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प्रवासी हिंदी कथा साहित्य: एक मूल्यांकन- Pravasi Hindi Katha Sahitya (An Evaluation)

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Item Code: HAF566
Author: Satyaketu Sankrit
Publisher: HANS PRAKASHAN, DELHI
Language: Hindi
Edition: 2024
ISBN: 9788197141041
Pages: 191
Cover: HARDCOVER
Other Details 9x6 inch
Weight 360 gm
Fully insured
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100% Made in India
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Book Description
पुस्तक परिचय

इस गंभीरता का एक अहम् पहलू यह भी है कि प्रवासी साहित्य को लेकर इन दिनों जो कई बहस-मुबाहिसे जारी है, जिसके कारण इसकी निर्मिति को लेकर कुछ भ्रम की स्थिति भी पैदा होती है। हिंदी आलोचना जगत में इसके तीन रूपों पर चर्चा हो रही है। एक रूप तो वह है जो विदेशों में बसा दिए गए प्रवासी समाज द्वारा रचित साहित्य है। यह उन भारतीयों का साहित्य है जिनके पुरखे 100-150 वर्ष पहले उपनिवेशवादियों द्वारा पराये देशों में ले जाकर बसा दिए गए थे और उनकी संतानें कालांतर में 'प्रवासी भारतीय' के नाम से जानी जाने लगीं और उनके द्वारा रचित साहित्य 'प्रवासी साहित्य' कहलाया। इसका दूसरा रूप वह है जो कुछ दिनों के लिए विदेश प्रवास के दौरान स्थापित साहित्यकारों द्वारा लिखा गया साहित्य है और तीसरा वह जो भारत में रहते हुए ही विदेशी परिवेश को रेखांकित करता साहित्य है। इस प्रकार साहित्य जगत में प्रवासी साहित्य को लेकर एक भ्रम की स्थिति बनी हुई है। प्रवासी साहित्य के क्षेत्र में आज जो लोग भी काम कर रहे है उनमें भी इसके स्वरुप, नाम, क्षेत्र आदि को लेकर अलग जलग मत है। अधिकतर प्रवासी साहित्यकार जो इस क्षेत्र में अग्रणी है वह केवल भारत से बाहर लिखे जाने वाले हिंदी भाषा के साहित्य को 'प्रवासी साहित्य' में शामिल करने के कतई पक्षधर नहीं है।

जाहिर है कि प्रवासी साहित्य को 'केवल जो प्रवास में रहा हो वह ही लिख सकता है' इस सीमा में नहीं बाँधा जा सकता। यह बात सही है कि विदेशों में लिखे जा रहे हिंदी साहित्य ने हिंदी भाषा को वैश्विक स्तर पर एक अलग पहचान दिलाई है लेकिन इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि इस पहचान का दायरा सीमित कर दिया जाए और इसे एक खाँचे में बंद करके रख दिया जाए। प्रवासी साहित्य पर आज जो इतने बहस-मुहाबिसे, विचार-विमर्श चल रहे हैं वो इसलिए हो रहे है जिससे इसका क्षेत्र और व्यापक हो सके। प्रवासी लेखक स्वयं किसी दायरे में बंधना नहीं चाहते।

लेखक परिचय

सत्यकेतु सांकृत

अधिष्ठाता साहित्य अध्ययन पीठ, डॉ. बी. आर. अम्बेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली ।

शिक्षा : प्रारम्भिक और माध्यमिक शिक्षा सर गणेश दत्त पाटलिपुत्र उच्च-विद्यालय, पटना।

स्नातक : पटना विश्वविद्यालय, पटना, बिहार।

स्नातकोत्तर : जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली। हिन्दी उपन्यास में विश्वविद्यालयीय परिसर जीवन का अंकन विश्लेषणात्मक अध्ययन विषय पर वर्ष 1996 में पी-एच.डी. की उपाधि। प्रेमचन्द और जैनेन्द्र की कहानियों का तुलनात्मक अध्ययन पर यू.जी. सी. द्वारा प्रदत्त लघु शोध परियोजना वर्ष 2006 में पूर्ण। तीन दशकों का अध्यापन अनुभव।

प्रकाशित पुस्तक : हिन्दी उपन्यास और परिसर जीवन (आलोचना), हिंदी कथा-साहित्य : एक दृष्टि (आलोचना), उन्नीसवीं शताब्दी का हिंदी साहित्य (आलोचना), आलोचना के स्वर (संपादित), भाषा, समीक्षा, पुस्तक वार्ता, हिन्दी अनुशीलन, साक्षात्कार, नई धारा आदि पत्रिकाओं में 100 से अधिक पुस्तक समीक्षाएँ, लेख प्रकाशित। यू.जी.सी. एवं अन्य प्रमुख संस्थानों द्वारा प्रायोजित लगभग 100 से अधिक राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में विभिन्न विषयों पर शोध-पत्रों का वाचन एवं उनका प्रकाशन।

पुरस्कार : प्रवासी साहित्य आलोचना सम्मान, कथा यू.के. लंदन 2018 उर्वशी सम्मान, 2018 रामचंद्र शुक्ल आलोचना सम्मान, पल्लव संस्थान। शोध सारथी सम्मान, जबलपुर। काविश आलोचना सम्मान, दिल्ली 20191

भूमिका

लगभग हज़ार वर्ष के हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन के दौरान हिंदी की विभिन्न बोलियों के बीच श्रेष्ठ और अवसान का एक क्रम देखने को मिलता है। क्षेत्रीय बोलियाँ लोक पक्ष के बीच बड़ी ही आत्मीयता से अपनी जगह बनाती रहीं हैं। काव्यात्मक या गेय शैली में होने के कारण इनके साहित्य लोक कंठ में सरलता से घुलते रहे। इसका साहित्यिक प्रमाण सम्पूर्ण भक्तिकाल के रूप में देखा जा सकता है। कालान्तर में आधुनिक काल आते-आते हिंदी में कई नई विधाओं का जन्म होता है और गद्य साहित्य एक प्रमुख माध्यम के तौर पर उभरता है। आधुनिकता और तत्कालीन परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में साहित्य में कई आंदोलनों और विमर्शों का भी जन्म होता है जैसे- प्रगतिशील।

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