त्रिदेव में तीन देवता होते हैं- ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव और तीनों की अपनी- अपनी पत्नियाँ हैं।
सरस्वती सृष्टि की रचना करनेवाले ब्रह्मा की पत्नी हैं। वे ज्ञान और ललित कला की देवी हैं, जिन्हें सामान्य रूप से सफेद वस्त्र में, वीणा बजाते, माला जपते और हाथ में पुस्तक लिये मुसकराते हुए दिखाया जाता है। अधिकांशतया उनका चित्रण उनके वाहन हंस के साथ किया जाता है। वे शांति की देवी हैं, जिनकी पूजा कई देशों में की जाती है। सरस्वती को वाग्देवी, वाणी की देवी के रूप में भी माना जाता है और श्रद्धालु तथा लेखक उनका आशीर्वाद माँगते हैं; क्योंकि वे ज्ञान एवं शिक्षा का प्रतिनिधित्व करती हैं। सरस्वती कम बोलनेवाली स्त्री हैं और टकराव तथा विवादों से दूर रहती हैं।
लक्ष्मी संसार के रक्षक विष्णु की पत्नी हैं, जो क्रोधी स्वभाव की हैं। सब जानते हैं कि वे उनके हृदय में वास करती हैं और उनके अनेक रूप हैं। उन्हें दो अन्य रूपों में भी देखा जाता है- भूदेवी, जो लक्ष्मी का सांसारिक रूप है और श्रीदेवी, जो धन व समृद्धि से जुड़ा रूप है। सामान्यतया लक्ष्मी को लाल या गुलाबी कमल पर, लाल साड़ी में विराजमान दिखाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि वे काफी अनुशासित और नियम-कानूनवाली हैं। जब भगवान् विष्णु ने धरती पर धर्म की रक्षा के लिए दस अवतार लेने का निर्णय लिया तो लक्ष्मी ने उनसे कहा था, "प्रिय पतिदेव, आप संसार में धर्म की रक्षा के एकमात्र उद्देश्य से स्वेच्छा से अवतार ले रहे हैं; किंतु आप जानते हैं कि यहाँ हमारे इस बैकुंठ के दो द्वारपालों- जय एवं विजय को तीन जन्मों तक धरती पर मानव रूप लेने और उन जन्मों में आपका शत्रु होने का शाप दिया गया है। ये दोनों ही घटनाएँ मात्र संयोग नहीं हैं।"
मैं ने जब पौराणिक कथाओं में वर्णित नारी चरित्रों के विषय पर पुस्तक लिखने का मन बनाया और फिर शोध की शुरुआत की तो जल्दी ही निराशा हुई और मोहभंग होता दिखा। मैंने देखा कि ऐसा साहित्य न के बराबर है, जिसमें स्त्रियों की ओर से निभाई गई महत्त्वपूर्ण भूमिका आकर्षण का मुख्य केंद्र हो। इसमें कोई संदेह नहीं कि इन स्त्रियों में सबसे लोकप्रिय 'महाभारत' की द्रौपदी एवं 'रामायण' की सीता और फिर पार्वती हैं, जो एक ऐसी देवी की सशक्त भूमिका निभाती हैं, जो राक्षसों का वध करने और अपने भक्तों की रक्षा करने में दक्ष थीं। सच तो यह है कि हमारे देश की कई नदियों को भी देवी माना जाता है। इसके बावजूद इन स्त्रियों के विषय में कही-सुनी जानेवाली कहानियों की संख्या उन कहानियों की तुलना में पता नहीं इतनी कम क्यों है, जिनमें पुरुषों की चर्चा है? जो साहित्य उपलब्ध है, उसमें भी बार-बार वही बातें दोहराई गई हैं और स्त्रियों को हमेशा ही किसी के अधीन या छोटी भूमिका में दिखाया गया है और आज भी उन्हें उतना महत्त्व नहीं दिया जाता है।
संभवतः इसका कारण यह है कि हमारा समाज परंपरागत रूप से पुरुष प्रधान रहा है, या इस कारण कि पौराणिक कथाएँ अधिकतर पुरुषों द्वारा लिखी गई हैं। वैसे, इसकी संभावना सबसे अधिक है कि इन दोनों कारणों की वजह से ही ऐसा हुआ होगा।
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