फैज़ अहमद फैज़ (1911-1986 ई०) सियालकोट में पैदा हुए । उन के पिता ने काफी समय तक अफगानिस्तान में राजकीय सलाहकार के रूप में कार्य किया था। फैज़ की शिक्षा लाहौर में हुई। उन्होंने अरबी और अंग्रेजी की परीक्षायें पास की और बाद में अमृतसर के एक कालेज में प्रवक्ता नियुक्त हुए। उसी ज़माने में वह एक भावनात्मक सम्बद्धता की बिना पर छायावादी कविता की ओर बढ़े। जब वह अमृतसर में थे तो डा० रशीद जहां और उन के पति साहबजादा महमूदुज़्ज़फ़र के ज़रिये सज्जाद ज़हीर से मिले, जो उन दिनों हिन्दुस्तान के विभिन्न नगरों का दौरा करके साहित्यकारों को प्रगतिवादी विचारों की ओर आकर्षित कर रहे थे । 1936 ई० में लखनऊ में अन्जुमन तरक्की पसन्द मुसन्निफीन (प्रगतिशील लेखक संघ) का पहला सम्मेलन हुआ। जिस की अध्यक्षता प्रेम चन्द ने की। प्रगतिशील और मार्कसवादी विचारों के प्रभाव से फैज़ की कविता में एक नया मोड़ आया और उन्होंने रूमानी दुःख दर्द को व्यापक दिशा प्रदान की। 'मुझ से पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग' 'रकीब से' और 'चन्द रोज़ और मेरी जान फक्त चन्द ही रोज़' जैसी कवितायें उसी समय की यादगार है।
कुछ समय बाद द्वितीय विश्व युद्ध आरम्भ हो गया और 1941 ई० में जब हिटलर की फ़ौजों ने सोवियत रूस पर आक्रमण कर दिया तो हिन्दुस्तान के प्रगतिशील विचारधारा के लोगों ने हिटलर के विरुद्ध युद्ध में मित्र देशों की सहायता करने का निर्णय लिया । इसी निर्णय से प्रभावित फैज़ अंग्रेजों की सेना में भर्ती हो गये और मेजर के पद तक पहुंचे । उस ज़माने में प्रसारण और प्रकाशन के काम में भी बराबर भाग लेते रहे ।
युद्ध समाप्त होने के पश्चात् हिन्दुस्तान की स्वतंत्रता की समस्या सामने आई । इस मार्ग में सबसे बड़ी, कठिनाई हिन्दू, मुस्लिम मतभेद से पैदा हो रही थी । मुस्लिम लीग, मुस्लिम बहु संख्यक वाले राज्यों को मिलाकर पाकिस्तान और प्रगतिशील धारा से सम्बन्धित लोग इस पक्ष में थे कि हिन्दुस्तानी मुस्लमानों को मुस्लिम लीग के उग्रवादिता के प्रभाव से बचाने के लिए प्रगतिशील विचारधारा के मुस्लमानों को मुस्लिम लीग में सम्मिलित होकर कार्य करना चाहिए । अर्थात इसी विचार से प्रभावित होकर फ़ैज़ ने प्रसिद्ध राष्ट्रवादी नेता मियां इफ्तिखारूददीन से मिल कर अंग्रेज़ी दैनिक समाचार पत्र "पाकिस्तान टाइम्स" निकाला और उस के सम्पादक नियुक्त हुए ।
1953 ई० में रावलपिण्डी षडयन्त्र में शामिल होने के आरोप में उन पर मुकदमा चलाया गया। पाकिस्तान के प्रधान मंत्री साहबज़ादा लियाकत अली खां को उस समय के प्रधान सेनापति जनरल अय्यूब खाँ ने यह विश्वास दिलाया कि कुछ सैनिक अधिकारी कम्यूनिस्टों से मिल कर उन का तख्ता पलटना चाहते है और शासन पर अधिकार करने की योजना बना चुके है। उन में जनरल अकबर खां, मेजर इस्हाक और दूसरे सैनिक अधिकारियों के साथ सैयद सज्जाद ज़हीर, सचिव पाकिस्तान कम्यूनिस्ट पार्टी और फ़ैज़ अहमद फैज़ भी शामिल थे । षडयन्त्र में शामिल होने का आरोप सिद्ध न हो सका मगर सलाहकार समीति की गोष्ठी में भाग लेने के कारण उन्हें चार वर्ष के कारावास का दण्ड मिला।
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