान निरूपित करने के साथ-साथ उनके गद्य की भाषा-शैली का निर्धारण कर भाषा-प्रयोग के उनके सामर्थ्य तथा तत्सम्बन्धी उनकी विशेषताओं पर भी यहाँ प्रकाश डालने का प्रयास है।
हिन्दी साहित्य के छायावादी काव्य के एक प्रमुख आधार स्तम्भ कवयित्री महादेवी वर्मा ने काव्य प्रणयन के साथ-साथ अपने गद्य साहित्य के द्वारा भी हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया। उनके गद्य साहित्य पर यह विरल शोधात्मक ग्रंथ बड़े महत्व का माना जा सकता है। यह डॉ. मानवेश नाथ दास की खोजपूर्ण अन्तर्दृष्टि एवं गहन अध्ययन वृति का सत्परिणाम है।
महीयसी महादेवी जी ने अपने विचार प्रवण गंभीर गद्य लेखन द्वारा वास्तव में हिन्दी साहित्य में एक नवीन एवं सर्वथा मौलिक गद्य लेखन की विधा को जन्म दिया। उनके सम्पूर्ण गद्य साहित्य पर एक ही जगह समग्ररूपेण खोजपूर्ण विचार इस ग्रंथ में प्रस्तुत होने से इस कृति की उपादेयता सुधीजनों के हित निश्चय ही लाभकर सिद्ध होगी।
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