हिन्दी कथा-साहित्य की परम्परा में मुंशी प्रेमचन्द की भूमिका युगान्तरकारी रही है। कल्पनाओं से भरे ऐय्यारी और जासूसी-तिलस्मी उपन्यासों की प्रधानता के बीच पहली बार उन्होंने ही दलित, शोषित और उत्पीड़ित मुनष्यता की व्यथा-कथा को पूरे नैतिक बल के साथ सशक्त अभिव्यक्ति दी। गरीब, किसान, मजदूर और नारी-प्रेमचन्द की गहन मानवीय संवेदना के प्रमुख आकर्षण रहे हैं। यह सत्य है कि प्रेमचन्द ने अपनी अनेक रचनाओं में नारी की अमानवीय जीवन-स्थितियों को उद्घाटित किया है और नारी के उज्ज्वल भविष्य और अधिकारों के प्रति पुनर्जागरण आन्दोलन बड़े ही प्रबल रूप में चलाया है। प्रेमचन्द के साहित्य के गहन अध्ययन के पश्चात् उनके साहित्य में नारी के अनेकानेक रूप दिखाई दिए। सामाजिक बन्धनों को तोड़कर स्व अस्तित्व के लिए जूझती नारियाँ, स्वतन्त्रता आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लेती नारियाँ व शोषण के विरूद्ध बिगुल बजातो नारियाँ........ निश्चित तौर पर उन नारी पात्रों की जागरूकता, तत्कालीन समस्याओं के प्रति उनकी निर्णय क्षमता व चेतना ने मुझे अत्यन्त प्रभावित किया। इस विषय पर लिखने के पीछे एक तात्कालिक आकर्षण यह भी रहा है कि प्रेमचन्द का साहित्य आज के सन्दर्भ में नारी की सामाजिक स्थिति को पारिभाषित करने में बहुत मददगार सिद्ध हो सकता है। इस पुस्तक के केन्द्र में 'निर्मला', 'कर्मभूमि' व 'गोदान' उपन्यासों को रखा गया है, ताकि प्रेमचन्द के नारी के प्रति विकसनशील दृष्टिकोण के पड़ावों को समझा जा सके। 'निर्मला' के केन्द्र में स्पष्टतः भारतीय नारी की ज्वंलत समस्याएँ हैं। नारी की हीनतर सामाजिक स्थिति के अभिशप्त रूप के चित्रण के मूल में नारी को इनसे ऊपर उठ कर अपने अस्तित्व के प्रति सचेत होने का प्रेमचन्द जी का आह्वान स्पष्टतः दृष्टिगोचर होता है। 'कर्मभूमि' में राष्ट्रीय आन्दोलन के साथ-साथ सामाजिक क्षेत्र में अग्रसर नारियों द्वारा अपने अस्तित्व की खोज प्रारम्भ होती है। इस दृष्टि से 'गोदान' सम्भवतः सर्वाधिक विकसित रूप कहा जा सकता है।
निःसन्देह परिवारजनों व अन्य अनेक लोगों का प्यार भरा सहयोग इस पुस्तक को पूर्ण करने में मेरा सहायक रहा है। सर्वप्रथम, आदरणीय माता-पिता के प्रति नतमस्तक हूँ. जिन्होंने मेरी स्वयं की जिम्मेदारियों को अपने ऊपर ले कर मुझे इस श्रमसाध्य कार्य को पूरा करने में भरपूर सहयोग एवं प्रोत्साहन दिया होगा। माता-पिता तुल्य हो सास-सुसर, अन्य हितैषी व अवलम्ब देने वाले सभी व्यक्तियों के सहयोग के लिए भी हृदय अभिभूत है। समस्त गुरुजनों की शिक्षाओं को भी नमन करती हूँ। इस कार्य को पूर्ण करने में पति व दोनों बेटों कनव और वरेण्यम् की प्रेरणा जो संबल और आत्मबल देती रही है, वह शब्दों से परे है।
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